अपरा एकादशी (२ जून २०२४)

ekadashi kab hai apara ekadshi 2023

ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को “अपरा” या “अचला” एकादशी कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, यह एकादशी अपार धन प्रदान करने वाली होती है। इस दिन भगवान विष्णु के त्रिविक्रम अवतार की पूजा की जाती है।अपरा एकादशी को अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। अपरा एकादशी व्रत प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति अपरा एकादशी का व्रत सच्चे मन से रखता है उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। इसका वर्णन अपरा एकादशी की व्रत कथा में मिलता है।

अपरा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और मान्यता है कि इस दिन पूजा व व्रत करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है। इस बार अपरा एकादशी विशेष है क्योंकि यह रविवार के दिन पड़ रही है। जब एकादशी रविवार को आती है तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस एकादशी को अचला एकादशी भी कहा जाता है।

व्रत समय और विधि की बात करें तो एकादशी तिथि का आरंभ 2 जून 2024 को रविवार सुबह 5 बजकर 4 मिनट  बजे से होगा और 3 जून 2024 की रात 2 बजकर 41 मिनट तक रहेगी।

एकादशी की कथा

एक बार की बात है, प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई ब्रजध्वज अन्यायी, अधर्मी और क्रूर था। वह अपने बड़े भाई महिध्वज को अपना दुश्मन समझता था। एक दिन मौका देखकर ब्रजध्वज ने अपने बड़े भाई की हत्या कर दी और उसके मृत शरीर को जंगल के पीपल पेड़ के नीचे गाड़ दिया।

इसके बाद राजा की आत्मा, प्रेतात्मा बन कर उस पीपल में वास करने लगी। राजा की वो प्रेतात्मा वहां से निकलने वाले लोगों को सताने लगी। एक दिन धौम्य ऋषि उस पीपल वृक्ष के नीचे से निकले। उन्होंने तपोबल से राजा के साथ हुए अन्याय को समझ लिया। ऋषि ने राजा की आत्मा को पीपल के वृक्ष से हटाकर परलोक विद्या का उपदेश दिया। साथ ही प्रेत योनि से छुटकारा पाने के लिए अचला एकादशी का व्रत करने को कहा।

दयालु ऋषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को अपने पुण्य को उस प्रेतात्मा को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ऋषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।

अपरा एकादशी का माहात्म्य

ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को “अपरा” या “अचला” एकादशी कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, यह एकादशी अपार धन प्रदान करने वाली होती है। इस दिन भगवान विष्णु के त्रिविक्रम अवतार की पूजा की जाती है।अपरा एकादशी को अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। अपरा एकादशी व्रत प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति अपरा एकादशी का व्रत सच्चे मन से रखता है उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। इसका वर्णन अपरा एकादशी की व्रत कथा में मिलता है।

अपरा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और मान्यता है कि इस दिन पूजा व व्रत करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है। इस बार अपरा एकादशी विशेष है क्योंकि यह रविवार के दिन पड़ रही है। जब एकादशी रविवार को आती है तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस एकादशी को अचला एकादशी भी कहा जाता है।

व्रत समय और विधि की बात करें तो एकादशी तिथि का आरंभ 2 जून 2024 को रविवार सुबह 5 बजकर 4 मिनट  बजे से होगा और 3 जून 2024 की रात 2 बजकर 41 मिनट तक रहेगी।

व्रत विधि के अनुसार, दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। रात में भगवान का ध्यान करके सोना चाहिए। एकादशी के दिन सुबह उठकर विकारों को दूर करके स्नान करना चाहिए। फिर अगरबत्ती, चावल, चंदन, दीपक, धूप, दूध, हल्दी और कुमकुम से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।

इस एकादशी के व्रत की और विधियां हैं – पवित्र जल से स्नान के बाद साफ वस्त्र धारण करना, परिवार सहित भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की मूर्तियों को चौकी पर स्थापित करना, गंगाजल पीकर आत्म शुद्धि करना, रक्षा सूत्र बांधना, शुद्ध घी का दीपक जलाना, शंख और घंटी की पूजा करना, व्रत करने का संकल्प लेना।

इसके बाद भगवान की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए, दिनभर उपवास रखना चाहिए और रात में जागरण करना चाहिए। दूसरे दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए और अंत में स्वयं भोजन करना चाहिए।

इस एकादशी व्रत में और भी निर्देश हैं जैसे – पूजा में चावल की जगह तिल चढ़ाना, आलस्य त्यागना, मंत्रजाप करना, तुलसी के साथ भोग लगाना, भजन करना, ब्रह्मचर्य पालना आदि। तुलसी पत्र, चंदन, गंगाजल और मौसमी फलों का प्रसाद चढ़ाना चाहिए। विष्णु सहस्रनाम पाठ और कथा पढ़ना भी इस व्रत का हिस्सा है। इसके बाद ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप भी करना चाहिए और विष्णु के सहस्रनामों का उच्चारण करना चाहिए।

🌸युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन! ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का क्या नाम है तथा उसका माहात्म्य क्या है सो कृपा कर कहिए?

🌸भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! यह एकादशी ‘अचला’ तथा’ अपरा दो नामों से जानी जाती है। पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी है, क्योंकि यह अपार धन देने वाली है। जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं।

🌸इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है। अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भू‍त योनि, दूसरे की निंदा आदि के सब पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत के करने से परस्त्री गमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं।

🌸जो क्षत्रिय युद्ध से भाग जाए वे नरकगामी होते हैं, परंतु अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। जो शिष्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करते हैं फिर उनकी निंदा करते हैं वे अवश्य नरक में पड़ते हैं। मगर अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी इस पाप से मुक्त हो जाते हैं।

🌸जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। मकर के सूर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोमती नदी के स्नान से, कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान से, स्वर्णदान करने से अथवा अर्द्ध प्रसूता गौदान से जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है।

🌸यह व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए ‍अग्नि, पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान है। अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। अपरा एकादशी का व्रत तथा भगवान का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है।

🌸इसकी प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा।

🌸एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया।

🌸दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।

🌸हे राजन! यह अपरा एकादशी की कथा मैंने लोकहित के लिए कही है। इसे पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।

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