श्यामानंद की दिव्य अनुभूति

छोटी कहानी इन हिंदी श्यामानंद की दिव्य अनुभूति

एक बार श्री कृष्ण दास के मन में यह इच्छा जागी कि वे निकुंज में “श्री राधा” और “श्री राधा रमण” की सेवा करें। उन्होंने अपनी यह इच्छा “श्री जीव गोस्वामी” को बताई। श्री जीव ने उन्हें मानसी सेवा के अंतर्गत, निशांत लीला के समय निधिवन में राधा दासी के रूप में झाड़ू लगाने का आदेश दिया।

वे नित्य निधिवन में मानसिक झाड़ू सेवा करने लगे। झाड़ू लगाते-लगाते वे कभी नृत्य करने लगते, कभी विरह में रोने लगते, इस प्रकार कई दिन बीत गए।

एक दिन, श्री राधा रानी की कृपा से झाड़ू लगाते समय, उनका ध्यान एक नूपुर की ओर गया, जो अलौकिक प्रकाश से निधिवन को आलोकित कर रहा था। उन्होंने नूपुर को उठाकर मस्तक से लगाया। मस्तक से लगते ही उनके शरीर में सात्विक भावों का उदय हो गया।

उनकी संविद शक्ति भी नूपुर के स्पर्श से जागृत हो गई। वे समझ गए कि यह राधा रानी के चरणों का नूपुर है। वे नूपुर को बार-बार कभी सिर से, कभी ह्रदय से, कभी स्नेह की दृष्टि से देखकर चूमने लगे।

फिर प्रेम से व्याकुल होकर रो-रो कर कहने लगे, स्वामिनी, आपने नूपुर के दर्शन दिए परंतु नूपुर सहित चरणों के दर्शन क्यों नहीं दिए? ऐसी कृपा कब होगी जब इस नूपुर को आपके चरण कमल में धारण करने का सौभाग्य प्राप्त होगा? आपके चरण कमल को स्पर्श करने की मेरी वासना बौने के आकाश के चाँद को स्पर्श करने जैसी है, परंतु आपकी करुणा से क्या संभव नहीं हो सकता? कृष्ण दास बार-बार रो रहे थे।

उसी समय नित्य लीला में श्री राधा रानी ने देखा कि उनके चरण में नूपुर नहीं है। उन्होंने तुरंत ललिता को बुलाकर कहा, मेरा नूपुर कहीं गिर गया है। निधुवन में जाकर देखो, वहां तो नहीं है।

ललिता समझ गईं कि राधा रानी को कोई नई लीला करनी है, इसलिए नूपुर निधिवन में छोड़ आई हैं। सुबह हो चुकी थी, इसलिए ललिता वृद्ध ब्रह्मणी के वेश में निधिवन गईं।

वहां उन्होंने कृष्ण दास से पूछा, “क्या तुमने यहां कहीं नूपुर देखा है? मेरी बहू जल लेने गई थी, उसके पैर से निकल पड़ा, यदि तुम्हें मिला हो तो बताओ?”

कृष्ण दास बोले, मुझे मिला तो है, पर वह नूपुर तुम्हारा नहीं है। जिसे देखते ही मैं मूर्छित हो गया, स्पर्श करते ही प्रेम सागर में गोते लगाने लगा, मनुष्य के नूपुर से ऐसा संभव नहीं है। यह नूपुर श्री राधा रानी का ही है। तुम्हें नहीं दूंगा, जिसे है, उसी के चरणों में पहनाऊंगा।

वृद्ध रूपिणी ललिता ने कहा, तुमने ठीक पहचाना, नूपुर राधा रानी का ही है। तुम भाग्यशाली हो, तुम पर राधा रानी की विशेष कृपा है, तभी तुम्हें यह मिला है। तुम मुझे नूपुर दो और कोई वर मांग लो।

कृष्ण दास ने सोचा, यह वृद्धा वर मांगने को कह रही है और नूपुर राधा रानी को देगी। निश्चित ही यह राधा रानी की कोई सखी हो सकती है, जो वृद्ध के वेश में आई है।

कृष्ण दास बोले, ठकुरानी, मैं तुम्हें नूपुर ऐसे नहीं दे सकता। पहले अपना परिचय दो, अपने स्वरूप के दर्शन कराओ और नूपुर ले जाओ।

तब वृद्धा ने बताया, मैं राधा रानी की दासी हूँ, मेरा नाम ललिता है। इतना कहकर ललिता सखी ने अपने स्वरूप के दर्शन कराए। दर्शन करते ही कृष्ण दास मूर्छित हो गए। चेतना आते ही उन्होंने प्रणाम किया और उनके नेत्रों से अश्रु बहने लगे। सर्वांग पुलकित हो गया, कंठ गदगद हो जाने के कारण वे कुछ कह न सके। ललिता ने वर मांगने को कहा।

कृष्ण दास ने कहा, कृपा करें कि आपकी दासी बनकर राधा कृष्ण की सेवा करूं।

ललिता ने कहा, तुम्हें राधा कृष्ण प्राप्त हों। यह कहकर ललिता ने कान में मंत्र दिया। इस मंत्र का स्मरण करने से तुम्हें राधा के दर्शन प्राप्त होंगे।

ललिता ने अपना चरण उनके मस्तक पर रखकर आशीर्वाद दिया। नूपुर लेकर उनके माथे से स्पर्श किया और हंसकर कहा, यह राधा का चिह्न तुम्हारे माथे पर रहेगा। नूपुर रूप में तुम्हें श्यामा जी की कृपा प्राप्त हुई। इसलिए आज से तुम्हारा नाम श्यामानंद हुआ। ललिता के स्पर्श से श्यामानंद का शरीर तेजोमय कांचन वर्ण का हो गया।

((( जय जय श्री राधे )))

छोटी कहानी इन हिंदी श्यामानंद की दिव्य अनुभूति

कहानी से सीखें

  1. भक्ति और सेवा का महत्व: श्री कृष्ण दास की सेवा और भक्ति उन्हें श्री राधा रानी की कृपा प्राप्त करने में सहायक बनी। यह दिखाता है कि सच्ची भक्ति और सेवा से भगवान की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
  2. निश्छल प्रेम: कहानी में कृष्ण दास का श्री राधा रानी के प्रति निश्छल प्रेम दिखाई देता है। यह सिखाता है कि निश्छल और निस्वार्थ प्रेम हमेशा फलदायक होता है।
  3. धैर्य और श्रद्धा: कई दिनों तक सेवा करते हुए धैर्य और श्रद्धा बनाए रखना महत्वपूर्ण है। कृष्ण दास ने कभी हार नहीं मानी और अंततः उन्हें श्री राधा रानी की कृपा प्राप्त हुई।
  4. दिव्य अनुभव: सच्ची भक्ति और समर्पण से दिव्य अनुभव प्राप्त किए जा सकते हैं। जैसे कृष्ण दास को नूपुर की प्राप्ति और ललिता सखी के दर्शन हुए।
  5. विनम्रता: कृष्ण दास की विनम्रता और ललिता सखी के प्रति आदरभाव से पता चलता है कि सच्चे भक्त हमेशा विनम्र होते हैं और अपने ईष्टदेव के प्रति समर्पित रहते हैं।

हिन्दू शास्त्रों से उद्धरण

श्रीमद्भगवद्गीता:

  1. भक्ति योग (अध्याय 9, श्लोक 22):

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥

जो लोग अनन्य भाव से मेरा ध्यान करते हैं और मेरी आराधना करते हैं, उन योगक्षेम का वहन मैं स्वयं करता हूँ।

  1. श्रद्धा (अध्याय 12, श्लोक 6-7):

ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः। अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते॥ तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युंसंसारसागरात्। भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्॥

जो सब कर्मों को मुझमें समर्पित करके निरंतर मुझमें अनुरक्त रहते हैं और अनन्य भक्ति से मुझमें ध्यान करते हुए मेरी उपासना करते हैं, उन लोगों को मैं जल्द ही जन्म-मृत्यु के सागर से पार कर देता हूँ।

श्रीमद्भागवतम्:

  1. भक्ति की महिमा (स्कंध 1, अध्याय 2, श्लोक 7):

वसुदेवकथारुचिः।

जब किसी के हृदय में वासुदेव भगवान की कथा के प्रति रुचि जागृत हो जाती है, तब उससे उस व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

  1. प्रेम और भक्ति (स्कंध 10, अध्याय 21, श्लोक 5):

वृन्दावनं सखि भूवो विटपायमानं यत्सावकाशमनुवेनुजितं सदार्हः।

हे सखी, वृंदावन की वह भूमि धन्य है जो श्रीकृष्ण की बांसुरी की धुन से सदा आलोकित रहती है।

इन उद्धरणों और सीखों से स्पष्ट होता है कि भक्ति और सेवा का मार्ग हमें दिव्य अनुभूतियों और भगवान की कृपा प्राप्त कराने में सक्षम है।

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