राम आएंगे तो अंगना सजाऊंगी lyrics

राम आएंगे तो अंगना सजाऊंगी lyrics

मेरी झोपड़ी के भाग,आज जाग जाएंगे,

राम आएँगे,

राम आएँगे आएँगे,राम आएँगे,

मेरी झोपडी के भाग,आज जाग जाएंगे,

राम आएँगे ॥

राम आएँगे तो,आंगना सजाऊँगी,

दिप जलाके,दिवाली मनाऊँगी,

मेरे जन्मो के सारे,पाप मिट जाएंगे,

राम आएँगे,

मेरी झोपडी के भाग,आज जाग जाएंगे,

राम आएँगे ॥

राम झूलेंगे तो,पालना झुलाऊँगी,

मीठे मीठे मैं,भजन सुनाऊँगी,

मेरी जिंदगी के,सारे दुःख मिट जाएँगे,

राम आएँगे,

मेरी झोपडी के भाग,आज जाग जाएंगे,

राम आएँगे ॥

मेरा जनम सफल,हो जाएगा,

तन झूमेगा और,मन गीत गाएगा,

राम सुन्दर मेरी,किस्मत चमकाएंगे,

राम आएँगे,

मेरी झोपडी के भाग,आज जाग जाएंगे,

राम आएँगे ॥

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किस कारण “राम से बड़ा राम का नाम” है ?

राम नाम के बारे में २ कहानियाँ हैं जो कि राम नाम के महत्व को दर्शाती हैं –

फिर सबकी नजरों से बचते हुए राम जी ने 1 पत्थर को उठाया और सीधा पानी में डाल दिया। अचानक वह पत्थर पानी में डूब गया, राम जी ने फिर प्रयास किया, पत्थर इस बार भी पानी में डूब गया। अनेक प्रयासों के बाद भी पानी में पत्थर डूबते रहे।

यह सब हनुमान जी ने देख लिया। और हंसते हुए पूछा प्रभु क्या हुआ। राम जी ने लज्जा से कहां की यह बात तुम किसी को मत कहना, नहीं तो यह लोग मेरी हंसी करेंगे।

हनुमान जी ने बोला कि प्रभु आप की लीला कोई नहीं जान सकता।

और हनुमान जी ने कहा- प्रभु यह तो होना ही था क्योंकि जिसे आप अपने हाथों से छोड़ दें ,वह भवसागर में कैसे तैर सकता है उसे तो डूबना ही है।

परंतु यही आपके नाम की महिमा है कि आप भी छोड़ दो उसको, यदि उसने आपके नाम को पकड़ा हुआ है ,तो कभी नहीं डूब सकता और यही इन पत्थरों के साथ भी हो रहा है जिनमें आपका नाम लिखा हुआ है श्री राम।

इन कहानियों से परे एक महत्वपूर्ण बात है – साकार ब्रह्म और निराकार ब्रह्म। अयोध्या के श्री राम साकार ब्रह्म का स्वरुप हैं। और राम नाम निराकार ब्रह्म को याद करने का एक तरीका है। जिन लोगों की साकार ब्रह्म में निष्ठा है वे अयोध्या के राजा राम की पूजा करते हैं। जो लोग ब्रह्म को निराकार समझते हैं उनके लिए राम नाम भी एक साधन है ईश्वर को याद करने का।

प्रभु श्री राम जब रावण को मार कर माता सीता और अपने अनुज लक्ष्मण के साथ पुष्पक विमान में बैठ अपने सेवक हनुमान , जामवंत, सुग्रीव और कुछ माननीयों के साथ अयोध्या लौट आए। प्रभु राम का अयोध्या में भव्य स्वागत किया गया।

कुछ दिन पश्चात प्रभु राम ने एक अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान किया, जिस यज्ञ में बड़े बड़े राजा महाराजा, देव, देवता, यक्ष, किन्नर ऋषि मुनियों का आगमन हुआ। उस यज्ञ को सम्पूर्ण होने के लिए सभी ने आशीर्वाद दिया।

उसी यज्ञ में एक राजा ने महर्षि वशिष्ठ का अपमान कर दिया जिससे महर्षि वशिष्ठ ने प्रभु श्री राम से उसके प्राण मांग लिए। उस राजा को जैसे ही ये पता चला वो वहा से भाग कर माता अंजनिय के पास अपने प्राणों की रक्षा के लिए विवेचना करने लगा । माता आंजनिय ने उसे भरोसा दिया कि तुम्हारे प्राणों की रक्षा मेरा बेटा हनुमान करेगा। तभी कुछ देर पश्चात हनुमान जी अपनी माता के पास पहुंचे। माता अंजनि ने उस राजा की रक्षा के लिए अपने पुत्र हनुमान से वचन ले लिया हनुमान ही भी बिना कुछ जाने अपनी माता अंजनी को उस राजा के प्राणों की रक्षा लिए वचन दे दिया। जब उस राजा ने बताया कि मुझे अयोध्या के राजा श्री राम ने मारने के लिए वचनबद्ध हुए है, तब हनुमान जी बहुत ही दुबिधा में फस गए। अपनी माता के वचनों को पालन करने के लिए उस राजा की रक्षा करने लगे। तभी वह प्रभु श्री राम पहुंच गए और उस राजा को मारने के लिए बाण चला दिए, लेकिन श्री राम और उस राजा के बीच हनुमान ही खड़े थे, जो अपने आराध्य प्रभु श्री राम का नाम जाप रहे थे। प्रभु श्री राम का हर वार खाली जाता प्रभु राम ने बड़े बड़े शस्त्र का भी प्रयोग किया, लेकिन हर बार हनुमान जी को छूकर वापस आ जाता। हनुमान जी अपने आराध्य प्रभु राम का जाप करते रहे। सभी देवता ये दृश्य देख कर आश्चर्य चकित थे। प्रभु राम जी भी युद्ध करते करते मूर्छा आने लगी, लेकिन उस राजा को मार नहीं सके। अंत में ऋषि विश्वामित्र ने राम जी को बताया कि आप से बड़ा आप का नाम है इसलिए आप उस राजा का वध नहीं कर सकते। इस संसार में जो भी प्रभु राम का नाम लेगा उसके सारे दुख समाप्त हो जायेंगे।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस मानस के बालकांड के दोहा क्रमांक १८ से लेकर दोहा क्रमांक २९ क तक राम और राम के नाम का तुलनात्मक विशद् विवेचन किया है । यहाँ उन्होंने ऐसे उदाहरणों की एक झंडी लगादी है जिनसे नाम की श्रेष्ठता प्रतिपादित होती है । दोहा क्रमांक २४ में वे कहते हैं कि भगवान राम ने यदि शबरी, जटायु और अपने। कुछ भक्तों का उद्धार किया तो क्या हुआ , उनका नाम लेकर उद्धार पाने वालों की तो गिनती ही नहीं की जा सकती । इसलिये उनकी तो स्पष्ट धारणा है – ब्रह्म राम ते नाम बड़ ! ( बालकांड २५) उनका तो यह भी कहना है कि राम नाम की महिमा इतनी अधिक है कि स्वयं राम भी इसका बखान करने में समर्थ नहीं हैं –

कहहुं कहाँ लगि नाम बड़ाई । राम न सकहिं नाम गुन गाई । ( बालकांड २५/४)

नाम की महिमा भक्ति साधना का प्रमुख आयाम तो है ही इसमें निर्गुण ब्रह्म को सगुणीकृत करने की भी क्षमता है । योगदर्शन में ईश्वर को अगम बताते हुये प्रणव में उसका भावपूर्वक जप का विधान बताया गया है – तद् जप: तदर्थ भावनम् । योगदर्शन १/२८

पुनश्च आगे-

सनातन धर्मावलम्बियों का प्रायः यह एक मौलिक प्रश्न ही रहता है कि राम और ॐ में कौन श्रेष्ठ और पूर्वतर है ? यह कहा जा सकता है कि भक्तिकाल में, विशेषकर गोस्वामी तुलसीदास ने, राम नाम की महिमा का साग्रह और सविस्तार अनुगान किया है तथा उन्होने स्वयं शिव को इसकी साक्ष्य में समुपस्थित कर दिया है । उन्होने पार्वती को भगवान के सहस्र नाम के स्थान पर मात्र एक राम नाम लेकर अपने साथ भोजन को तैयार तो किया ही- सहस नाम सुनि सिव वर बानी, जपि जेयी पिय संग भवानी, स्वयं पार्वती ने उनसे पूछा भी-

तुम पुनि राम राम दिन राती । सादर जपहु अनंग अराती ।

रामचरित मानस की रामकथा की भूमिका में शिव ने पार्वती को राम के विशिष्ट ब्रह्मत्व का विस्तार का परिचय दिया तथा वाल्मीकि, याज्ञवल्क्य और कागभुशुंडि ने अनेकश: राम की भगवत्ता का वखान किया है । किन्तु वेद और उपनिषद् के संदर्भ में जाते हुये शोधार्थियों को इस बात की प्रायः निराशा ही होती है कि इनमें राम का सार्थक कोई संदर्भ उन्हें प्राप्त ही नहीं होता ।

इस विषय पर श्रेष्ठ शास्त्रज्ञ संत राजेंद्रदास देवाचार्य ने महाकालिका पुराण के संदर्भ से शिव द्वारा पार्वती से कहे इस कथन को उद्धृत किया- रामनाम्ना समुत्पन्नो प्रणव: मोक्षदायक: । अर्थात मोक्ष दायक प्रणव ॐ राम नाम से ही उत्पन्न हुआ है । इसके आधार पर उनकी स्थापना है कि यदि ॐ वेद का जनक है -प्रणव: सर्ववेदेषु (गीता 7-8), तो ॐ के भी पिता राम हैं तथा इस प्रकार राम वेद के पितामह कहे जा सकते हैं ।

देवाचार्य ने इस संबंध में महर्षि पाणिनी की अष्टाध्यायी के दो सूत्रों का उल्लेख करते हुये व्याकरण के आधार पर भी यह सिद्ध किया है कि मात्र ‘राम’ का उच्चार भाषायी आधार पर भी ॐ में परिवर्तनशील है ।

सभी जानते हैं कि वर्णक्रम में राम र्+आ+म्+अ के संयोजन का परिणाम है । महर्षि पाणिनी का एक सूत्र है ‘प्रसोदरादीनि यथोपदिष्टम्’ । इस सिद्धांत के अनुसार प्रसोदरादि गण में पठित शब्द का वृत्यास हो जाता है । इसके अनुसार र्+अ+म्+अ में आए ‘अ’ का ‘र’ के पूर्व प्रयोग हो जाएगा । इस तरह इस पद के उच्चारण का आंशिक परिवर्तित क्रम होगा अ+र्+म्+अ। महर्षि पाणिनी के एक अन्य सूत्र प्रत्याहार ‘हसि च’ के अनुसार अ+र+म के इस मध्यवर्ती ‘र’ का रूपान्तरण ‘उ’ के रूप में हो जाता है । इस प्रकार राम का ‘ओं’ के रूप में अंतरण एक व्याकरण सम्मत प्रक्रिया है जो यही सिद्ध करती है कि ‘अनादि’ राम से ही प्रणव स्वर ‘ॐ’ संरचना हुई है ।

यह सत्य है कि भगवन्नाम में भेद और भिन्नता पर विचार विवेक दृष्टि से वांछनीय नहीं कहा जा सकता किन्तु भक्त अपनी इष्ट के प्रति समर्पण की पराकाष्ठा में ज्ञान की परिपूर्णता ही अनुभव करता है । रामचरित मानस में नारद जी प्रभु राम से यह वरदान ही मांग लेते हैं कि भगवान के सभी नामों में ‘राम नाम’ सर्वोच्च रहे –

राम सकल नामन ते अधिका । होऊ नाथ अघ खग गण वधिका ।

इस प्रकार ‘राम’ नाम जहां भक्ति का सार सर्वस्व है, वहीं यह उन्हें अंतत: ‘अविभक्त’ रखते हुये ज्ञान की उच्च कक्षा में भी प्रवेश की पात्रता प्रदान करता है –

अस समर्थ रघुनायकह भजहि जीव ते धन्य ।

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