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प्रदीप मिश्रा के रोग को दूर करने के उपाय

नाक रगड़ कर मांगी मांफी

प्रदीप मिश्रा के रोग को दूर करने के उपाय

विवाद का प्रारंभ

9 जून को विवादित बयान
पंडित प्रदीप मिश्रा ने 9 जून को ओंकारेश्वर में एक प्रवचन के दौरान विवादित बयान दिया था। उन्होंने कहा था, “राधा-रानी का नाम भगवान श्रीकृष्ण की 108 पटरानियों और 1600 रानियों में नहीं है। राधा जी का विवाह मथुरा के छाता कस्बा निवासी अनय घोष के साथ हुआ था। उनकी सास का नाम जटिला और ननद का नाम कुटिला था। राधा जी बरसाना की नहीं, रावल की रहने वाली थीं। बरसाना में उनके पिता की कचहरी थी, जहां वह साल में एक बार आती थीं।”

विवाद की प्रतिक्रियाएं

संत समाज का आक्रोश
पंडित प्रदीप मिश्रा के इस बयान के बाद संत समाज और ब्रजधाम के लोगों में भारी आक्रोश फैल गया। संत प्रेमानंद महाराज ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, “लाड़ली जी के बारे में तुम्हें क्या पता है? तुम जानते ही क्या हो? अगर तुम किसी संत के चरण रज का पान करके बात करते, तो तुम्हारे मुख से ऐसी वाणी नहीं निकलती।”

महापंचायत का आयोजन
ब्रज के साधु-संतों ने महापंचायत का आयोजन कर पंडित प्रदीप मिश्रा के खिलाफ विरोध दर्ज कराया। प्रेमानंद महाराज ने भी पंडित प्रदीप मिश्रा को माफी मांगने की बात कही थी।

माफी का घटनाक्रम

बरसाना में माफी मांगना
शनिवार को पंडित प्रदीप मिश्रा बरसाना पहुंचे। उन्होंने राधा रानी मंदिर में नाक रगड़कर माफी मांगी। मंदिर से बाहर निकलकर उन्होंने हाथ जोड़कर ब्रजवासियों का अभिनंदन किया और मीडिया से बातचीत में कहा, “मैं ब्रजवासियों के प्रेम की वजह से यहां आया हूं। लाडली जी ने खुद ही इशारा कर मुझे यहां बुलाया। मेरी वाणी से किसी को ठेस पहुंची है, तो उसके लिए माफी मांगता हूं।”

ब्रजवासियों से विनम्रता
पंडित प्रदीप मिश्रा ने ब्रजवासियों के चरणों में दंडवत प्रणाम कर माफी मांगी और कहा, “मैं लाडली जी और बरसाना सरकार से क्षमा चाहता हूं। सभी से निवेदन है कि किसी के लिए कोई अपशब्द न कहें। राधे-राधे कहें, महादेव कहें। मैं सभी महंत, धर्माचार्य और आचार्य से माफी मांगता हूं।”

निष्कर्ष

पंडित प्रदीप मिश्रा का विवादित बयान और इसके बाद के घटनाक्रम ने ब्रजधाम में गहरी छाप छोड़ी। हालांकि, उन्होंने अपनी गलती स्वीकारते हुए राधा रानी मंदिर में माफी मांगी और ब्रजवासियों के प्रेम और सम्मान को स्वीकार किया। इस पूरे घटनाक्रम ने सत्संग की महिमा और भक्तों के प्रति विनम्रता की महत्ता को भी उजागर किया।

प्रदीप मिश्रा के रोग को दूर करने के उपाय

श्रीकृष्ण की माया: सुदामा की कहानी

एक दिन श्रीकृष्ण ने कहा, “सुदामा, आओ, हम गोमती में स्नान करने चलें।” दोनों गोमती के किनारे गए, अपने कपड़े उतारे और नदी में प्रवेश किया। श्रीकृष्ण स्नान करके किनारे लौट आए और अपने पीले वस्त्र पहनने लगे। सुदामा ने एक और डुबकी लगाई, तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें अपनी माया दिखाई।

सुदामा को लगा कि नदी में बाढ़ आ गई है। वह बहता जा रहा था, किसी तरह किनारे पर रुका। गंगा घाट पर चढ़कर वह चलने लगा। चलते-चलते वह एक गाँव के पास पहुँचा, जहाँ एक मादा हाथी ने उसे फूलों की माला पहनाई। बहुत से लोग इकट्ठा हो गए और बोले, “हमारे देश के राजा का निधन हो गया है। यहाँ की परंपरा है कि राजा की मृत्यु के बाद जिस किसी को मादा हाथी माला पहनाएगी, वही हमारा नया राजा बनेगा। मादा हाथी ने तुम्हें माला पहनाई है, इसलिए अब तुम हमारे राजा हो।”

सुदामा हैरान रह गया, लेकिन वह राजा बन गया और एक राजकुमारी से विवाह भी कर लिया। उनके दो बेटे भी हुए और उनका जीवन खुशी से बीतने लगा। एक दिन सुदामा की पत्नी बीमार हो गई और मर गई। पत्नी की मृत्यु के शोक में सुदामा रोने लगे। राज्य के लोग भी वहाँ पहुँचे और बोले, “राजा जी, मत रोइए। यह तो माया नगरी का नियम है। आपकी पत्नी की चिता में आपको भी प्रवेश करना होगा।”

लंका के शासक रावण की माँग

यह कहानी महार्षि कंबन द्वारा तमिल भाषा में लिखित “इरामा-अवतारम” से ली गई है, जो वाल्मीकि रामायण और तुलसी रामायण में नहीं मिलती।

श्रीराम ने समुद्र पर पुल बनाने के बाद, महेश्वर-लिंग-विग्रह की स्थापना के लिए रावण को आचार्य के रूप में आमंत्रित करने के लिए जामवंत को भेजा। जामवंत ने रावण को यह संदेश दिया कि श्रीराम ने उन्हें आचार्य के रूप में नियुक्त करने का निर्णय लिया है। रावण ने इसे सम्मानपूर्वक स्वीकार किया।

रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बैठाकर श्रीराम के पास ले गया और खुद आचार्य के रूप में अनुष्ठान का संचालन किया। अनुष्ठान के दौरान, रावण ने श्रीराम से उनकी पत्नी के बिना अनुष्ठान पूरा नहीं होने की बात कही। तब श्रीराम ने सीता को अनुष्ठान में शामिल होने का आदेश दिया।

धन्ना जाट जी की कथा

एक बार की बात है, एक गाँव था जहाँ भागवत कथा का आयोजन किया गया था। एक पंडित कथा सुनाने आया था जो पूरे एक सप्ताह तक चली। अंतिम अनुष्ठान के बाद, जब पंडित दान लेकर घोड़े पर सवार होकर जाने को तैयार हुआ, तो धन्ना जाट नामक एक सीधे-सादे और गरीब किसान ने उसे रोक लिया।

धन्ना ने कहा, “हे पंडित जी! आपने कहा था कि जो भगवान की सेवा करता है, उसका बेड़ा पार हो जाता है। लेकिन मेरे पास भगवान की मूर्ति नहीं है और न ही मैं ठीक से पूजा करना जानता हूँ। कृपया मुझे भगवान की एक मूर्ति दे दीजिए।”

पंडित ने उत्तर दिया, “आप स्वयं ही एक मूर्ति ले आइए।”

धन्ना ने कहा, “लेकिन मैंने तो भगवान को कभी देखा ही नहीं, मैं उन्हें कैसे लाऊँगा?”

उन्होंने पिण्ड छुडाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- “ये ठाकुरजी हैं ! इनकी सेवा पूजा करना।’

“सच्ची भक्ति: सेवा और करुणा का मार्ग”

एक समय की बात है, एक शहर में एक धनवान सेठ रहता था। उसके पास बहुत दौलत थी और वह कई फैक्ट्रियों का मालिक था।

एक शाम, अचानक उसे बेचैनी की अनुभूति होने लगी। डॉक्टरों ने उसकी जांच की, लेकिन कोई बीमारी नहीं मिली। फिर भी उसकी बेचैनी बढ़ती गई। रात को नींद की गोलियां लेने के बावजूद भी वह नींद नहीं पा रहा था।

आखिरकार, आधी रात को वह अपने बगीचे में घूमने निकल गया। बाहर आने पर उसे थोड़ा सुकून मिला, तो वह सड़क पर चलने लगा। चलते-चलते वह बहुत दूर निकल आया और थककर एक चबूतरे पर बैठ गया।

तभी वहां एक कुत्ता आया और उसकी एक चप्पल ले गया। सेठ ने दूसरी चप्पल उठाकर उसका पीछा किया। कुत्ता एक झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में घुस गया। जब सेठ नजदीक पहुंचा, तो कुत्ते ने चप्पल छोड़ दी और भाग गया।

इसी बीच, सेठ ने किसी के रोने की आवाज सुनी। वह आवाज एक झोपड़ी से आ रही थी। अंदर झांककर उसने देखा कि एक गरीब औरत अपनी बीमार बच्ची के लिए रो रही है और भगवान से मदद मांग रही है।

शुरू में सेठ वहां से चला जाना चाहता था, लेकिन फिर उसने औरत की मदद करने का फैसला किया। जब उसने दरवाजा खटखटाया तो औरत डर गई। सेठ ने उसे आश्वस्त किया और उसकी समस्या

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