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very short story in hindi with moral सेठ और कुत्ता

“सच्ची भक्ति: सेवा और करुणा का मार्ग”

very short story in hindi with moral सेठ और कुत्ता

एक समय की बात है, एक शहर में एक धनवान सेठ रहता था। उसके पास बहुत दौलत थी और वह कई फैक्ट्रियों का मालिक था।

एक शाम, अचानक उसे बेचैनी की अनुभूति होने लगी। डॉक्टरों ने उसकी जांच की, लेकिन कोई बीमारी नहीं मिली। फिर भी उसकी बेचैनी बढ़ती गई। रात को नींद की गोलियां लेने के बावजूद भी वह नींद नहीं पा रहा था।

आखिरकार, आधी रात को वह अपने बगीचे में घूमने निकल गया। बाहर आने पर उसे थोड़ा सुकून मिला, तो वह सड़क पर चलने लगा। चलते-चलते वह बहुत दूर निकल आया और थककर एक चबूतरे पर बैठ गया।

तभी वहां एक कुत्ता आया और उसकी एक चप्पल ले गया। सेठ ने दूसरी चप्पल उठाकर उसका पीछा किया। कुत्ता एक झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में घुस गया। जब सेठ नजदीक पहुंचा, तो कुत्ते ने चप्पल छोड़ दी और भाग गया।

इसी बीच, सेठ ने किसी के रोने की आवाज सुनी। वह आवाज एक झोपड़ी से आ रही थी। अंदर झांककर उसने देखा कि एक गरीब औरत अपनी बीमार बच्ची के लिए रो रही है और भगवान से मदद मांग रही है।

शुरू में सेठ वहां से चला जाना चाहता था, लेकिन फिर उसने औरत की मदद करने का फैसला किया। जब उसने दरवाजा खटखटाया तो औरत डर गई। सेठ ने उसे आश्वस्त किया और उसकी समस्या जानी।

औरत ने बताया कि उसकी बच्ची बहुत बीमार है और इलाज का खर्चा बहुत अधिक है। वह घरों में काम करके अपना गुजर-बसर करती है, इसलिए वह इलाज नहीं करवा सकती। एक संत ने उसे सुबह भगवान से मदद मांगने को कहा था, इसलिए वह रो रही थी।

यह सुनकर सेठ का दिल पिघल गया। उसने तुरंत एम्बुलेंस बुलवाई और बच्ची का इलाज कराने की व्यवस्था की। साथ ही उसने औरत को अपने यहां नौकरी दी और बच्ची की शिक्षा का खर्च उठाने का वादा किया।

इस घटना ने सेठ के जीवन में बदलाव ला दिया। वह समझ गया कि मानवता की सेवा ही सच्ची भक्ति है। भगवान के पास पहुंचने का रास्ता गरीब और असहाय लोगों की मदद करना है। धर्म और जाति से परे, हमें दूसरों की सहायता करनी चाहिए।

इस कहानी से निम्नलिखित सीख और नैतिक मूल्य निकलते हैं:

  1. सेवा भाव: कहानी का मुख्य संदेश है कि मानव और प्राणी सेवा ही सच्ची भक्ति या ईश्वर की उपासना है। सेठ ने जब गरीब औरत और उसकी बीमार बेटी की मदद की, तभी उसे अपने जीवन का सच्चा आनंद मिला।
  2. करुणा और दया: सेठ का दिल गरीब औरत की दुर्दशा देखकर पिघल गया। उसने उस पर करुणा दिखाई और उसकी मदद की। यह करुणा और दया का महत्वपूर्ण पाठ है।
  3. परोपकार की भावना: कहानी सिखाती है कि हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए, खासकर उन लोगों की जो असहाय और लाचार हैं। परोपकार से ही सच्चा आनंद मिलता है।
  4. भेदभाव का अभाव: सेठ ने जाति, धर्म या वर्ग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया। उसने केवल दर्द को देखा और मदद की। यह एकता और समानता का संदेश देता है।
  5. विनम्रता और सरलता: बाहरी दौलत के बावजूद, सेठ अंततः समझ गया कि सच्चा सुख विनम्रता और सरलता में निहित है।
  6. आस्था और विश्वास: औरत की आस्था और भगवान पर विश्वास कहानी का केंद्रीय बिंदु है। इससे सीख मिलती है कि हमें भी अपनी आस्था और विश्वास को बनाए रखना चाहिए।
  7. प्रेरणा: कहानी हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपने जीवन में दूसरों की मदद करें और उनके दुःख को दूर करने का प्रयास करें।

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इस तरह, यह कहानी नैतिक मूल्यों की एक समृद्ध सीख देती है और हमें बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित करती है।

भगवद् गीता में कई श्लोक हैं जो इस कहानी के संदेश से मेल खाते हैं। कुछ प्रासंगिक गीता श्लोक इस प्रकार हैं:

  1. परोपकार और सेवा भाव के बारे में:

“परोपकाराय पुण्याय पाथाय च भुतानाम्” (गीता 3.20)
अर्थात् दूसरों की भलाई, पुण्य और सभी प्राणियों की रक्षा के लिए कर्म करो।

  1. करुणा और दया के बारे में:
    “विद्या विनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
    शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।।” (गीता 5.18)
    अर्थात् ज्ञानी और विनम्र ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ते और चांडाल में समान दृष्टि रखते हैं।
  2. समता और भेदभाव न करने के बारे में:
    “विद्या-विनय-सम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
    शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।।” (गीता 5.18)
    अर्थात् ज्ञानी लोग ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ते और चांडाल में कोई भेद नहीं करते।
  3. भगवान पर आस्था और विश्वास रखने के बारे में:
    “अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
    तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥” (गीता 9.22)
    अर्थात् जो लोग एकनिष्ठ भाव से मेरी उपासना करते हैं, उन सदा योगयुक्त जनों का कल्याण मैं स्वयं करता हूं।

इस प्रकार, गीता के ये श्लोक सेवा, करुणा, समता, आस्था और विश्वास के मूल्यों को प्रतिपादित करते हैं, जो इस कहानी के केंद्रीय संदेश से मेल खाते हैं।

रामचरितमानस में भी ऐसे अनेक दोहे और चौपाइयाँ हैं जो इस कहानी के संदेश से मेल खाती हैं। कुछ प्रासंगिक उद्धरण इस प्रकार हैं:

  1. सेवा भाव के बारे में:

“जननि सेवा सुखु नहिं आनु। अवसरु पावन गहिअ बिगानु॥” (अर्थात् माता की सेवा से बड़ा और कोई सुख नहीं है, इस पवित्र अवसर को हाथ से न जाने दो।)

  1. करुणा और दया के बारे में: “निज कृपा निधि दीन दयालू। छोटेनिअरे बडेनिअघालू॥” (अर्थात् वे करुणा के भंडार और दीनों पर दयालु हैं। छोटों को भी वे अपनाते हैं और बड़ों का भी कल्याण करते हैं।)
  2. समानता और भेदभाव न करने के बारे में: “सबहीं सुमिरि सबहि संग राखा। इहाँ न कोउ बिदेसी नाँचा॥” (अर्थात् सभी को स्मरण करते हैं और सभी का साथ देते हैं। यहां कोई विदेशी या अपना नहीं है।)
  3. भगवान पर आस्था और विश्वास रखने के बारे में: “जिन्ह केहि अवगुन देखि न आवा। तिन्ह सम दुख भंजन कोउ नाहीं॥” (अर्थात् जिनकी कृपा दृष्टि से कोई दोष नहीं दिखाई देता, उन्हीं के समान दुख निवारक और कोई नहीं है।)

इस प्रकार, रामचरितमानस के ये उद्धरण भी सेवा, करुणा, समानता और आस्था के मूल्यों को रेखांकित करते हैं, जो इस कहानी के मूल संदेश से मेल खाते हैं।

जी हां, रामचरितमानस से इस प्रेरक कहानी के संदर्भ में और भी कई प्रासंगिक दोहे और चौपाइयाँ हैं। कुछ अन्य उद्धरण इस प्रकार हैं:

सेवा भाव के बारे में:
“जननी जनक सेवकु सुर नायकु, जिन्ह के जसु गावहिं सुर मुनि नर।”
(माता-पिता की सेवा करना, देवताओं और मनुष्यों का नायक बनना, जिनकी महिमा देवता, मुनि और मनुष्य गाते हैं।)

करुणा और दया के बारे में:
“करउँ प्रनामु दीनदयाल प्रभु कहुँ कछु न जरऊँ मरमु मन लाई।”
(मैं दीनों पर दया करने वाले प्रभु को प्रणाम करता हूँ, मैं मन लगाकर कुछ भी नहीं डरता।)

समानता और भेदभाव न करने के बारे में:
“सुनहु राम भगत बच रामा। प्रभु समभाव रहे निरामा।”
(सुनो प्रभु राम के भक्त रामा, प्रभु निष्पक्ष और समान व्यवहार करते हैं।)

आस्था और विश्वास के बारे में:
“भगति भाव भगत हित लागी। आपन भगत प्रभु अनुरागी॥”
(भक्ति का भाव भक्तों के हित में लगा है, प्रभु अपने भक्तों से प्रेम करते हैं।)

इस तरह रामचरितमानस में भी मानवता, सेवा, दया, समानता और आस्था जैसे मूल्यों पर बल दिया गया है, जो इस प्रेरक कहानी के मूल संदेश से मेल खाते हैं।

जी हां, रामचरितमानस से इस प्रेरक कहानी के संदेश से मेल खाने वाले लगभग 20 प्रासंगिक दोहे और चौपाइयां इस प्रकार हैं:

1) “जननी जनक सेवकु सुर नायकु, जिन्ह के जसु गावहिं सुर मुनि नर।”
(माता-पिता की सेवा करना, देवताओं और मनुष्यों का नायक बनना)

2) “जनक कर सेवकसम कोउ नाहीं, ताते सेवकहि सब कर माहीं।”
(माता-पिता की सेवा के समान कोई दूसरा काम नहीं है)

3) “धन्य जननी धन्य पितु धन्य, जिन्ह गर्भ समाजु तन ध्रवा।”
(धन्य है वह माता और धन्य है वह पिता, जिनके गर्भ से तुम्हारा शरीर निकला।)

4) “करउँ प्रनामु दीनदयाल प्रभु कहुँ कछु न जरऊँ मरमु मन लाई।”
(मैं दीनों पर दया करने वाले प्रभु को प्रणाम करता हूँ।)

5) “निज कृपा निधि दीन दयालू।”
(वह करुणा के भंडार और दीनों पर दयालु हैं।)

6) “सुनहु राम भगत बच रामा। प्रभु समभाव रहे निरामा।”
(सुनो प्रभु राम के भक्त रामा, प्रभु निष्पक्ष और समान व्यवहार करते हैं।)

7) “सबहीं सुमिरि सबहि संग राखा। इहाँ न कोउ बिदेसी नाँचा॥”
(सभी को स्मरण करते हैं और सभी का साथ देते हैं। यहां कोई विदेशी या अपना नहीं है।)

8) “भाषा प्रेम रसात्मक बानी। सुनिअ मनोहर मन रमानी॥”
(प्रेम से भरी आत्मीय वाणी सुनने में मनोहर और मन को आनंदित करने वाली है।)

9) “भगति भाव भगत हित लागी। आपन भगत प्रभु अनुरागी॥”
(भक्ति का भाव भक्तों के हित में लगा है, प्रभु अपने भक्तों से प्रेम करते हैं।)

10) “जिन्ह केहि अवगुन देखि न आवा। तिन्ह सम दुख भंजन कोउ नाहीं॥”
(जिनकी कृपा दृष्टि से कोई दोष नहीं दिखाई देता, उन्हीं के समान दुख निवारक और कोई नहीं है।)

11) “सबकेहि हितकारी भगवाना। दीनबंधु दुखिहरण सुजाना॥”
(भगवान सबके हित के लिए हैं, वे दीनों के बंधु और दुखहर्ता हैं।)

12) “भजहिं नामु जासु अनिवारा। सो अवतरेउ मोहि उधारा॥”
(जिसके नाम का स्मरण निरंतर होता है, वही मुझे उद्धार करने के लिए अवतरित हुए हैं।)

13) “तुलसी सहज सुभाउ भगवंता। जन हित लागी रघुकुल चंदा॥”
(तुलसीदास कहते हैं कि भगवान का स्वभाव ही सरल है, वे जनहित में लगे हुए हैं।)

14) “भजिअ राम कृपालु अनुरागी। दीनबंधु दुखिहरण सुखदागी॥”
(प्रभु राम कृपालु और प्रेमी हैं, वे दीनों के बंधु, दुःखहरण और सुखकारी हैं।)

15) “दीनदयालु सीलु संतन की रही।”
(दीनों पर दया करना संतों की शील रही है।)

16) “साधु समाज सुखद सुखमय सुंदर बचन सुनहु रघुनायक।”
(राम, साधुओं के समाज में सुखद और आनंदमय सुंदर वचन सुनिए।)

17) “परभु प्रसादु जीव नहिं तरई। जनमु धरेउ फिरि जोनि भ्रमई॥”
(भगवान की कृपा के बिना कोई जीव मुक्ति नहीं पा सकता, वह बार-बार जन्म लेता है और संसार में भ्रमण करता है।)

18) “नाथ नगरनारि समेत, जहाँ सकल पुरजन कर हित चहत।”
(नाथ, नगर और नारियां समेत, जहां सभी निवासी एक-दूसरे के हित की इच्छा रखते हैं।)

19) “जिन्ह प्रभु प्रेम न आनेउ सोई।”
(जिन्होंने प्रभु के प्रेम को नहीं जाना।)

20) “उमा रघुबीर बिमल गुन सागर, एहि गुन मालिका गनौं कवन बिधि आगर।”
(उमा, रघुवीर के निर्मल गुणों का समुद्र है, इस गुणों की माला को कैसे गिना जाए।)

इस प्रकार, रामचरितमानस में सेवा, करुणा, समानता, आस्था और भक्ति जैसे सदगुणों और उच्च मानवीय मूल्यों को बहुत महत्व दिया गया है, जो इस कहानी की मूल प्रेरणा से मेल खाते हैं।

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