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छोटी कहानी इन हिंदी रावण की माँग

लंका के शासक रावण की माँग

यह कहानी महार्षि कंबन द्वारा तमिल भाषा में लिखित “इरामा-अवतारम” से ली गई है, जो वाल्मीकि रामायण और तुलसी रामायण में नहीं मिलती।

श्रीराम ने समुद्र पर पुल बनाने के बाद, महेश्वर-लिंग-विग्रह की स्थापना के लिए रावण को आचार्य के रूप में आमंत्रित करने के लिए जामवंत को भेजा। जामवंत ने रावण को यह संदेश दिया कि श्रीराम ने उन्हें आचार्य के रूप में नियुक्त करने का निर्णय लिया है। रावण ने इसे सम्मानपूर्वक स्वीकार किया।

रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बैठाकर श्रीराम के पास ले गया और खुद आचार्य के रूप में अनुष्ठान का संचालन किया। अनुष्ठान के दौरान, रावण ने श्रीराम से उनकी पत्नी के बिना अनुष्ठान पूरा नहीं होने की बात कही। तब श्रीराम ने सीता को अनुष्ठान में शामिल होने का आदेश दिया।

रावण ने विधिपूर्वक अनुष्ठान संपन्न कराया और श्रीराम को लंका विजय के लिए आशीर्वाद दिया। कहानी यह दर्शाती है कि सच्ची भक्ति और ज्ञान का सम्मान करना चाहिए, भले ही वे विरोधी क्यों न हों।

रावण न केवल शिव भक्त, विद्वान और वीर था, बल्कि वह एक महान मानवतावादी भी था। वह भविष्य को जानता था। उसे पता था कि श्रीराम को हराना उसके लिए असंभव है।

जब श्रीराम ने खर-दूषण को आसानी से मार दिया, तब तुलसी मानस में भी रावण की भावनाएँ लिखी गईं–

जामवंत जी को रावण के लिए आचार्यत्व का निमंत्रण देने लंका भेजा गया था। जामवंत जी लंबे थे, आकार में कुम्भकर्ण से थोड़ा छोटे। लंका में भी पहरेदार हाथ जोड़े रास्ता दिखा रहे थे। इस प्रकार, जामवंत को किसी से कुछ पूछना नहीं पड़ा। रावण को स्वयं राजद्वार पर उन्हें नमस्कार करते देख, जामवंत मुस्कुराए और बोले कि मैं नमस्कार योग्य नहीं हूँ। मैं वनवासी राम का संदेशवाहक बनकर आया हूँ। उन्होंने आपको अपनी विनम्र नमस्ते भेजी है।

रावण ने विनम्रता से कहा – “आप हमारे दादा के भाई हैं। इसलिए, आप हमारे लिए आदरणीय हैं। कृपया आसन ग्रहण करें। यदि आप मेरी विनती स्वीकार करेंगे, तो शायद मैं आपका संदेश ध्यानपूर्वक सुन पाऊंगा।”

जामवंत ने आपत्ति नहीं की। उन्होंने आसन ग्रहण किया। रावण भी आसन पर बैठ गए। इसके बाद, जामवंत ने बताया कि समुद्र पुल के निर्माण के बाद, वनवासी राम अब महेश्वर-लिंग-विग्रह की स्थापना करना चाहते हैं। इस अनुष्ठान को पूरा करने के लिए उन्होंने ब्राह्मण, वैदिक विद्वान और शैव रावण को आचार्य के पद पर नियुक्त करने की इच्छा व्यक्त की है।

“मैं उनके आग्रह पर आपको आमंत्रित करने आया हूँ।”

अभिवादन और प्रतिक्रिया के बाद, रावण ने मुस्कुराते हुए पूछा, “क्या राम लंका को जीतने की इच्छा से महेश्वर-लिंग-विग्रह की स्थापना कर रहे हैं?”

“बिल्कुल सही। श्रीराम महेश्वर के चरणों के प्रति पूरी भक्ति रखते हैं।”

अपने जीवन में पहली बार किसी ने रावण को ब्राह्मण माना और उसे आचार्य बनने के योग्य समझा। क्या रावण इतना मूर्ख कहलाना चाहता था कि वह भारत के पहले प्रतिष्ठित महर्षि पुलस्त्य के असली भाई महर्षि वशिष्ठ के निमंत्रण को अस्वीकार कर दे और अपनी मूर्ति की स्थापना के लिए आचार्य बनने का निमंत्रण ठुकरा दे?

जामवंत को विदा करने के तुरंत बाद, लंका के राजा ने अपने सेवकों को आवश्यक सामग्री एकत्र करने का आदेश दिया और स्वयं अशोक वाटिका पहुँचे। यह आचार्य का कर्तव्य है कि वह आवश्यक उपकरण एकत्र करे, जो यजमान उपलब्ध नहीं करा सकता। रावण जानता है कि वनवासी राम के पास क्या है और क्या होना चाहिए।

अशोक वाटिका पहुँचने पर, रावण ने सीता को बताया कि राम लंका को जीतने की इच्छा से समुद्र तट पर महेश्वर लिंग की स्थापना करने जा रहे हैं और रावण को आचार्य के रूप में चुना है।

“यह आचार्य का कर्तव्य है कि यजमान के सभी अनुष्ठानों को पूरा करना सुनिश्चित करें। आप जानती हैं कि गृहस्थ के सभी अनुष्ठान उसकी पत्नी के बिना अधूरे हैं। विमान आ रहा है, उस पर बैठिए। याद रखिए कि आप वहाँ भी रावण के नियंत्रण में रहेंगी। अनुष्ठान पूरा होने के बाद फिर से विमान पर बैठकर यहाँ वापस आ जाइए।”

स्वामी का आचार्य मतलब आपका अपना आचार्य। यह जानते हुए, जानकी ने हाथ जोड़कर सिर झुका लिया।

“सौभाग्यशाली बनो” कहते हुए रावण ने दोनों हाथ उठाकर उन्हें आशीर्वाद दिया।

रावण सीता और अन्य आवश्यक उपकरणों के साथ आकाश से समुद्र तट पर उतरे। उन्होंने सीता को विमान में छोड़ते हुए कहा “आदेश मिलने पर आना” और स्वयं राम के सामने पहुँचे।

जामवंत से संदेश प्राप्त करने के बाद, श्रीराम अपने भाई, मित्रों और सेना के साथ पहले से ही उनके स्वागत के लिए तैयार थे। जैसे ही वे वनवासी राम के सामने आए, उन्होंने हाथ जोड़कर आचार्य दशग्रीव को नमस्कार किया।

“आप जीवित रहें! आप लंका पर विजय प्राप्त करें!”

दशग्रीव के आशीर्वाद के शब्दों ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया।

उन्होंने न केवल सुग्रीव को नजरअंदाज किया बल्कि विभीषण को भी। मानो वे वहाँ थे ही नहीं।

भूमि शुद्धिकरण के बाद, रावण आचार्य ने कहा

“यजमान! आपकी अर्धांगिनी कहाँ हैं? उन्हें उनके स्थान पर आसन दीजिए।”

श्रीराम ने सिर झुकाकर और हाथ जोड़कर बहुत विनम्र स्वर में प्रार्थना की कि यदि यजमान असमर्थ है, तो योग्य आचार्य सर्वोत्तम विकल्प की अनुपस्थिति में किसी अन्य समकक्ष विकल्प के साथ अनुष्ठान कर सकता है।

“बिल्कुल, लेकिन यह अन्य विकल्पों की अनुपस्थिति में संभव है, न कि मुख्य विकल्प की अनुपस्थिति में। यह तब संभव होता अगर आप अविवाहित, विधुर या परित्यक्त होते। इसके अलावा, आप संन्यासी नहीं हैं और आपने वानप्रस्थ का व्रत नहीं लिया है। इन परिस्थितियों में, आप बिना पत्नी के अनुष्ठान कैसे कर सकते हैं?”

“कोई समाधान आचार्य?”

“आचार्य आवश्यक सामग्री और उपकरण अनुष्ठान के बाद वापस लेता है। यदि आप सहमत हैं, तो किसी को भेजें, यजमान की पत्नी समुद्र के पास पुष्पक विमान में बैठी है।”

श्रीराम ने सिर झुकाकर और हाथ जोड़कर चुपचाप इस सर्वोत्तम समाधान को स्वीकार किया। श्रीराम के आदेश का पालन करते हुए, विभीषण अपने मंत्रियों के साथ पुष्पक विमान के पास गए और सीता को लेकर लौटे।

“आधा यजमान, आधी यजमान को बैठाइए।”

वैदेही ने आचार्य के इस आदेश का पालन किया।

गणेश पूजा, कलश स्थापना और नवग्रह पूजा के बाद आचार्य ने पूछा – लिंग विग्रह?

यजमान ने अनुरोध किया कि पवन पुत्र रात के पहले पहर से उसे लाने के लिए कैलाश गए हैं। वे अभी तक नहीं लौटे हैं। वे जल्द ही आ रहे होंगे।

आचार्य ने आदेश दिया – “कोई देरी नहीं हो सकती। शुभ मुहूर्त उपस्थित है। इसलिए, यजमान की पत्नी को तुरंत लिंग-विग्रह बनाने के अनुष्ठान का पालन करना चाहिए।”

छोटी कहानी इन हिंदी रावण की माँग- कहानी से सीखें

कहानी की शिक्षा

  1. सच्ची भक्ति और सम्मान:
    • श्रीराम ने रावण को आचार्य के रूप में आमंत्रित किया, जिससे यह संदेश मिलता है कि सच्ची भक्ति और सम्मान जाति, वर्ग या दुश्मनी से परे होते हैं। रावण को आचार्य का पद देकर श्रीराम ने उनके ज्ञान और भक्ति का सम्मान किया।
  2. धर्म और कर्तव्य पालन:
    • रावण ने श्रीराम के निमंत्रण को स्वीकार कर धर्म और कर्तव्य का पालन किया। यह दिखाता है कि सच्चा धर्म और कर्तव्य निभाना सबसे महत्वपूर्ण है, चाहे स्थिति कैसी भी हो।
  3. संबंधों का महत्व:
    • जामवंत के प्रति रावण का सम्मान यह दर्शाता है कि पारिवारिक और सामाजिक संबंधों का सम्मान करना कितना महत्वपूर्ण है। रावण ने जामवंत को आदर दिया क्योंकि वे उनके दादा के भाई थे।
  4. नम्रता और विनम्रता:
    • श्रीराम ने आचार्य रावण के सामने नम्रता और विनम्रता से सिर झुकाया, यह बताते हुए कि शक्ति और महानता विनम्रता में निहित होती है। इससे यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा विनम्र रहना चाहिए, चाहे हमारी स्थिति या शक्ति कितनी भी हो।
  5. समय और मुहूर्त का महत्व:
    • आचार्य रावण ने कहा कि शुभ मुहूर्त का पालन करना जरूरी है। यह दर्शाता है कि समय और सही अवसर का महत्व हमारी जीवन में बहुत बड़ा है। हमें अपने कार्यों को सही समय पर पूरा करना चाहिए।
  6. दूसरों के प्रति संवेदनशीलता:
    • रावण ने सीता से कहा कि वह अनुष्ठान में भाग ले और उसे यजमान की पत्नी का दर्जा दिया। यह सिखाता है कि हमें दूसरों की स्थिति और भावनाओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और उन्हें सम्मान देना चाहिए।
  7. विरोधी के प्रति भी आदर:
    • रावण ने श्रीराम और उनकी सेना के प्रति आदर दिखाया, जबकि वे उनके विरोधी थे। यह सिखाता है कि हमें अपने विरोधियों के प्रति भी सम्मान और आदर बनाए रखना चाहिए।
  8. धैर्य और सहनशीलता:
    • श्रीराम ने लिंग-विग्रह के निर्माण के लिए समय लिया और आचार्य के निर्देशों का पालन किया। यह सिखाता है कि धैर्य और सहनशीलता हमारे कार्यों में सफलता दिला सकती है।

कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति, धर्म पालन, संबंधों का सम्मान, विनम्रता, समय का महत्व, दूसरों के प्रति संवेदनशीलता, विरोधियों के प्रति आदर और धैर्य जैसे गुण हमें जीवन में महानता और सफलता की ओर ले जाते हैं।

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