इक दिन वो भोले भंडारी

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तर्ज- मिलो न तुम तो हम घबराएं

इक दिन वो भोले भंडारी, बन करके ब्रिज नारी,

गोकुल में आ गए हैं, गोकुल में आ गए हैं….

पार्वती भी मना के हारी, ना माने त्रिपुरारी,

गोकुल में आ गए, गोकुल में आ गए,

इक दिन वो भोले भंडारी….

1- पार्वती से बोले, मैं भी चलूँगा तेरे संग में,

राधा संग श्याम नाचे, मैं भी नाचूँगा तेरे संग में,

रास रचेगा ब्रिज मैं भारी, हमे दिखादो प्यारी,

गोकुल में आ गए, गोकुल में आ गए,

इक दिन वो भोले भंडारी….

2- ओ मेरे भोले स्वामी, कैसे ले जाऊं अपने साथ में,

मोहन के सिवा कोई, पुरुष ना जाए उस रास में,

हंसी करेगी ब्रिज की नारी, मानो बात हमारी,

गोकुल में आ गए, गोकुल में आ गए,

इक दिन वो भोले भंडारी….

3- ऐसा बना दो मुझको, कोई ना जाने इस राज को,

मैं हूँ सहेली तेरी, ऐसा बताना ब्रिज राज को,

बना के जुड़ा पहन के साड़ी, चाल चले मतवाली,

गोकुल में आ गए, गोकुल में आ गए,

इक दिन वो भोले भंडारी….

4- देखा मोहन ने तो, समझ गये वो सारी बात रे,

ऐसी बजाई मुरली, सुध बुध भूले भोलेनाथ रे,

सिर से खिसक गयी जब साड़ी, मुस्काये गिरधारी,

गोकुल में आ गए, गोकुल में आ गए,

इक दिन वो भोले भंडारी….

5- दीनदयालु तेरा तब से, गोपेश्वर हुआ नाम रे

ओ भोले बाबा तेरा, वृन्दावन बना धाम रे

भक्त कहे ओ त्रिपुरारी, राखो लाज हमारी, गोकुल में आ गए…

इक दिन वो भोले भंडारी, बन करके ब्रज की नारी,

गोकुल में आ गए

पार्वती भी मना के हारी, ना माने त्रिपुरारी, गोकुल में आ गए…

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धन्ना जाट जी की कथा

एक बार की बात है, एक गाँव था जहाँ भागवत कथा का आयोजन किया गया था। एक पंडित कथा सुनाने आया था जो पूरे एक सप्ताह तक चली। अंतिम अनुष्ठान के बाद, जब पंडित दान लेकर घोड़े पर सवार होकर जाने को तैयार हुआ, तो धन्ना जाट नामक एक सीधे-सादे और गरीब किसान ने उसे रोक लिया।

धन्ना ने कहा, “हे पंडित जी! आपने कहा था कि जो भगवान की सेवा करता है, उसका बेड़ा पार हो जाता है। लेकिन मेरे पास भगवान की मूर्ति नहीं है और न ही मैं ठीक से पूजा करना जानता हूँ। कृपया मुझे भगवान की एक मूर्ति दे दीजिए।”

पंडित ने उत्तर दिया, “आप स्वयं ही एक मूर्ति ले आइए।”

धन्ना ने कहा, “लेकिन मैंने तो भगवान को कभी देखा ही नहीं, मैं उन्हें कैसे लाऊँगा?”

उन्होंने पिण्ड छुडाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- “ये ठाकुरजी हैं ! इनकी सेवा पूजा करना।’

“सच्ची भक्ति: सेवा और करुणा का मार्ग”

एक समय की बात है, एक शहर में एक धनवान सेठ रहता था। उसके पास बहुत दौलत थी और वह कई फैक्ट्रियों का मालिक था।

एक शाम, अचानक उसे बेचैनी की अनुभूति होने लगी। डॉक्टरों ने उसकी जांच की, लेकिन कोई बीमारी नहीं मिली। फिर भी उसकी बेचैनी बढ़ती गई। रात को नींद की गोलियां लेने के बावजूद भी वह नींद नहीं पा रहा था।

आखिरकार, आधी रात को वह अपने बगीचे में घूमने निकल गया। बाहर आने पर उसे थोड़ा सुकून मिला, तो वह सड़क पर चलने लगा। चलते-चलते वह बहुत दूर निकल आया और थककर एक चबूतरे पर बैठ गया।

तभी वहां एक कुत्ता आया और उसकी एक चप्पल ले गया। सेठ ने दूसरी चप्पल उठाकर उसका पीछा किया। कुत्ता एक झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में घुस गया। जब सेठ नजदीक पहुंचा, तो कुत्ते ने चप्पल छोड़ दी और भाग गया।

इसी बीच, सेठ ने किसी के रोने की आवाज सुनी। वह आवाज एक झोपड़ी से आ रही थी। अंदर झांककर उसने देखा कि एक गरीब औरत अपनी बीमार बच्ची के लिए रो रही है और भगवान से मदद मांग रही है।

शुरू में सेठ वहां से चला जाना चाहता था, लेकिन फिर उसने औरत की मदद करने का फैसला किया। जब उसने दरवाजा खटखटाया तो औरत डर गई। सेठ ने उसे आश्वस्त किया और उसकी समस्या

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