एक बहुत बड़ा अमीर आदमी और उसके दान की कहानी

छोटा प्रेरक प्रसंग विद्यार्थियों के लिए

एक गाँव में एक बहुत बड़ा अमीर आदमी रहता था। उसने अपने गाँव के सभी गरीब लोगों और भिखारियों के लिए एक विशेष दान योजना बना रखी थी। हर महीने की पहली तारीख को, गरीब लोग और भिखारी उस अमीर आदमी के पास आकर अपनी माहवारी राशि प्राप्त करते थे। किसी को दस रुपये मिलते थे, किसी को बीस रुपये। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही थी।

भिखारी और उसकी मुश्किलें

गाँव में एक भिखारी था, जो बहुत ही गरीब था और उसका परिवार भी बड़ा था। उसे हर महीने पचास रुपये मिलते थे। वह हर महीने की पहली तारीख को आकर अपने रुपये ले जाता था। इस पैसे से उसका परिवार किसी तरह गुजारा करता था।

अचानक आई समस्या

एक महीने की पहली तारीख को, वह बूढ़ा भिखारी अपने रुपये लेने आया। लेकिन उस दिन अमीर आदमी के मैनेजर ने उसे बताया कि अब से उसे पचास रुपये की जगह सिर्फ पच्चीस रुपये ही मिलेंगे। यह सुनकर भिखारी बहुत नाराज हो गया और उसने कहा, “क्या मतलब? सदा से मुझे पचास मिलते रहे हैं और बिना पचास लिए मैं यहां से न हटूंगा। क्या कारण है पच्चीस देने का?”

कारण और भिखारी का विरोध

मैनेजर ने समझाया, “जिनकी तरफ से तुम्हें रुपये मिलते हैं, उनकी लड़की का विवाह है और उस विवाह में बहुत खर्च होगा। यह कोई साधारण विवाह नहीं है, उनकी एक ही लड़की है और करोड़ों का खर्च है। इसलिए अभी संपत्ति की थोड़ी असुविधा है, पच्चीस ही मिलेंगे।”

भिखारी ने जोर से टेबल पीटी और कहा, “इसका क्या मतलब? तुमने मुझे क्या समझा है? मैं कोई बिरला हूं? मेरे पैसे काट कर अपनी लड़की की शादी? अगर अपनी लड़की की शादी में लुटाना है तो अपने पैसे लुटाओ।”

धन्यवाद की कमी और शिकायत

कई सालों से भिखारी को पचास रुपये मिल रहे थे और वह आदी हो गया था। उसने कभी उस अमीर आदमी को धन्यवाद नहीं दिया था। लेकिन जब पैसे कम हुए, तो उसने विरोध किया।

यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें जो कुछ भी मिलता है, उसके लिए हमें धन्यवाद देना चाहिए। जीवन में जो भी हमें मिलता है, उसे हमें अपनी मेहनत और कर्म का फल मानना चाहिए और उसके लिए आभारी होना चाहिए। दुख और कठिनाई के समय में शिकायत करने के बजाय, हमें सुख और सुविधाओं के समय में भी आभारी होना चाहिए।

निष्कर्ष

तुम्हें जो मिला है जीवन में, उसे तुम अपना मान रहे हो और उसमें से कटेगा तो तुम विरोध करोगे। लेकिन उसके लिए तुमने धन्यवाद कभी नहीं दिया है। इस भिखारी ने कभी धन्यवाद नहीं दिया उस अमीर को कि वह पचास रुपये महीने देता है। लेकिन जब कटौती हुई, तो उसने विरोध किया। जीवन के लिए हमारे मन में कोई धन्यवाद नहीं है, लेकिन मृत्यु और दुख के लिए बड़ी शिकायत है।

हमारे जीवन में सुख और दुख दोनों का महत्व है, और हमें हर परिस्थिति में आभारी रहना चाहिए। जब भी हम परमात्मा को पुकारें, तो धन्यवाद देने के लिए भी पुकारें, न कि सिर्फ शिकायत और दुख के लिए। जो हमें मिला है, उसकी कद्र करें और आभारी रहें, ताकि भविष्य में भी हमें और अच्छा मिल सके।

छोटा प्रेरक प्रसंग विद्यार्थियों के लिए

श्रीकृष्ण की माया: सुदामा की कहानी

एक दिन श्रीकृष्ण ने कहा, “सुदामा, आओ, हम गोमती में स्नान करने चलें।” दोनों गोमती के किनारे गए, अपने कपड़े उतारे और नदी में प्रवेश किया। श्रीकृष्ण स्नान करके किनारे लौट आए और अपने पीले वस्त्र पहनने लगे। सुदामा ने एक और डुबकी लगाई, तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें अपनी माया दिखाई।

सुदामा को लगा कि नदी में बाढ़ आ गई है। वह बहता जा रहा था, किसी तरह किनारे पर रुका। गंगा घाट पर चढ़कर वह चलने लगा। चलते-चलते वह एक गाँव के पास पहुँचा, जहाँ एक मादा हाथी ने उसे फूलों की माला पहनाई। बहुत से लोग इकट्ठा हो गए और बोले, “हमारे देश के राजा का निधन हो गया है। यहाँ की परंपरा है कि राजा की मृत्यु के बाद जिस किसी को मादा हाथी माला पहनाएगी, वही हमारा नया राजा बनेगा। मादा हाथी ने तुम्हें माला पहनाई है, इसलिए अब तुम हमारे राजा हो।”

सुदामा हैरान रह गया, लेकिन वह राजा बन गया और एक राजकुमारी से विवाह भी कर लिया। उनके दो बेटे भी हुए और उनका जीवन खुशी से बीतने लगा। एक दिन सुदामा की पत्नी बीमार हो गई और मर गई। पत्नी की मृत्यु के शोक में सुदामा रोने लगे। राज्य के लोग भी वहाँ पहुँचे और बोले, “राजा जी, मत रोइए। यह तो माया नगरी का नियम है। आपकी पत्नी की चिता में आपको भी प्रवेश करना होगा।”

लंका के शासक रावण की माँग

यह कहानी महार्षि कंबन द्वारा तमिल भाषा में लिखित “इरामा-अवतारम” से ली गई है, जो वाल्मीकि रामायण और तुलसी रामायण में नहीं मिलती।

श्रीराम ने समुद्र पर पुल बनाने के बाद, महेश्वर-लिंग-विग्रह की स्थापना के लिए रावण को आचार्य के रूप में आमंत्रित करने के लिए जामवंत को भेजा। जामवंत ने रावण को यह संदेश दिया कि श्रीराम ने उन्हें आचार्य के रूप में नियुक्त करने का निर्णय लिया है। रावण ने इसे सम्मानपूर्वक स्वीकार किया।

रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बैठाकर श्रीराम के पास ले गया और खुद आचार्य के रूप में अनुष्ठान का संचालन किया। अनुष्ठान के दौरान, रावण ने श्रीराम से उनकी पत्नी के बिना अनुष्ठान पूरा नहीं होने की बात कही। तब श्रीराम ने सीता को अनुष्ठान में शामिल होने का आदेश दिया।

धन्ना जाट जी की कथा

एक बार की बात है, एक गाँव था जहाँ भागवत कथा का आयोजन किया गया था। एक पंडित कथा सुनाने आया था जो पूरे एक सप्ताह तक चली। अंतिम अनुष्ठान के बाद, जब पंडित दान लेकर घोड़े पर सवार होकर जाने को तैयार हुआ, तो धन्ना जाट नामक एक सीधे-सादे और गरीब किसान ने उसे रोक लिया।

धन्ना ने कहा, “हे पंडित जी! आपने कहा था कि जो भगवान की सेवा करता है, उसका बेड़ा पार हो जाता है। लेकिन मेरे पास भगवान की मूर्ति नहीं है और न ही मैं ठीक से पूजा करना जानता हूँ। कृपया मुझे भगवान की एक मूर्ति दे दीजिए।”

पंडित ने उत्तर दिया, “आप स्वयं ही एक मूर्ति ले आइए।”

धन्ना ने कहा, “लेकिन मैंने तो भगवान को कभी देखा ही नहीं, मैं उन्हें कैसे लाऊँगा?”

उन्होंने पिण्ड छुडाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- “ये ठाकुरजी हैं ! इनकी सेवा पूजा करना।’

“सच्ची भक्ति: सेवा और करुणा का मार्ग”

एक समय की बात है, एक शहर में एक धनवान सेठ रहता था। उसके पास बहुत दौलत थी और वह कई फैक्ट्रियों का मालिक था।

एक शाम, अचानक उसे बेचैनी की अनुभूति होने लगी। डॉक्टरों ने उसकी जांच की, लेकिन कोई बीमारी नहीं मिली। फिर भी उसकी बेचैनी बढ़ती गई। रात को नींद की गोलियां लेने के बावजूद भी वह नींद नहीं पा रहा था।

आखिरकार, आधी रात को वह अपने बगीचे में घूमने निकल गया। बाहर आने पर उसे थोड़ा सुकून मिला, तो वह सड़क पर चलने लगा। चलते-चलते वह बहुत दूर निकल आया और थककर एक चबूतरे पर बैठ गया।

तभी वहां एक कुत्ता आया और उसकी एक चप्पल ले गया। सेठ ने दूसरी चप्पल उठाकर उसका पीछा किया। कुत्ता एक झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में घुस गया। जब सेठ नजदीक पहुंचा, तो कुत्ते ने चप्पल छोड़ दी और भाग गया।

इसी बीच, सेठ ने किसी के रोने की आवाज सुनी। वह आवाज एक झोपड़ी से आ रही थी। अंदर झांककर उसने देखा कि एक गरीब औरत अपनी बीमार बच्ची के लिए रो रही है और भगवान से मदद मांग रही है।

शुरू में सेठ वहां से चला जाना चाहता था, लेकिन फिर उसने औरत की मदद करने का फैसला किया। जब उसने दरवाजा खटखटाया तो औरत डर गई। सेठ ने उसे आश्वस्त किया और उसकी समस्या

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