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प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन से मिलने का समय

एकांतिक वार्तालाप के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन से मिलने का समय

प्रश्न – मेरा आपसे एक छोटा सा प्रश्न है, हम अपने माता पिता का तो नाम नहीं लेते लेकिन जो सृष्टि के जगत के माता पिता है हम उनका नाम क्यों लेते हैं ?

उनका इतना महान नाम है हमारे प्रभु के नाम मात्र से हमारा कल्याण हो जाएगा सारे पाप नष्ट हो जाएंगे जैसे हमारे पूज्य गुरुदेव हैं उनका नाम नहीं लेते लेकिन अपने इष्टदेव का नाम लेते हैं राधा राधा राधा राधा राधा इनके नाम की ऐसी महिमा कि सच्चिदानंदमय नाम उच्चारण करने से हमारे सारे पाप नष्ट हो जाते हैं , हृदय आनंदित हो जाता है.

प्रश्न – जैसे आज सुबह आप सत्संग कर रहे थे उस समय ऐसा लगता है कि आज से बस यही करना है आज से नाम जप करूंगा किसी से फालतू वार्तालाप नहीं करूंगा जैसे ही सत्संग विश्राम हुआ थोड़ा बाहर की हवा लगी फिर वही धीरे-धीरे संसार की बात आना ऐसा क्यों ?

इसलिए कि क्योंकि पवित्र हृदय की निष्ठा नहीं है ना, पवित्र हृदय की निष्ठा नहीं, तो पहले हमें साधन के द्वारा नाम जप के द्वारा हृदय पवित्र करना पड़ेगा और फिर जिस समय निष्ठा जागृत होगी उसके बाद महसूस होगा आज के बाद नाम छूटेगा नहीं।

प्रश्न – प्रिया प्रीतम से मिलन के मार्ग पर चलते हुए साधक के जीवन में काम रूपी विकार का क्या स्वरूप रहता है ?

बहुत जोर का होता है , क्योंकि टक्कर का योद्धा एक ही है ये प्रेमी को गिराने के लिए एक ही जो योद्धा समर्थ है दूसरा नहीं समर्थ है जैसे क्रोध और लोभ है, इसी की उपज है काम की , काम सं जायते क्रोधा और काम की पूर्ति में लोभ और काम की पूर्ति में बाधा में क्रोध, लोभ और क्रोध इसी के उपज है काम की , सबसे बड़ा सुभट योद्धा काम ही है ज्ञानियों के लिए भी और प्रेमियों के लिए भी , यह ज्ञानियों का नित्य बैरी है नित्य दुश्मन है कभी ना अघाने वाला महापापी। महापापना ये महान पाप कराने वाला चाहे जितना भोग लो कभी तृप्त नहीं होने वाला, तो जैसे ही हमारे हृदय में वैसे सबके हृदय में काम है लेकिन जैसे ही हम काम विजय होने की सोचते हैं वैसे ही अपना विशेष रंग दिखाता है प्रिया प्रीतम के मिलन का मतलब काम विजय होना ,भगवत प्राप्ति का मतलब काम विजय होना।

प्रश्न -भगवान भगवत प्राप्ति के लिए प्रयास जरूरी है कि पूर्ण रूप से समर्पण?

दोनों जरूरी है समर्पण करके प्रयास जरूर, पुरुषार्थ के बिना कायर पुरुष को भगवत प्राप्ति नहीं होती आत्म समर्पण गुरुदेव भगवान को जो हमको नाम दिया मंत्र दिया उपासना दी जितने हमको शक्ति दी मिले , हम पूरी शक्ति लगाकर उसका भजन करेंगे साधन करेंगे इसके बाद ऐसे हम हैं कि प्रभु आप जितना बल दिए हो जितना करवा रहे हो उतना है बकाया इसके बल से हम भगवत प्राप्ति नहीं वो तो आपकी कृपा से होगी पर प्रयास में कमी नहीं रखता कायर पुरुष कभी भगवत प्राप्त नहीं होता जो हमें बल मिला है जो हमें सामर्थ्य मिली है उसका हम प्रयोग कर रहे हैं और याचना कृपा की कर रहे हैं

होगा आपकी कृपा से इससे क्या होगा अहंकार नहीं आएगा अगर अहंकार आ जाए कतृत्व भाव का तो “अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताऽहमिति मन्यते।।3.27।।” मैं साधना कर रहा हूं यह अहंकार आते ही उसको भगवत प्राप्ति की योग्यता खो देगा अहंकारी को भगवत प्राप्ति नहीं होती चाहे जितना बड़ा तप कर ले चाहे जितनी बड़ी साधना तो हम साधन पूरा करते हैं पर हमारे पता है कि गुरु की कृपा से इष्ट की कृपा से हो रहा है तो उन्हीं की कृपा से उनकी प्राप्ति होगी इसलिए उसको अहंकार नहीं होता कायर पुरुष नहीं, किसी मार्ग में सफल नहीं होता, कायरता कहीं नहीं लिखी है कि हम भरोसे में ऐसे करके और मनमानी आचरण कर रहे हैं वो तो आलसी है प्रमाद है कायर है , वो भगवत मार्ग का पथिक नहीं होता जैसा शास्त्र में लिखा जितनी मेरे सामर्थ्य है पूरी सामर्थ्य झोकते हैं हम सत मार्ग में और कृपा की आशा रखते हैं तो अहंकार नहीं होता है और उसे भगवत प्राप्ति निश्चित हो जाती है

प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन से मिलने का समय

प्रेमानंद जी महाराज से आप सुबह २:३० बजे से परिक्रमा मार्ग में मिल सकते हैं , इसके साथ – साथ आप उनसे एकांतिक वार्तालाप में भी मिल सकते हैं। एकांतिक वार्तालाप के लिए आपको एक दिन पहले आकर टोकन ले सकते हैं।

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