बच्चों की बाल कहानियां

बच्चों की बाल कहानियां

जब पिता के अंतिम समय निकट आया, तो उन्होंने अपने एकमात्र पुत्र धनपाल को बुलाया और कहा, “बेटा, मेरे पास तुम्हें देने के लिए कोई धन-संपत्ति नहीं है। लेकिन मैंने अपने पूरे जीवन सच्चाई और ईमानदारी से काम किया है। मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि तुम जीवन में बहुत सुखी रहोगे और जो भी चीज छूओगे, वह सोना बन जाएगी।”

धनपाल ने सिर झुकाकर पिताजी के पैर छुए। पिता ने आशीर्वाद देकर संतोष से अपने प्राण त्याग दिए।

अब घर का खर्च चलाने की बारी बेटे धनपाल की थी। उसने एक छोटी सी गाड़ी पर अपना व्यवसाय शुरू किया। धीरे-धीरे व्यवसाय बढ़ने लगा। उसने एक छोटी सी दुकान ले ली। व्यवसाय और भी बढ़ गया।अब उसकी गिनती शहर के संपन्न लोगों में होने लगी। उसका मानना ​​था कि यह सब उसके पिता के आशीर्वाद का ही परिणाम है। क्योंकि उसके पिता ने जीवन में कष्ट झेले थे, लेकिन कभी धैर्य नहीं छोड़ा, कभी श्रद्धा नहीं छोड़ी, कभी प्रामाणिकता नहीं छोड़ी, इसलिए उसकी वाणी में शक्ति थी और उसका आशीर्वाद फलता-फूलता रहा और वह समृद्ध होता गया। यह बात उसके मुंह से बार-बार निकलती थी।

इस तरह कई साल बीत गए। वह विदेश में व्यापार करने लगा। जहाँ भी उसने व्यापार किया, खूब मुनाफा कमाया। एक बार उसके मन में विचार आया, “मैं तो हमेशा मुनाफा ही कमाता हूँ!! तो एक बार घाटा तो देख ही लूँ।”

इसलिए उसने अपने एक मित्र से पूछा, “मुझे ऐसा कोई व्यापार बताओ जिसमें मैं घाटा उठा सकूँ।”

मित्र को लगा कि उसे अपनी सफलता और पैसे का अहंकार हो गया है। उसका अहंकार दूर करने के लिए उसे ऐसा कोई व्यापार बताना चाहिए जिसमें उसे घाटा ही घाटा हो।

इसलिए उसने उससे कहा, “तुम भारत में लौंग खरीदो और जहाज भरकर अफ्रीका के जंजीबार जाकर बेचो।” धर्मपाल को यह विचार पसंद आया।

जंजीबार पर एक सुल्तान का शासन था। धर्मपाल जहाज से उतरकर एक लम्बे रेतीले रास्ते पर चल रहा था! वहाँ व्यापारियों से मिलने के लिए।

उसने देखा कि सामने से सुल्तान जैसा एक व्यक्ति पैदल सैनिकों के साथ आ रहा है।

उसने किसी से पूछा, “यह कौन है?”

उन्होंने कहा: “यह सुल्तान है।”

सुल्तान ने उसे सामने देखकर उसका परिचय पूछा। उसने कहा: “मैं भारत के गुजरात के खंभात का एक व्यापारी हूँ। और यहाँ व्यापार करने आया हूँ।”

सुल्तान ने उसे व्यापारी समझा और उसका सम्मान करते हुए उससे बातचीत शुरू की।

धर्मपाल ने देखा कि सुल्तान के साथ सैकड़ों सैनिक थे। लेकिन उनके हाथों में कोई तलवार, बन्दूक आदि नहीं थे, बल्कि उनके पास बड़ी-बड़ी छलनी थीं।

वह आश्चर्यचकित हुआ। उसने विनम्रतापूर्वक सुल्तान से पूछा: “आपके सैनिक इतनी सारी छलनी क्यों लेकर चल रहे हैं?”

सुल्तान ने हंसते हुए कहा: “बात यह है कि मैं आज सुबह समुद्र तट पर टहलने आया था। तभी मेरी एक अंगूठी मेरी उंगली से कहीं गिर गई। अब मुझे नहीं पता कि अंगूठी रेत में कहां गिर गई। इसलिए मैं अपने साथ इन सैनिकों को लाया हूं। वे इस रेत को छानकर उसमें से मेरी अंगूठी खोज लेंगे।” धर्मपाल ने कहा: “अंगूठी बहुत महंगी होगी।” सुल्तान ने कहा: “नहीं! मेरे पास इससे कहीं अधिक मूल्य की अनगिनत अंगूठियां हैं। लेकिन वह अंगूठी एक फकीर का आशीर्वाद है। मेरा मानना ​​है कि उस फकीर के आशीर्वाद से मेरी सल्तनत इतनी मजबूत और खुशहाल है। इसलिए मेरे मन में उस अंगूठी का मूल्य सल्तनत से भी अधिक है।” यह कहकर सुल्तान ने फिर पूछा: “बोलो सेठ, इस बार तुम क्या सामान लाए हो?” धर्मपाल ने कहा: “लौंग!” सुल्तान को आश्चर्य नहीं हुआ। “यह लौंग का देश है सेठ। तुम यहाँ लौंग बेचने आए हो? तुम्हें ऐसा करने की सलाह किसने दी? ज़रूर वह तुम्हारा दुश्मन होगा। यहाँ तो एक पैसे में मुट्ठी भर लौंग मिल जाती है। यहाँ लौंग कौन खरीदेगा? और तुम क्या कमाओगे?”

धनपाल ने झुककर रेत उठाई और सुल्तान के सामने रेत गिराई। रेत के बीच से एक हीरे जड़ी अंगूठी निकल आई, जो सुल्तान की गुमी हुई अंगूठी थी। सुल्तान बहुत प्रसन्न हुआ और कहा, “तुम्हारे पिता का आशीर्वाद सच में शक्तिशाली है।”

धनपाल ने कहा, “यह सब उस फकीर के आशीर्वाद का कमाल है।” सुल्तान ने धनपाल को गले लगाया और कहा, “तुम जो भी मांगोगे, मैं दूंगा।” धनपाल ने कहा, “मुझे केवल आपकी और आपकी प्रजा की भलाई चाहिए।”

सुल्तान ने धनपाल का सारा माल खरीद लिया और उसे मुंह मांगी कीमत दी। इस घटना से शिक्षा मिलती है कि माता-पिता के आशीर्वाद से बड़ी कोई संपत्ति नहीं होती। उनके आशीर्वाद से दुनिया की कोई ताकत तुम्हें हारने नहीं देगी।

बुजुर्गों का सम्मान करें, यही भगवान की सबसे बड़ी सेवा है।

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एक राजा ने प्रसन्न मन से अपने मंत्री से उसकी सबसे बड़ी इच्छा के बारे में पूछा। मंत्री ने शरमाते हुए राज्य का एक छोटा सा हिस्सा देने की इच्छा जताई। राजा ने मंत्री को आश्चर्यचकित करते हुए आधा राज्य देने की पेशकश की, लेकिन साथ ही यह भी घोषणा की कि अगर मंत्री तीस दिनों में तीन सवालों के जवाब नहीं दे पाया तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाएगा। सवाल थे:

मानव जीवन का सबसे बड़ा सच क्या है?
मानव जीवन का सबसे बड़ा धोखा क्या है?
मानव जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी क्या है?

मंत्री ने हर जगह जवाब ढूँढ़ा लेकिन कोई भी जवाब उसे संतुष्ट करने वाला नहीं मिला। आखिरी दिन उसकी मुलाक़ात एक भूतपूर्व मंत्री से हुई जो एक गरीब आदमी की तरह रह रहा था। इस आदमी ने जवाब दिया:

श्रीकृष्ण की माया: सुदामा की कहानी

एक दिन श्रीकृष्ण ने कहा, “सुदामा, आओ, हम गोमती में स्नान करने चलें।” दोनों गोमती के किनारे गए, अपने कपड़े उतारे और नदी में प्रवेश किया। श्रीकृष्ण स्नान करके किनारे लौट आए और अपने पीले वस्त्र पहनने लगे। सुदामा ने एक और डुबकी लगाई, तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें अपनी माया दिखाई।

सुदामा को लगा कि नदी में बाढ़ आ गई है। वह बहता जा रहा था, किसी तरह किनारे पर रुका। गंगा घाट पर चढ़कर वह चलने लगा। चलते-चलते वह एक गाँव के पास पहुँचा, जहाँ एक मादा हाथी ने उसे फूलों की माला पहनाई। बहुत से लोग इकट्ठा हो गए और बोले, “हमारे देश के राजा का निधन हो गया है। यहाँ की परंपरा है कि राजा की मृत्यु के बाद जिस किसी को मादा हाथी माला पहनाएगी, वही हमारा नया राजा बनेगा। मादा हाथी ने तुम्हें माला पहनाई है, इसलिए अब तुम हमारे राजा हो।”

सुदामा हैरान रह गया, लेकिन वह राजा बन गया और एक राजकुमारी से विवाह भी कर लिया। उनके दो बेटे भी हुए और उनका जीवन खुशी से बीतने लगा। एक दिन सुदामा की पत्नी बीमार हो गई और मर गई। पत्नी की मृत्यु के शोक में सुदामा रोने लगे। राज्य के लोग भी वहाँ पहुँचे और बोले, “राजा जी, मत रोइए। यह तो माया नगरी का नियम है। आपकी पत्नी की चिता में आपको भी प्रवेश करना होगा।”

लंका के शासक रावण की माँग

यह कहानी महार्षि कंबन द्वारा तमिल भाषा में लिखित “इरामा-अवतारम” से ली गई है, जो वाल्मीकि रामायण और तुलसी रामायण में नहीं मिलती।

श्रीराम ने समुद्र पर पुल बनाने के बाद, महेश्वर-लिंग-विग्रह की स्थापना के लिए रावण को आचार्य के रूप में आमंत्रित करने के लिए जामवंत को भेजा। जामवंत ने रावण को यह संदेश दिया कि श्रीराम ने उन्हें आचार्य के रूप में नियुक्त करने का निर्णय लिया है। रावण ने इसे सम्मानपूर्वक स्वीकार किया।

रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बैठाकर श्रीराम के पास ले गया और खुद आचार्य के रूप में अनुष्ठान का संचालन किया। अनुष्ठान के दौरान, रावण ने श्रीराम से उनकी पत्नी के बिना अनुष्ठान पूरा नहीं होने की बात कही। तब श्रीराम ने सीता को अनुष्ठान में शामिल होने का आदेश दिया।

धन्ना जाट जी की कथा

एक बार की बात है, एक गाँव था जहाँ भागवत कथा का आयोजन किया गया था। एक पंडित कथा सुनाने आया था जो पूरे एक सप्ताह तक चली। अंतिम अनुष्ठान के बाद, जब पंडित दान लेकर घोड़े पर सवार होकर जाने को तैयार हुआ, तो धन्ना जाट नामक एक सीधे-सादे और गरीब किसान ने उसे रोक लिया।

धन्ना ने कहा, “हे पंडित जी! आपने कहा था कि जो भगवान की सेवा करता है, उसका बेड़ा पार हो जाता है। लेकिन मेरे पास भगवान की मूर्ति नहीं है और न ही मैं ठीक से पूजा करना जानता हूँ। कृपया मुझे भगवान की एक मूर्ति दे दीजिए।”

पंडित ने उत्तर दिया, “आप स्वयं ही एक मूर्ति ले आइए।”

धन्ना ने कहा, “लेकिन मैंने तो भगवान को कभी देखा ही नहीं, मैं उन्हें कैसे लाऊँगा?”

उन्होंने पिण्ड छुडाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- “ये ठाकुरजी हैं ! इनकी सेवा पूजा करना।’

“सच्ची भक्ति: सेवा और करुणा का मार्ग”

एक समय की बात है, एक शहर में एक धनवान सेठ रहता था। उसके पास बहुत दौलत थी और वह कई फैक्ट्रियों का मालिक था।

एक शाम, अचानक उसे बेचैनी की अनुभूति होने लगी। डॉक्टरों ने उसकी जांच की, लेकिन कोई बीमारी नहीं मिली। फिर भी उसकी बेचैनी बढ़ती गई। रात को नींद की गोलियां लेने के बावजूद भी वह नींद नहीं पा रहा था।

आखिरकार, आधी रात को वह अपने बगीचे में घूमने निकल गया। बाहर आने पर उसे थोड़ा सुकून मिला, तो वह सड़क पर चलने लगा। चलते-चलते वह बहुत दूर निकल आया और थककर एक चबूतरे पर बैठ गया।

तभी वहां एक कुत्ता आया और उसकी एक चप्पल ले गया। सेठ ने दूसरी चप्पल उठाकर उसका पीछा किया। कुत्ता एक झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में घुस गया। जब सेठ नजदीक पहुंचा, तो कुत्ते ने चप्पल छोड़ दी और भाग गया।

इसी बीच, सेठ ने किसी के रोने की आवाज सुनी। वह आवाज एक झोपड़ी से आ रही थी। अंदर झांककर उसने देखा कि एक गरीब औरत अपनी बीमार बच्ची के लिए रो रही है और भगवान से मदद मांग रही है।

शुरू में सेठ वहां से चला जाना चाहता था, लेकिन फिर उसने औरत की मदद करने का फैसला किया। जब उसने दरवाजा खटखटाया तो औरत डर गई। सेठ ने उसे आश्वस्त किया और उसकी समस्या जानी।

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