श्याम तुमसे मिलने का सत्संग ही बहाना है

krishna bhajan book in hindi सत्संग ही बहाना है

श्याम तुमसे मिलने का सत्संग ही बहाना है

दुनिया वाले क्या जाने मेरा रिश्ता पुराना है

जब से तेरी लगन लगी दिल हुआ दीवाना है,

श्याम तुमसे मिलने का…………

सूरज में ढूँढा तुझे, चंदा में पाया है

तारो की झिलमिल में मेरे श्याम का बेसरा है,

श्याम तुमसे मिलने का सत्संग ही बहाना है

फुलो में ढूँढा तुझे, बागियो में पाया है

कलियों की खुश्बू में मेरे श्याम का बसेरा हैं,

श्याम तुमसे मिलने का सत्संग ही बहाना है

गंगा में ढूँढा तुझे, यमुना में पाया हैं

गोदावरी के लेहरो में मेरे श्याम का बेसरा है

श्याम तुमसे मिलने का सत्संग ही बहाना है

गोकुल में ढूँढा तुझे, मथुरा में पाया है

वृंदावन की गलियों में मेरे श्याम का बेसरा है,

श्याम तुमसे मिलने का सत्संग ही बहाना है

रामायण में ढूँढा तुझे, भागवत में पाया है

गीता जी श्लोको में मेरे श्याम का बेसरा है,

श्याम तुमसे मिलने का सत्संग ही बहाना है

जंगलओ में ढूँढा तुझे, मंदिरों में पाया है

भगतो की दिलों में मेरे श्याम का बेसरा है,

श्याम तुमसे मिलने का सत्संग ही बहाना

krishna bhajan book in hindi सत्संग ही बहाना है

जहां मौन है वहां मन नहीं

मौन जब पूर्ण होता है तो मन होता ही नहीं। मन की अवस्था का सवाल नहीं है। मौन का अर्थ है मन की मृत्यु। वहां मन नहीं है। वहा जो रह गया है उसी को आत्मा कहते हैं। तो मौन मन की अवस्था नहीं है। मौन है मन की मृत्यु, मौन है मन का समाप्त हो जाना, मौन है मन का विलीन हो जाना।

जैसे सागर में लहरें हैं, कोई हमसे आकर पूछे कि जब सागर शांत होता है तो लहरों की क्या अवस्था होती है, तो हम क्या कहेंगे? हम कहेंगे, जब सागर शांत होता है तो लहरें होती ही नहीं। लहरों की अवस्था का सवाल नहीं। सागर अशांत होता है तो लहरें होती हैं। असल में लहरें और अशांति एक ही चीज के दो नाम हैं। अशांति नहीं रही तो लहरें नहीं रहीं, रह गया सागर।

मन है अशांति, मन है लहर। जब सब मौन हो गया तो लहरें चली गईं, विचार चले गए, मन भी गया, रह गया सागर, रह गई आत्मा, रह गया परमात्मा। परमात्मा के सागर पर मन की जो लहरें हैं वे ही हम अलग— अलग व्यक्ति बन गए हैं। एक—एक लहर को अगर होश आ जाए तो वह कहेगी ‘मैं हूं।’ और उसे पता भी नहीं कि वह नहीं है, सागर है। यह जो हमें खयाल उठता है कि ‘मैं हूं’ यह हमारी एक—एक मन की अशांत लहरों का जोड़ है। ये लहरें विलीन हो जाएंगी तो आप नहीं रहेंगे, मन नहीं रहेगा। रह जाएगा परमात्मा, रह जाएगा एक चेतना का सागर।

परिपूर्ण मौन—मन की अवस्था नहीं, मन की मृत्यु है। जैसे—जैसे हम मौन होते हैं वैसे—वैसे हम मन के पार जाते हैं। जितना ज्यादा हम विचार से भरे होते हैं उतना हम मन के भीतर होते हैं, जितना विचार के बाहर होते हैं उतना मन के बाहर होते हैं। तो ऐसा मत पूछिए कि उस समय मन की अवस्था कैसी है।

अगर मन की कोई भी अवस्था है तो अभी मौन नहीं हुआ। जब मौन होगा तो मन नहीं होगा। जहां मन है वहां मौन नहीं, जहां मौन है वहां मन नहीं।

बहुत ही सुदंर कथा*

मान्यता है ठाकुर जी से यदि प्रेम करना हो तो उनसे कोई न कोई सम्बन्ध स्थापित कर लो, ऐसा ही एक सम्बन्ध ठाकुर जी से जोड़ा बाबा विट्टल दास किशोरी जी ने, बाबा ठाकुर जी के अनन्य भक्त थे। बाबा हर वक्त उनकी निकुंज लीलाओं का ही स्मरण किया करते थे एवं किसी भी सांसारिक व्यक्ति से ज्यादा देर बात नहीं किया करते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि किसी भी सांसारिक व्यक्ति से ज्यादा देर तक बोलना ठाकुर जी से ध्यान हटाने के बराबर है इसलिए हमेशा आंख मूंदे श्री राधा कृष्ण की युगल छवि का ध्यान करते थे।

बाबा श्री कृष्ण भगवान को पुत्र भाव से मानते थे और हमेशा उन्हें मेरा लाला और किशोरी जी को मेरी लाडली कहकर पुकारते थे। एक दिन बाबा विट्टलदास जी अपने घर के बाहर बैठे किशोरी जी का ध्यान कर रहे थे। तभी एक चूड़ी बेचने वाली आती है बाबा उसे बुलाते है और कहते है,”कि जा अन्दर जाकर मेरी बहूओं को चूड़ी पहना कर आ और जो पैसे हो वो मुझसे आकर ले लेना।”

तब चूड़ी बेचने वाली अंदर चली गयी और थोड़ी देर बाद बाहर आई और बोली,”बाबा 8 रुपये हुए?”

बाबा ने पूछा,”8 रुपये कैसे हुए?”

चूड़ी बेचने वाली ने कहा,”बाबा तुम्हारी 8 बहुएं थी और हर एक को मैंने 1 रुपये की चूड़ी पहनाई।”

लेकिन बाबा बोले,”मेरे तो 7 बेटे हैं और उनकी 7 बहुएं है फिर ये 8 बहुएं कैसे?”

चूड़ी बेचने वाली ने कहा,”बाबा मैं तुझसे झूठ क्यों बोलूंगी?”

अब बाबा का ज्यादा बहस करने का मन नहीं था उन्हें लगा की अब इससे बहस करूंगा तो ठाकुर के ध्यान में विघ्न पड़ेगा इसलिए उन्होंने उस मनिहारिन को 8 रुपये ही देकर विदा कर दिया और अपने युगल सरकार का ध्यान करने लगे लेकिन उन्हें मन ही मन इस बात का दु:ख था की चूड़ी बेचने वाली ने झूठ बोलकर उनसे ज्यादा पैसे ले लिए थे क्योंकि पूरे गांव में बाबा जी से कोई भी झूठ न बोलता था।

वो इसी बात की चिंता में थे कि मुझसे उस चूड़ी बेचने वाली ने झूठ क्यों कहा? रात्रि में बाबा को सोते हुए स्वप्न में किशोरी जी आती है और कहती है,”बाबा!ओ बाबा!”

बाबा मंत्रमुग्ध हो कर किशोरी जी को प्रणाम करते है।

तब किशोरी जी कहती है कि, ” बाबा तू ठाकुर जी को अपना पुत्र मानते हो ?”

बाबा बोले,”ठाकुर जी तो मेरे बेटे है मेरा लाला है वो तो।”

तब किशोरी जी कहती है,”यदि ठाकुर जी तुम्हारे बेटे है तो मैं भी तो तुम्हारी बहु हुई न? “

बाबा बोले,”हां हां बिलकुल बिलकुल मेरी लाली।”

फिर किशोरी जी कहती है,”फिर तुम दुखी क्यों होते हो जब चूड़ी बेचने वाली ने मुझे भी चूडियां पहना दी तो?”

तभी बाबा फूट-फूट कर रोने लग जाते है और कहते है कि,”हाय कितना अभागा हूं मैं मेरी किशोरी जी ने खुद मेरे घर आकर चूडियां पहनी और मैं पहचान भी न पाया?”

तभी किशोरी जी अंतर्धान हो जाती है और बाबा कि नींद खुल जाती है और फिर अगले दिन वो चूड़ी बेचने वाली उनके घर पर फिर से आती है और बाबा कहते है कि,”आगे से 8 जोड़ी चूडियां लेकर आना और मेरी सबसे छोटी बहु के लिए नीले रंग कि चूडियां लाना।”
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धन्य है ऐसे भक्त जो किशोरी जी से, ठाकुर जी से अपना सम्बन्ध स्थापित करते है और उसे पूरी तरह से निभाते है।

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