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बच्चों की शिक्षाप्रद कहानियां

बच्चों की शिक्षाप्रद कहानियां

बच्चों की शिक्षाप्रद कहानियां

🌳 तुलसी और विष्णु की कहानी 🌳🌹

सावर्णि मुनि की पुत्री तुलसी अपूर्व सुंदरी थी और उनकी इच्छा थी कि उनका विवाह भगवान नारायण से हो। इसके लिए उन्होंने नारायण पर्वत की घाटी में स्थित बदरीवन में घोर तपस्या की। दीर्घ काल तक तपस्या के उपरांत ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर दर्शन दिया और वर मांगने को कहा।

तुलसी ने कहा, “सृष्टिकर्ता ब्रह्मदेव! आप अंतर्यामी हैं और सबके मन की बात जानते हैं, फिर भी मैं अपनी इच्छा बताती हूं। मैं चाहती हूं कि भगवान श्री नारायण मुझे पति रूप में मिलें।”

ब्रह्मा ने कहा, “तुम्हारी इच्छा अवश्य पूर्ण होगी। अपने पूर्व जन्म में किसी अपराध के कारण तुम्हें शाप मिला है। इसी प्रकार भगवान श्री नारायण के एक पार्षद को भी दानव-कुल में जन्म लेने का शाप मिला है। दानव कुल में जन्म लेने के बावजूद उसमें नारायण का अंश विद्यमान रहेगा। इसलिए इस जन्म में पूर्व जन्म के पाप के शमन के लिए तुम नारायण के अंश से युक्त दानव-कुल जन्मे उस शापग्रस्त पार्षद से विवाह करोगी। शाप-मुक्त होने पर भगवान श्री नारायण सदा-सर्वदा के लिए तुम्हारे पति हो जाएंगे।”

तुलसी ने ब्रह्मा के इस वरदान को स्वीकार किया और बदरीवन में ही रहने लगीं। नारायण का वह पार्षद दानव कुल में शंखचूड़ के नाम से पैदा हुआ था। कुछ समय बाद शंखचूड़ भ्रमण करता हुआ बदरीवन में आया। उसने तुलसी को देखा और उस पर मुग्ध हो गया। उसने तुलसी से विवाह का प्रस्ताव रखा। तभी वहां ब्रह्मा जी आ गए और तुलसी से कहा, “तुलसी! शंखचूड़ को देखो, उसका स्वरूप कितना देवोपम है। दानव कुल में जन्म लेने के बावजूद उसके शरीर में नारायण का वास है। तुम इसका प्रस्ताव स्वीकार कर लो।”

तुलसी को लगा कि उसकी तपस्या पूर्ण हुई और उसने शंखचूड़ के साथ विवाह कर लिया। वे शंखचूड़ के महल में पत्नी बनकर आ गईं। शंखचूड़ ने अपनी परम सुंदरी पत्नी तुलसी के साथ बहुत समय तक राज्य किया और अपने राज्य का इतना विस्तार किया कि देवलोक तक उसके अधिकार में आ गया।

देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सभा में जाकर अपनी विपत्ति सुनाई। ब्रह्मा जी ने कहा, “तुलसी परम साध्वी है। उसका विवाह शंखचूड़ से मैंने ही कराया था। शंखचूड़ को तब तक नहीं हराया जा सकता, जब तक तुलसी को न छला जाए।”

विष्णु ने कहा, “शंखचूड़ पूर्व जन्म में मेरा पार्षद था और शाप के कारण उसे दैत्यकुल में जन्म लेना पड़ा। इस जन्म में भी मेरा अंश उसमें विद्यमान है और तुलसी के पतिव्रत-धर्म के कारण वह अजेय है।”

देवताओं की सहमति से भगवान शिव ने शंखचूड़ को संदेश भेजा कि या तो वह देवताओं का राज्य लौटा दे, या फिर युद्ध करे। शंखचूड़ ने शिव को उत्तर दिया कि उसने युद्ध के बल से देवलोक जीता है और कोई भी उसे युद्ध के द्वारा ही वापस ले सकता है।

भगवान शंकर ने देवताओं की सेना के साथ युद्ध छेड़ दिया, लेकिन शंखचूड़ को पराजित नहीं कर सके। तब विष्णु ने छल का सहारा लिया और शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के पास पहुंचे। तुलसी ने अपने पति के रूप में विष्णु का स्वागत किया, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया।

शंखचूड़ शक्तिहीन हो गया और भगवान शंकर ने उसे मार डाला। विष्णु ने तुलसी को बताया कि उन्होंने छल के द्वारा उसके पति को हराया है। तुलसी ने क्रोध में आकर विष्णु को शाप दिया कि वे पत्थर बन जाएंगे। विष्णु ने शाप को शिरोधार्य करते हुए कहा, “तुम्हारे और शंखचूड़ के कल्याण के लिए ऐसा करना पड़ा। अब तुम तुलसी के रूप में जन्म लोगी और मेरी पूजा तुम्हारे तुलसी दल से होगी। मैं शालग्राम पत्थर बनूंगा और तुम्हारे पति की हड्डियों से शंख उत्पन्न होगा। जहां शंख ध्वनि होगी, वहां मंगलमय मैं विराजमान रहूंगा।”

बच्चों की शिक्षाप्रद कहानियां

कहानी से सीखने योग्य पाठ

  1. सच्ची भक्ति और तपस्या का फल मिलता है: तुलसी की दृढ़ भक्ति और कठोर तपस्या ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया। यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति और तपस्या का फल अवश्य मिलता है, चाहे रास्ते में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं।
  2. धोखा और छल का परिणाम: भगवान विष्णु ने शंखचूड़ को हराने के लिए छल का सहारा लिया, जिससे तुलसी का सतीत्व भंग हो गया। यह सिखाता है कि छल और धोखा अंततः हानि ही पहुंचाते हैं, चाहे वह कितना भी महान उद्देश्य क्यों न हो।
  3. कर्म का फल: शंखचूड़ और तुलसी दोनों ने अपने पूर्व जन्मों के कर्मों का फल भोगा। यह कहानी हमें यह समझने में मदद करती है कि हमारे वर्तमान जीवन में किए गए कर्मों का प्रभाव भविष्य में अवश्य पड़ता है।
  4. धैर्य और समर्पण: तुलसी ने अपने जीवन में जो भी कठिनाइयाँ आईं, उन्हें धैर्यपूर्वक सहा और भगवान नारायण के प्रति अपना समर्पण बनाए रखा। यह सिखाता है कि कठिनाइयों के बावजूद हमें धैर्य और समर्पण के साथ अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ते रहना चाहिए।
  5. प्रेम और विश्वास: तुलसी का भगवान नारायण के प्रति प्रेम और विश्वास उसे हर कठिनाई में सहारा देता है। यह सिखाता है कि सच्चे प्रेम और विश्वास से हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।
  6. समाज और कर्तव्य: शंखचूड़ ने देवताओं से राज्य छीन लिया, लेकिन उसने उन्हें कोई कष्ट नहीं दिया। इसके बावजूद, अपने कर्तव्य के प्रति अडिग रहना आवश्यक है, जैसा कि भगवान शिव ने देवताओं के पक्ष में युद्ध करके दिखाया।

इस प्रकार, यह कहानी हमें भक्ति, समर्पण, कर्म, प्रेम, और विश्वास के महत्वपूर्ण पाठ सिखाती है, जो हमारे जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जा सकते हैं।

शिक्षाप्रद बच्चों की कहानियां

एक राजा ने प्रसन्न मन से अपने मंत्री से उसकी सबसे बड़ी इच्छा के बारे में पूछा। मंत्री ने शरमाते हुए राज्य का एक छोटा सा हिस्सा देने की इच्छा जताई। राजा ने मंत्री को आश्चर्यचकित करते हुए आधा राज्य देने की पेशकश की, लेकिन साथ ही यह भी घोषणा की कि अगर मंत्री तीस दिनों में तीन सवालों के जवाब नहीं दे पाया तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाएगा। सवाल थे:

मानव जीवन का सबसे बड़ा सच क्या है?
मानव जीवन का सबसे बड़ा धोखा क्या है?
मानव जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी क्या है?

मंत्री ने हर जगह जवाब ढूँढ़ा लेकिन कोई भी जवाब उसे संतुष्ट करने वाला नहीं मिला। आखिरी दिन उसकी मुलाक़ात एक भूतपूर्व मंत्री से हुई जो एक गरीब आदमी की तरह रह रहा था। इस आदमी ने जवाब दिया:

श्रीकृष्ण की माया: सुदामा की कहानी

एक दिन श्रीकृष्ण ने कहा, “सुदामा, आओ, हम गोमती में स्नान करने चलें।” दोनों गोमती के किनारे गए, अपने कपड़े उतारे और नदी में प्रवेश किया। श्रीकृष्ण स्नान करके किनारे लौट आए और अपने पीले वस्त्र पहनने लगे। सुदामा ने एक और डुबकी लगाई, तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें अपनी माया दिखाई।

सुदामा को लगा कि नदी में बाढ़ आ गई है। वह बहता जा रहा था, किसी तरह किनारे पर रुका। गंगा घाट पर चढ़कर वह चलने लगा। चलते-चलते वह एक गाँव के पास पहुँचा, जहाँ एक मादा हाथी ने उसे फूलों की माला पहनाई। बहुत से लोग इकट्ठा हो गए और बोले, “हमारे देश के राजा का निधन हो गया है। यहाँ की परंपरा है कि राजा की मृत्यु के बाद जिस किसी को मादा हाथी माला पहनाएगी, वही हमारा नया राजा बनेगा। मादा हाथी ने तुम्हें माला पहनाई है, इसलिए अब तुम हमारे राजा हो।”

सुदामा हैरान रह गया, लेकिन वह राजा बन गया और एक राजकुमारी से विवाह भी कर लिया। उनके दो बेटे भी हुए और उनका जीवन खुशी से बीतने लगा। एक दिन सुदामा की पत्नी बीमार हो गई और मर गई। पत्नी की मृत्यु के शोक में सुदामा रोने लगे। राज्य के लोग भी वहाँ पहुँचे और बोले, “राजा जी, मत रोइए। यह तो माया नगरी का नियम है। आपकी पत्नी की चिता में आपको भी प्रवेश करना होगा।”

लंका के शासक रावण की माँग

यह कहानी महार्षि कंबन द्वारा तमिल भाषा में लिखित “इरामा-अवतारम” से ली गई है, जो वाल्मीकि रामायण और तुलसी रामायण में नहीं मिलती।

श्रीराम ने समुद्र पर पुल बनाने के बाद, महेश्वर-लिंग-विग्रह की स्थापना के लिए रावण को आचार्य के रूप में आमंत्रित करने के लिए जामवंत को भेजा। जामवंत ने रावण को यह संदेश दिया कि श्रीराम ने उन्हें आचार्य के रूप में नियुक्त करने का निर्णय लिया है। रावण ने इसे सम्मानपूर्वक स्वीकार किया।

रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बैठाकर श्रीराम के पास ले गया और खुद आचार्य के रूप में अनुष्ठान का संचालन किया। अनुष्ठान के दौरान, रावण ने श्रीराम से उनकी पत्नी के बिना अनुष्ठान पूरा नहीं होने की बात कही। तब श्रीराम ने सीता को अनुष्ठान में शामिल होने का आदेश दिया।

धन्ना जाट जी की कथा

एक बार की बात है, एक गाँव था जहाँ भागवत कथा का आयोजन किया गया था। एक पंडित कथा सुनाने आया था जो पूरे एक सप्ताह तक चली। अंतिम अनुष्ठान के बाद, जब पंडित दान लेकर घोड़े पर सवार होकर जाने को तैयार हुआ, तो धन्ना जाट नामक एक सीधे-सादे और गरीब किसान ने उसे रोक लिया।

धन्ना ने कहा, “हे पंडित जी! आपने कहा था कि जो भगवान की सेवा करता है, उसका बेड़ा पार हो जाता है। लेकिन मेरे पास भगवान की मूर्ति नहीं है और न ही मैं ठीक से पूजा करना जानता हूँ। कृपया मुझे भगवान की एक मूर्ति दे दीजिए।”

पंडित ने उत्तर दिया, “आप स्वयं ही एक मूर्ति ले आइए।”

धन्ना ने कहा, “लेकिन मैंने तो भगवान को कभी देखा ही नहीं, मैं उन्हें कैसे लाऊँगा?”

उन्होंने पिण्ड छुडाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- “ये ठाकुरजी हैं ! इनकी सेवा पूजा करना।’

“सच्ची भक्ति: सेवा और करुणा का मार्ग”

एक समय की बात है, एक शहर में एक धनवान सेठ रहता था। उसके पास बहुत दौलत थी और वह कई फैक्ट्रियों का मालिक था।

एक शाम, अचानक उसे बेचैनी की अनुभूति होने लगी। डॉक्टरों ने उसकी जांच की, लेकिन कोई बीमारी नहीं मिली। फिर भी उसकी बेचैनी बढ़ती गई। रात को नींद की गोलियां लेने के बावजूद भी वह नींद नहीं पा रहा था।

आखिरकार, आधी रात को वह अपने बगीचे में घूमने निकल गया। बाहर आने पर उसे थोड़ा सुकून मिला, तो वह सड़क पर चलने लगा। चलते-चलते वह बहुत दूर निकल आया और थककर एक चबूतरे पर बैठ गया।

तभी वहां एक कुत्ता आया और उसकी एक चप्पल ले गया। सेठ ने दूसरी चप्पल उठाकर उसका पीछा किया। कुत्ता एक झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में घुस गया। जब सेठ नजदीक पहुंचा, तो कुत्ते ने चप्पल छोड़ दी और भाग गया।

इसी बीच, सेठ ने किसी के रोने की आवाज सुनी। वह आवाज एक झोपड़ी से आ रही थी। अंदर झांककर उसने देखा कि एक गरीब औरत अपनी बीमार बच्ची के लिए रो रही है और भगवान से मदद मांग रही है।

शुरू में सेठ वहां से चला जाना चाहता था, लेकिन फिर उसने औरत की मदद करने का फैसला किया। जब उसने दरवाजा खटखटाया तो औरत डर गई। सेठ ने उसे आश्वस्त किया और उसकी समस्या जानी।

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