कैलाशपति शिव शंकर

ढोलक पर गाने वाले भजन लिरिक्स कैलाशपति शिव शंकर

श्री शंकर वन्दना ll

तर्ज :- सुरज कब दुर गगन से

कैलाशपति शिव शंकर, दुष्टों के लिए प्रलयंकर

देवों में देव निराले, भंडारी भोले भाले,

भोले तो दयालु दाता हैं, दाता से हमारा नाता है।

श्री ब्रहमा विष्णु ध्यावे, महिमा इनकी गावे,

शिव को रिझाने देखो, दुनियां दौड़ी आवे,

किस्मत की रेख बदल दे, जीवन खुशियों से भर दे। भोले तो..

खाकर आंक धतूरा, भंग का प्याला पीकर,

अपनी धुन में रहते, मतवाले शिव शंकर,

छल छिद्र कपट न जाने, खुद जैसा सबको माने। भोले तो..

महाकाल ओंकार हैं, रामेश्वर, विश्वनाथ हैं,

त्रयम्बकेश्वर, मलिकार्जुन, सोमनाथ, वैद्यनाथ हैं,

घुश्मेश्वर, भीमाशंकर, केदार प्रभु नागेश्वर । भोले तो…….

शिव को जिसने ध्याया, दिल से इन्हें रिझाया, ‘

नन्दू’ हर वो प्राणी, शिव की किरपा पाया,

पल में भंडारा भर दे, जो चाहे वैसा कर दे। भोले तो……..

ढोलक पर गाने वाले भजन लिरिक्स कैलाशपति शिव शंकर

धन्ना जाट जी की कथा

एक बार की बात है, एक गाँव था जहाँ भागवत कथा का आयोजन किया गया था। एक पंडित कथा सुनाने आया था जो पूरे एक सप्ताह तक चली। अंतिम अनुष्ठान के बाद, जब पंडित दान लेकर घोड़े पर सवार होकर जाने को तैयार हुआ, तो धन्ना जाट नामक एक सीधे-सादे और गरीब किसान ने उसे रोक लिया।

धन्ना ने कहा, “हे पंडित जी! आपने कहा था कि जो भगवान की सेवा करता है, उसका बेड़ा पार हो जाता है। लेकिन मेरे पास भगवान की मूर्ति नहीं है और न ही मैं ठीक से पूजा करना जानता हूँ। कृपया मुझे भगवान की एक मूर्ति दे दीजिए।”

पंडित ने उत्तर दिया, “आप स्वयं ही एक मूर्ति ले आइए।”

धन्ना ने कहा, “लेकिन मैंने तो भगवान को कभी देखा ही नहीं, मैं उन्हें कैसे लाऊँगा?”

उन्होंने पिण्ड छुडाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- “ये ठाकुरजी हैं ! इनकी सेवा पूजा करना।’

“सच्ची भक्ति: सेवा और करुणा का मार्ग”

एक समय की बात है, एक शहर में एक धनवान सेठ रहता था। उसके पास बहुत दौलत थी और वह कई फैक्ट्रियों का मालिक था।

एक शाम, अचानक उसे बेचैनी की अनुभूति होने लगी। डॉक्टरों ने उसकी जांच की, लेकिन कोई बीमारी नहीं मिली। फिर भी उसकी बेचैनी बढ़ती गई। रात को नींद की गोलियां लेने के बावजूद भी वह नींद नहीं पा रहा था।

आखिरकार, आधी रात को वह अपने बगीचे में घूमने निकल गया। बाहर आने पर उसे थोड़ा सुकून मिला, तो वह सड़क पर चलने लगा। चलते-चलते वह बहुत दूर निकल आया और थककर एक चबूतरे पर बैठ गया।

तभी वहां एक कुत्ता आया और उसकी एक चप्पल ले गया। सेठ ने दूसरी चप्पल उठाकर उसका पीछा किया। कुत्ता एक झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में घुस गया। जब सेठ नजदीक पहुंचा, तो कुत्ते ने चप्पल छोड़ दी और भाग गया।

इसी बीच, सेठ ने किसी के रोने की आवाज सुनी। वह आवाज एक झोपड़ी से आ रही थी। अंदर झांककर उसने देखा कि एक गरीब औरत अपनी बीमार बच्ची के लिए रो रही है और भगवान से मदद मांग रही है।

शुरू में सेठ वहां से चला जाना चाहता था, लेकिन फिर उसने औरत की मदद करने का फैसला किया। जब उसने दरवाजा खटखटाया तो औरत डर गई। सेठ ने उसे आश्वस्त किया और उसकी समस्या

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