गणपति गौरी के लाला

गणेश जी के भजन लिखे हुए गणपति गौरी के लाला

गणपति गौरी के लाला मैं पूजा करूं तुम्हारी,

हे देवाधिदेव वंदना पहले करूं तुम्हारी….

सोया चंदन और केसर का मस्तक तिलक लगाऊ,

गले पुष्पों की माला डालूं ज्योत सुगंध जलाऊ,

हे गजबंदन पुकारु तुमको रख लो लाज हमारी,

गणपति गौरी के लाला मैं पूजा करूं तुम्हारी…..

रिद्धि सिद्धि बुद्धि बिधाता और विद्या के दाता,

भक्त वंदना करते तेरी शरण जो तेरी आता,

हे गजबंदन पुकारे तुमको सुन लो अरज हमारी

गणपति गौरी के लाला मैं पूजा करूं तुम्हारी…..

मोदक लड्डू खीर चूरमा तुमको भोग लगाएं,

जो भी तेरी महिमा गाए मनवांछित फल पाएं,

हे गणनायक सिद्धिविनायक सुन लो विनय हमारी,

गणपति गौरी के लाला मैं पूजा करूं तुम्हारी…

गणेश जी के भजन लिखे हुए गणपति गौरी के लाला

राग मल्हार :———
कृष्ण के मुरली बजाने की कला का वर्णन विभिन्न पुराणों और साहित्य में मिलता है। ऐसा माना जाता है कि, कृष्ण जब मुरली बजाते थे, तो वह राग वृंदावन की गोपियों और ग्वाल-बालों को मंत्रमुग्ध कर देता था। उनके द्वारा बजाए प्रसिद्ध रोगों में से, दुंसरा स्थान, राग मल्हार को जाता है ———–
1- राग मल्हार और श्रीकृष्ण का संबंध ———-
यह राग बारिश से जुड़ा हुआ है और मान्यता है कि, कृष्ण ने इस राग को बजाकर, बारिश को बुलाया था।
राग मल्हार का भगवान श्रीकृष्ण से गहरा जुड़ाव है, और यह जुड़ाव विशेष रूप से उनकी लीलाओं से संबंधित है। इसके पीछे कई कथाएँ और किंवदंतियाँ हैं, जो इस राग को श्रीकृष्ण से जोड़ती हैं ——-
(1) श्रीकृष्ण और वर्षा ऋतु —— भगवान श्रीकृष्ण का जीवन और उनकी लीलाएँ प्रकृति से गहरे रूप से जुड़ी हुई हैं। श्रीकृष्ण के समय में, गोवर्धन पर्वत को उठाने और इंद्र के प्रकोप से, गोकुलवासियों की रक्षा करने की कथा प्रसिद्ध है। जिसमें, उन्होंने भारी वर्षा से लोगों की रक्षा की थी। राग मल्हार, जो वर्षा ऋतु का राग है, इस घटना से जुड़े श्रीकृष्ण के उस रूप का प्रतीक है।
(2) कृष्ण की बाँसुरी ——- यह कहा जाता है कि, भगवान श्रीकृष्ण ने, अपनी बाँसुरी से मल्हार राग बजाकर वर्षा का आह्वान किया था। उनकी बाँसुरी की धुन इतनी प्रभावशाली थी कि , इंद्रदेव को वर्षा करने के लिए बाध्य होना पड़ा।
(3) किंवदंतियाँ ——- कई कथाओं में उल्लेख मिलता है कि, जब श्रीकृष्ण अपनी बांसुरी पर राग मल्हार बजाते थे, तो वातावरण में तुरंत बदलाव आ जाता था और बारिश होने लगती थी। इस कारण से, राग मल्हार को भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित राग माना जाता है।
(4) भक्ति संगीत ——- कई भक्ति रचनाओं और कीर्तन में, राग मल्हार का प्रयोग किया जाता है, जो भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन करता है। इन रचनाओं में, कृष्ण के रूप और उनकी लीलाओं का गायन होता है, और मल्हार का प्रयोग उनके प्रेम और करुणा का प्रतिनिधित्व करता है।
(5) मियां तानसेन की कथा ——- मियां तानसेन, जो अकबर के दरबार के नौ रत्नों में से एक थे, ने राग मल्हार गाकर बारिश की थी। तानसेन भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त माने जाते थे और उनकी गायन शक्ति को , कृष्ण का आशीर्वाद माना जाता था। इस कथा से भी राग मल्हार का श्रीकृष्ण से जुड़ाव प्रकट होता है।
इन कारणों से, राग मल्हार का भगवान श्रीकृष्ण के साथ गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध है। यह राग न केवल वर्षा ऋतु का प्रतीक है, बल्कि श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप और उनकी लीलाओं का भी प्रतीक है।
क्रमशः . . . . . . . . . .

प्राकृतिक सत्ता के तीन अंग ब्रह्मा, विष्णु, एवं महेश जो क्रमशः सर्जक,पोषक एवं संहारक का कार्य करते हैं।उनके द्वारा धारित चिह्नों में रहस्य छिपा है जिनका हमारे जीवन से सीधा सम्बन्ध है और हमें प्रेरणा प्रदान करते हैं——
1.सर्जक (ब्रह्मा)–
कमण्डल — कमण्डल का जल हमें प्रेरणा देता है कि हमारा हर सर्जन (कार्य) प्राणवान होना चाहिए,संतो एवं महापुरुषों के निर्देशानुसार एवं दत्तचित्त होकर कार्य करने से हमारा हर कार्य अवश्य ही प्राणवान होगा।

माला — किसी भी कार्य में एकाग्र होने के लिए लगन एवं सातत्य की जरुरत होती है जो ब्रह्मा के हाथों मे विद्यमान माला से पूर्ण होती है। वह हमें जप तप एवं भगवद् भक्ति की प्रेरणा देता है।

2.पोषक(विष्णु)
शंख – शंखनाद का अर्थ – शुभ विचारों का सर्जक,जो मंगल क्रान्ति का प्रतीक है ।
शंख हमें प्रेरणा देता है कि हर महान क्रान्तिकारी कार्य के मूल में मंगल एवं शुभ विचार ही होते हैं।
शंखनाद से मन के अधिष्ठाता चन्द्रदेव प्रसन्न होते हैं , जिससे हमारे मन में विशेष आह्लाद , उत्साह ,एवं सात्विकता का संचार होता है।
शंखनाद कर्त्ता को शंखघोष कान्तिमान एवं शक्तिमान बनाता है, साथ ही वातावरण के हानिकारक परमाणुओ को नष्ट करता है, उसमें सात्विक आन्दोलन पैदा करता है, शंख का जल अमंगल का नाशक एवं पवित्रता बर्धक है।

सुदर्शन चक्र —-सुदर्शन चक्र गतिसूचक है जो हमें प्रेरणा देता है कि हे मानव! यदि तू उन्नति चाहता है तो सत्पथ पर तत्परता पूर्वक आगे बढ़, भूतकाल को भूलकर नकारात्मकता एवं पलायनवादिता के हीन विचारो को भेदकर आगे बढ़।

3.संहारक (रुद्र )
त्रिशूल एवं डमरु — त्रिशूल संहार का प्रतीक है तो डमरु संगीत का, जो हमें प्रेरणा देते हैं कि जिस प्रकार क्रोध का आवाहन करके शिवजी त्रिशूल द्वारा दुष्टों का संहार करते हैं तथा उल्लास का आवाहन करके डमरु द्वारा भक्तों को आह्लादित करते हैं, फिर भी दोनों स्थितियों में उनके हृदय में समता एवं शांति निवास करती है।
उसी प्रकार हमे भी दुष्ट जनों से लोहा लेने हेतु क्रोध को आवाहित करना पड़े उस समय तथा आह्लाद (सुख) के क्षण आये उस समय भी अपने हृदय को सम एवं शांति बनाये रखना चाहिए।

त्रिशूल यह भी संकेत देता है- जो तीनों गुणों (सत, रज और तम) पर विजय पाकर त्रिगुणातीत अवस्था को प्राप्त करते हैं उन्हेँ संसार ताप रुपी शूल कष्ट नहीं पहुँचा सकते।

इस प्रकार त्रिदेव के अस्त्र हमें प्रेरणा देते है कि जो मनुष्य अपने जीवन में कोई महान कार्य करना चाहता है उसमें सर्जक , पोषक , एवं संहारक प्रतिभा होनी चाहिए।

सर्जक प्रतिभान्तर्गत सद् विचारों का सर्जन आता है। पोषक प्रतिभा सद्वृत्ति का पोषण करती है।
संहारक प्रतिभा दुर्विचार तथा दुर्गुणों के संहार की योग्यता प्रदान करती है।

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