हर ग्यारस पे बाबा

ग्यारस के भजन ढोलक पर lyrics हर ग्यारस पे बाबा

हर ग्यारस पे बाबा,

मुझे खाटू आना है,

खाटू नगरी आकर,

तुझे भजन सुनाना है,

हर ग्यारस पे बाबा,

मुझे खाटू आना है,

खाटू नगरी आकर,

तुझे भजन सुनाना है……..

चाहे तू मरूधर से,

मेरा टिकट कटा देना,

या फिर चाहे मुझ को,

वोल्वो में बिठा देना,

अब आगे तू जाणे,

मुझे कैसे बुलाना है,

खाटू नगरी आकर,

तुझे भजन सुनाना है,

हर ग्यारस पे बाबा,

मुझे खाटू आना है,

खाटू नगरी आकर,

तुझे भजन सुनाना है……..

पहले मुझे तोरण द्वार पे,

शीश झुकाना है,

फिर श्याम कुण्ड जाकर,

डुबकी भी लगाना है,

मुझे श्याम प्रेमियों संग,

सेल्फी खिंचवाना है,

खाटू नगरी आकर,

तुझे भजन सुनाना है,

हर ग्यारस पे बाबा,

मुझे खाटू आना है,

खाटू नगरी आकर,

तुझे भजन सुनाना है……..

चाहे जितनी लम्बी,

लाइन में लगा लेना,

पर श्याम धणी अपने,

भक्तों से मिला देना,

लाइन में खड़े होकर,

मुझे आरती गाना है

खाटू नगरी आकर,

तुझे भजन सुनाना है,

हर ग्यारस पे बाबा,

मुझे खाटू आना है,

खाटू नगरी आकर,

तुझे भजन सुनाना है……..

राधे की हवेली में,

मुझे धूम मचाना है,

और कला भवन जाकर,

ताली भी बजाना है,

हर मंडल में जाकर,

हाजिरी लगाना है,

खाटू नगरी आकर,

तुझे भजन सुनाना है,

हर ग्यारस पे बाबा,

मुझे खाटू आना है,

खाटू नगरी आकर,

तुझे भजन सुनाना है……..

कलकत्ता वाली में,

मुझे रूम दिला देना

फिर चौक कबूतर पे,

कचौरी खिला देना,

मुझे मेरा हर एक पल,

तेरे साथ बिताना है,

खाटू नगरी आकर,

तुझे भजन सुनाना है,

हर ग्यारस पे बाबा,

मुझे खाटू आना है,

खाटू नगरी आकर,

तुझे भजन सुनाना है……..

स्पेशल देशी घी का,

चूरमा लाना है,

मेवा मिश्री चंदन का,

इत्र चढ़ाना है,

तुझ को मोहित करके,

तुझे अपना बनाना है,

खाटू नगरी आकर,

तुझे भजन सुनाना है,

हर ग्यारस पे बाबा,

मुझे खाटू आना है,

खाटू नगरी आकर,

तुझे भजन सुनाना है……..

हर ग्यारस पे बाबा,

मुझे खाटू आना है,

खाटू नगरी आकर,

तुझे भजन सुनाना है,

हर ग्यारस पे बाबा,

मुझे खाटू आना है,

खाटू नगरी आकर,

तुझे भजन सुनाना है.

ग्यारस के भजन ढोलक पर lyrics हर ग्यारस पे बाबा

“भरोसा जितना कीमती होता है…!
धोखा उतना ही महंगा हो जाता है
फूल कितना भी सुन्दर हो🌷
🌸 तारीफ खुशबू से होती है
इंसान कितना भी बड़ा हो
कद्र उसके गुणों से होता है”

तलाश जिंदगी की थी
दूर तक निकल पड़े,,,,

जिंदगी मिली नही
तज़ुर्बे बहुत मिले,;;

किसी ने मुझसे कहा कि…
तुम इतना ख़ुश कैसे रह लेते हो?
तो मैंने कहा कि….
मैंने जिंदगी की गाड़ी से…
वो साइड ग्लास ही हटा दिये…
जिसमेँ पीछे छूटते रास्ते और..
बुराई करते लोग नजर आते थे..

विचार ऐसे रखो कि तुम्हारे
विचारो पर भी किसी को विचार करना पड़े
समुद्र बनकर क्या फायदा
बनना है तो तालाब बनो
जहाँपर शेर भी पानी पीयें तो
गर्दन झूकाकर

जीवन गणित है
सांसें घटती है
अनुभव जुड़ते है।

अलग अलग कोष्ठकों में बंद हम
बुनते रहते है, समीकरण
लगाते रहते हैं, गुणा-भाग।

जबकि जीवन का अंतिम सत्य
शून्य है

एक दिन भगवान श्री कृष्ण और बलराम जी गायों को चराते हुए भूखे हो गए, तो उन्होंने अपने दोस्तों से कहा, “हे मित्रों! यहाँ पास में कुछ ब्राह्मण यज्ञ कर रहे हैं, तुम उनसे हमारे लिए कुछ भोजन माँग लाओ।”

ग्वाल-बाल विनम्रता से ब्राह्मणों से भोजन सामग्री माँगने गए, लेकिन ब्राह्मण लोग स्वर्ग-आदि लोक के सुख की कामना में यज्ञ में इतने खोए हुए थे कि उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया कि यह अन्न स्वयं भगवान श्री कृष्ण माँग रहे हैं।

ग्वाल-बाल खाली हाथ लौटकर आए तो प्रभु ने कहा, “अब तुम उनकी पत्नियों से जाकर माँगना।” जैसे ही ब्राह्मणों की पत्नियों ने सुना कि श्री कृष्ण पास ही हैं और उन्हें भूख लगी है, वे लोक-लाज की परवाह किए बिना, अपने भाई-बंधुओं और पतियों की आज्ञा छोड़कर प्रभु के पास आयीं और उन्हें मीठे दही-भात का भोग लगाया।

ब्राह्मणों ने अपनी पत्नियों को चेतावनी दी थी कि अगर वे चली गईं तो उन्हें उनसे नाता तोड़कर जाना होगा, फिर भी वे प्रभु के पास आ गईं। ब्राह्मणों की पत्नियों ने केवल भगवान की लीला-कथा सुनी थी, और उसी साधन के प्रभाव से आज प्रभु स्वयं उनसे भोजन माँगकर अपने दर्शन का आनंद देना चाह रहे थे। धन्य हैं वे लोग जिनका जीवन ही प्रभु की कथा है। हमें भी प्रभु की कथा को नित्य साधन समझकर उनके दर्शन के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।

भगवान श्री कृष्ण के सम्मुख आज ब्राह्मण-पत्नियाँ दही-भात और अन्य व्यंजन लिए खड़ी थीं। जब उन्होंने कृष्ण और बलराम की युगल छवि का दर्शन किया, तो एक क्षण के लिए मानो समय ही रुक गया। उनके मुख से अनायास ही निकल पड़ा, “प्रभु! कितने सुंदर हैं।”

भगवान ने उनका स्वागत किया, उनका धन्यवाद किया और कहा, “धन्य हैं आप, जो हमारी अन्न की याचना स्वीकार की। आपको मेरे दर्शन की लालसा थी, अब आप दर्शन कर चुकी हैं, इसलिए घर लौट जाइए। आपके पति आपके बिना यज्ञ पूरा नहीं कर सकते।”

यज्ञ-पत्नियों ने कहा, “प्रभु, हम उनसे लड़कर, सब बंधनों का त्याग करके आपके पास आयी हैं। और एक बार जो आपका हो जाता है, जिसे आप स्वीकार कर लेते हैं, उसे संसार में दोबारा नहीं जाना पड़ता।”

प्रभु बोले, “जो मेरा हो जाता है, उसे संसार के लोग चाहकर भी नहीं त्याग सकते। आप अपने-अपने घर लौट जाइए, आपके साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं होगा।”

भगवान श्री कृष्ण ने पहले सभी ग्वाल-बालों को वह प्रेम से लाया गया भोजन खिलाया और फिर स्वयं खाया। हमें प्रभु से यह भी सीखना है कि सामूहिक भोजन करने का तरीक़ा यही है।

इधर, यज्ञ-पत्नियाँ जब घर पहुँचीं तो ब्राह्मणों ने उन्हें कुछ नहीं कहा, बल्कि सत्कार करके उन्हें यज्ञ में बैठने को कहा। यज्ञ-पत्नियों ने सारा वृतांत सुनाया और बताया कि नंद के लाला साक्षात भगवान हैं। जब ब्राह्मणों को यह बोध हुआ कि ग्वाल-बाल आए थे और हमसे अन्न की याचना की थी और हम कर्म-कांड में लगे रहे, तो उन्हें अत्यंत पश्चाताप हुआ।

वे अपने आप को कोसने लगे, “हाय रे विधाता! हमसे कैसा गुनाह हो गया। प्रभु ने सामने से अपना हाथ बढ़ा कर हमें दर्शन देना चाहा और हम ही मुँह फेर कर बैठे रहे।”

वे प्रभु के चरणों में गिर पड़े और चरण धूल लगाने लगे। धन्य हैं आप! बोल-बोलकर उनका सत्कार किया और पछताने लगे।

यह प्रसंग हमें समझाता है कि किस प्रकार घर रहकर भी प्रभु को साक्षात पाया जा सकता है। यज्ञ-पत्नियों को प्रभु ने घर छोड़ने का आदेश नहीं दिया है, बल्कि घर में रहकर भजन करने की आज्ञा दी है। और यह जो ब्राह्मण पछता रहे हैं, यह हम जीव हैं जो प्रभु के दर्शन की दस्तक को पहचान नहीं पा रहे हैं। उनकी प्राप्ति हर जगह, हर अवस्था में संभव है, चाहिए तो केवल प्रेम-समर्पण और बरसती हुई अनवरत कृपा का अनुभव।

इस कहानी से हमें कई महत्वपूर्ण शिक्षाएँ मिलती हैं:

  1. भक्ति और प्रेम का महत्व:
  • ब्राह्मणों की पत्नियों ने अपने प्रभु के प्रति प्रेम और भक्ति को प्राथमिकता दी, चाहे उनके पति ने उन्हें मना भी किया हो। यह दिखाता है कि सच्ची भक्ति और प्रेम में आत्मसमर्पण की भावना होती है।
  1. दर्शन की लालसा और प्रयास:
  • ब्राह्मणों की पत्नियाँ सिर्फ़ भगवान की कथा सुनती थीं और उनके दर्शन की लालसा रखती थीं। जब उन्हें अवसर मिला, उन्होंने उसे पूरी तरह से अपनाया। इससे यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ रहना चाहिए और अवसर मिलने पर उसे हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।
  1. सामाजिक बंधनों का त्याग:
  • ब्राह्मणों की पत्नियों ने सामाजिक बंधनों और परंपराओं को त्यागकर भगवान के दर्शन के लिए आगे बढ़ीं। यह दर्शाता है कि कभी-कभी हमें अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों के लिए सामाजिक बंधनों को तोड़ने का साहस दिखाना चाहिए।
  1. सच्चे भक्त को प्रभु का सानिध्य मिलता है:
  • ब्राह्मणों की पत्नियाँ सच्चे भक्त थीं, इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें अपने पास बुलाया और अपने दर्शन दिए। इससे यह शिक्षा मिलती है कि सच्चे भक्त को प्रभु का सानिध्य अवश्य मिलता है।
  1. संकल्प और सेवा का महत्व:
  • भगवान ने ग्वाल-बालों से कहा कि वे ब्राह्मणों की पत्नियों से भोजन माँगे। इससे यह स्पष्ट होता है कि सेवा और संकल्प के प्रति समर्पित रहना चाहिए, चाहे प्रारंभ में असफलता मिले।
  1. पश्चाताप और सुधार:
  • ब्राह्मणों ने अपनी गलती का पश्चाताप किया और प्रभु के चरणों में गिर पड़े। इससे यह शिक्षा मिलती है कि गलती का एहसास होने पर पश्चाताप और सुधार करना महत्वपूर्ण है।
  1. साझा भोजन और सामूहिकता:
  • भगवान ने सबसे पहले ग्वाल-बालों को भोजन खिलाया और फिर स्वयं खाया। इससे यह संदेश मिलता है कि सामूहिक भोजन और साझेदारी का महत्व है।
  1. घर में रहकर भी भक्ति संभव:
  • भगवान ने ब्राह्मणों की पत्नियों को घर लौटने का आदेश दिया और कहा कि वे घर में रहकर भी भक्ति कर सकती हैं। इससे यह शिक्षा मिलती है कि भक्ति के लिए घर छोड़ने की आवश्यकता नहीं है, हम अपने दैनिक जीवन में भी भक्ति कर सकते हैं।

यह कहानी हमें बताती है कि सच्ची भक्ति, प्रेम, सेवा, और पश्चाताप से हमें भगवान का सानिध्य प्राप्त होता है और जीवन में सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।

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