srirangam temple timings today
परिचय
श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर तमिलनाडु में कावेरी और कालीदाम नदी के बीच टापू पर स्थित है, और इसे भूलोक का वैकुण्ठ कहा जाता है। इस मंदिर का अनुपम कला शिल्प एवं अद्वितीय सौंदर्य इसे दुनिया के सबसे बड़े पूजनीय मंदिरों में से एक बनाता है।
श्रीरंगनाथस्वामी मंदिर खुलने का समय सुबह 6:00 बजे है और श्रीरंगनाथस्वामी मंदिर बंद होने का समय रात 9:00 बजे है।
विशाल क्षेत्रफल और संरचना
श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर का क्षेत्रफल लगभग 156 एकड़ (6,31,000 वर्गमीटर) है, और इसका परिसर 7 प्रकारों और 21 गोपुरम (द्वार) को मिलाकर बना है। मंदिर का मुख्य गोपुरम, जिसे राजगोपुरम कहा जाता है, 236 फीट (लगभग 72 मीटर) ऊँचा है। यह मंदिर तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगम नामक द्वीप पर स्थित है।
भगवान विष्णु और लक्ष्मी का वास
मंदिर में विष्णु भगवान को पेरुमल और अजागिया मनावलन भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘हमारे भगवान’ और ‘सुंदर वर’। लक्ष्मी यहाँ रंगनायकी कहलाती हैं। श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर में भगवान विष्णु की शेषनाग की शैय्या पर लेटी हुई विशाल मूर्ति है, जो इसी को समर्पित है। यह मंदिर 108 दिव्य देशों में से एक है और इसे ‘श्रीरंगम मंदिर’, ‘भूलोक वैकुण्ठ’, ‘तिरुवरंगम तिरुपति’, और ‘पेरियाकोइल’ जैसे कई नामों से जाना जाता है।
याना वाहन की अद्वितीय मूर्ति
इस मंदिर में लकड़ी की एक अद्वितीय मूर्ति है जिसे यान वाहन (Yana Vahan) कहा जाता है। यह मूर्ति मस्टोडोन्टोआडिया (Mastodontoidea) जैसे प्रागैतिहासिक विशाल हाथी की तरह दिखती है, जिस पर भगवान विष्णु विराजमान हैं। मस्टोडोन्टोआडिया लगभग 1.5 करोड़ वर्ष पहले लुप्त हो चुका था।
इतिहास और निर्माण
मंदिर का निर्माण 9वीं सदी में गंग राजवंश के दौर में हुआ था और 16वीं और 17वीं सदी में भी कई निर्माण कार्य किए गए। मंदिर 1000 स्तंभों पर बना है, हालांकि, आज इनमें से 953 स्तंभ ही दिखते हैं। ये स्तंभ विजयनगर काल (1336-1565) के ग्रेनाइट पत्थरों से बनाए गए थे, और इनमें जंगली घोड़े और बाघों जैसी जीवों की मूर्तियाँ उकेरी गई हैं, जो देखने में बहुत प्राकृतिक लगती हैं।
पुष्करिणी टैंक और जल संग्रहण
मंदिर परिसर में चंद्र पुष्करिणी और सूर्य पुष्करिणी नाम के दो टैंक हैं, जिनमें मंदिर का सारा पानी एकत्रित होता है। हर टैंक की क्षमता करीब 20 लाख लीटर है।
वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण
मंदिर का निर्माण द्रविड़ियन शैली में हुआ है और यह होयसाला और विजयनगर वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। इसकी दीवारें मजबूत किले जैसी हैं और अनुपम शिल्प कला से सजित गोपुरम बेहद खूबसूरत है। यहाँ के चार स्तंभों पर भगवान विष्णु के 24 अवतार दिखाए गए हैं, जिन्हें चतुरविमष्टी कहा जाता है।
मंदिर की संरचना और मूर्तियाँ
श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर के स्तंभ और गोपुरम कला की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। मंदिर के 953 स्तंभों में जंगली घोड़े और बाघों जैसी जीवों की मूर्तियाँ उकेरी गई हैं, जो देखने में बहुत प्राकृतिक लगती हैं। इन मूर्तियों में एक विशेष प्रकार की सजीवता और कलात्मकता है, जो द्रविड़ियन शैली की विशेषता है।
विशाल परिसर और जल संग्रहण
मंदिर परिसर में चंद्र पुष्करिणी और सूर्य पुष्करिणी नाम के दो विशाल टैंक हैं, जिनमें मंदिर का सारा पानी एकत्रित होता है। प्रत्येक टैंक की क्षमता लगभग 20 लाख लीटर है, जो न केवल मंदिर के जल संग्रहण के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि उनकी वास्तुकला भी बहुत आकर्षक है।
महत्वपूर्ण त्यौहार और उत्सव
मंदिर में सबसे बड़ा उत्सव कृष्ण जन्माष्टमी पर होता है। इस दिन मंदिर में विशेष पूजा, अनुष्ठान, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जो श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। इसके अलावा, यहाँ कई अन्य त्योहारों का भी आयोजन होता है, जैसे राम नवमी, मकर संक्रांति, और दीपावली, जो इस मंदिर की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को और भी समृद्ध बनाते हैं।
श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर का गोपुरम
दक्षिण भारत में सबसे ऊंचा गोपुरम श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर का है, जिसकी ऊंचाई 237 फीट है। यह गोपुरम अपने विशाल आकार और अद्वितीय शिल्प कला के लिए प्रसिद्ध है। इस पर उकेरी गई मूर्तियाँ और नक्काशियाँ मंदिर की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को और भी बढ़ाती हैं।
मुख्य मंदिर और विविध मूर्तियाँ
मुख्य मंदिर को रंगनाथ स्वामी मंदिर कहा जाता है, जो भगवान का शयन कक्ष है। यहाँ भगवान विष्णु की शयन मुद्रा में प्रतिमा है, साथ ही विष्णु की खड़ी प्रतिमा, कृष्ण, लक्ष्मी, सरस्वती, श्रीराम, नरसिम्हा के विविध रूप और वैष्णव संतों की प्रतिमाएँ भी हैं।
अनमोल हीरा और उसका इतिहास
मंदिर के मुख्य देवता की मूर्ति की आँख में कभी एक बड़ा हीरा जड़ा था, जिसका वजन 189.62 कैरेट (37.924 ग्राम) था। फ्रांस के सैनिकों द्वारा युद्ध के दौरान यह हीरा चोरी हो गया था और अब यह ऑरलोव हीरा मॉस्को क्रेमलिन के डायमंड फंड में संरक्षित है।
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह क्षेत्र की सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है। यह मंदिर तिरुचिरापल्ली के समाज और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, जहाँ प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं।
संरक्षण और देखभाल
इतिहास और वास्तुकला की धरोहर होने के कारण इस मंदिर का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है। मंदिर के संरक्षण के लिए विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संगठन सक्रिय हैं, जो इसके रखरखाव और पुनरुद्धार के प्रयासों में संलग्न हैं। इस मंदिर को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल करने के प्रयास भी चल रहे हैं, ताकि इसका संरक्षण और भी बेहतर तरीके से हो सके।
आध्यात्मिक अनुभव
श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर में प्रवेश करते ही भक्तों को एक अनोखा आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होता है। मंदिर की शांत और पवित्र वातावरण में भगवान विष्णु की उपासना करना, यहाँ की भव्य मूर्तियों और कलाकृतियों को देखना, और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेना, सभी मिलकर एक अद्वितीय आध्यात्मिक यात्रा का अनुभव कराते हैं।
पर्यटन और अर्थव्यवस्था
श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर के प्रति श्रद्धा और आकर्षण के कारण यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी है। यहाँ हर वर्ष लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाते हैं। पर्यटन से जुड़े उद्योगों, जैसे होटल, रेस्टोरेंट, और हस्तशिल्प उद्योग को यहाँ से बड़ी सहायता मिलती है।
आध्यात्मिक और भौतिक संतुलन
श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर का दर्शन करना एक तरह का संतुलन स्थापित करता है। यह स्थान जहाँ एक ओर आध्यात्मिक शांति और संतोष प्रदान करता है, वहीं दूसरी ओर यहाँ की अद्वितीय वास्तुकला और संस्कृति का अनुभव भी कराता है। यह संतुलन ही इस मंदिर को विश्वभर के तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण बनाता है।
समापन
श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, कला और वास्तुकला की एक अद्वितीय मिसाल भी है। यह मंदिर अपने विशाल आकार, ऐतिहासिक महत्व, धार्मिक आस्था, और भव्य वास्तुकला के कारण विश्वभर में प्रसिद्ध है। भगवान विष्णु के इस पवित्र धाम का दर्शन करना हर भक्त के लिए एक अद्वितीय अनुभव है, जो उन्हें आध्यात्मिक शांति और संतोष प्रदान करता है। यहाँ आकर हर कोई भूलोक के वैकुण्ठ का अनुभव कर सकता है।
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बच्चों की रात की कहानियां
एक राजा ने प्रसन्न मन से अपने मंत्री से उसकी सबसे बड़ी इच्छा के बारे में पूछा। मंत्री ने शरमाते हुए राज्य का एक छोटा सा हिस्सा देने की इच्छा जताई। राजा ने मंत्री को आश्चर्यचकित करते हुए आधा राज्य देने की पेशकश की, लेकिन साथ ही यह भी घोषणा की कि अगर मंत्री तीस दिनों में तीन सवालों के जवाब नहीं दे पाया तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाएगा। सवाल थे:
मानव जीवन का सबसे बड़ा सच क्या है?
मानव जीवन का सबसे बड़ा धोखा क्या है?
मानव जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी क्या है?
मंत्री ने हर जगह जवाब ढूँढ़ा लेकिन कोई भी जवाब उसे संतुष्ट करने वाला नहीं मिला। आखिरी दिन उसकी मुलाक़ात एक भूतपूर्व मंत्री से हुई जो एक गरीब आदमी की तरह रह रहा था। इस आदमी ने जवाब दिया:
श्रीकृष्ण की माया: सुदामा की कहानी
एक दिन श्रीकृष्ण ने कहा, “सुदामा, आओ, हम गोमती में स्नान करने चलें।” दोनों गोमती के किनारे गए, अपने कपड़े उतारे और नदी में प्रवेश किया। श्रीकृष्ण स्नान करके किनारे लौट आए और अपने पीले वस्त्र पहनने लगे। सुदामा ने एक और डुबकी लगाई, तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें अपनी माया दिखाई।
सुदामा को लगा कि नदी में बाढ़ आ गई है। वह बहता जा रहा था, किसी तरह किनारे पर रुका। गंगा घाट पर चढ़कर वह चलने लगा। चलते-चलते वह एक गाँव के पास पहुँचा, जहाँ एक मादा हाथी ने उसे फूलों की माला पहनाई। बहुत से लोग इकट्ठा हो गए और बोले, “हमारे देश के राजा का निधन हो गया है। यहाँ की परंपरा है कि राजा की मृत्यु के बाद जिस किसी को मादा हाथी माला पहनाएगी, वही हमारा नया राजा बनेगा। मादा हाथी ने तुम्हें माला पहनाई है, इसलिए अब तुम हमारे राजा हो।”
सुदामा हैरान रह गया, लेकिन वह राजा बन गया और एक राजकुमारी से विवाह भी कर लिया। उनके दो बेटे भी हुए और उनका जीवन खुशी से बीतने लगा। एक दिन सुदामा की पत्नी बीमार हो गई और मर गई। पत्नी की मृत्यु के शोक में सुदामा रोने लगे। राज्य के लोग भी वहाँ पहुँचे और बोले, “राजा जी, मत रोइए। यह तो माया नगरी का नियम है। आपकी पत्नी की चिता में आपको भी प्रवेश करना होगा।”
यह कहानी महार्षि कंबन द्वारा तमिल भाषा में लिखित “इरामा-अवतारम” से ली गई है, जो वाल्मीकि रामायण और तुलसी रामायण में नहीं मिलती।
श्रीराम ने समुद्र पर पुल बनाने के बाद, महेश्वर-लिंग-विग्रह की स्थापना के लिए रावण को आचार्य के रूप में आमंत्रित करने के लिए जामवंत को भेजा। जामवंत ने रावण को यह संदेश दिया कि श्रीराम ने उन्हें आचार्य के रूप में नियुक्त करने का निर्णय लिया है। रावण ने इसे सम्मानपूर्वक स्वीकार किया।
रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बैठाकर श्रीराम के पास ले गया और खुद आचार्य के रूप में अनुष्ठान का संचालन किया। अनुष्ठान के दौरान, रावण ने श्रीराम से उनकी पत्नी के बिना अनुष्ठान पूरा नहीं होने की बात कही। तब श्रीराम ने सीता को अनुष्ठान में शामिल होने का आदेश दिया।
एक बार की बात है, एक गाँव था जहाँ भागवत कथा का आयोजन किया गया था। एक पंडित कथा सुनाने आया था जो पूरे एक सप्ताह तक चली। अंतिम अनुष्ठान के बाद, जब पंडित दान लेकर घोड़े पर सवार होकर जाने को तैयार हुआ, तो धन्ना जाट नामक एक सीधे-सादे और गरीब किसान ने उसे रोक लिया।
धन्ना ने कहा, “हे पंडित जी! आपने कहा था कि जो भगवान की सेवा करता है, उसका बेड़ा पार हो जाता है। लेकिन मेरे पास भगवान की मूर्ति नहीं है और न ही मैं ठीक से पूजा करना जानता हूँ। कृपया मुझे भगवान की एक मूर्ति दे दीजिए।”
पंडित ने उत्तर दिया, “आप स्वयं ही एक मूर्ति ले आइए।”
धन्ना ने कहा, “लेकिन मैंने तो भगवान को कभी देखा ही नहीं, मैं उन्हें कैसे लाऊँगा?”
उन्होंने पिण्ड छुडाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- “ये ठाकुरजी हैं ! इनकी सेवा पूजा करना।’
“सच्ची भक्ति: सेवा और करुणा का मार्ग”
एक समय की बात है, एक शहर में एक धनवान सेठ रहता था। उसके पास बहुत दौलत थी और वह कई फैक्ट्रियों का मालिक था।
एक शाम, अचानक उसे बेचैनी की अनुभूति होने लगी। डॉक्टरों ने उसकी जांच की, लेकिन कोई बीमारी नहीं मिली। फिर भी उसकी बेचैनी बढ़ती गई। रात को नींद की गोलियां लेने के बावजूद भी वह नींद नहीं पा रहा था।
आखिरकार, आधी रात को वह अपने बगीचे में घूमने निकल गया। बाहर आने पर उसे थोड़ा सुकून मिला, तो वह सड़क पर चलने लगा। चलते-चलते वह बहुत दूर निकल आया और थककर एक चबूतरे पर बैठ गया।
तभी वहां एक कुत्ता आया और उसकी एक चप्पल ले गया। सेठ ने दूसरी चप्पल उठाकर उसका पीछा किया। कुत्ता एक झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में घुस गया। जब सेठ नजदीक पहुंचा, तो कुत्ते ने चप्पल छोड़ दी और भाग गया।
इसी बीच, सेठ ने किसी के रोने की आवाज सुनी। वह आवाज एक झोपड़ी से आ रही थी। अंदर झांककर उसने देखा कि एक गरीब औरत अपनी बीमार बच्ची के लिए रो रही है और भगवान से मदद मांग रही है।
शुरू में सेठ वहां से चला जाना चाहता था, लेकिन फिर उसने औरत की मदद करने का फैसला किया। जब उसने दरवाजा खटखटाया तो औरत डर गई। सेठ ने उसे आश्वस्त किया और उसकी समस्या