अगली सुबह, बूढ़ा स्नान कर लौटा और धोती दूसरी बहू के आँगन में सुखाने के लिए डाल दी, लेकिन वहाँ हीरे-मोतियों की जगह कीचड़ टपकने लगा।
बूढ़ा चिंता में पड़ गया और सूखने लगा। यह देख बड़ी बहू ने पूछा कि अब क्या चिंता है। बूढ़े ने बाकी बहुओं की बात बता दी। बड़ी बहू ने कहा कि वह खाना बनाकर रख जाएगी और वैसा ही किया
बड़ी बहू ने घर के भीतर जाकर देखा कि कंकड़-पत्थर वाले खाने में हीरे-मोती बन गए हैं। घर की जगह महल खड़ा हो गया है और धन-दौलत से भर गया है।
बूढ़ा बोला कि बड़ी बहू ने सच्चे मन से कार्तिक स्नान किया, जबकि बाकी बहुओं ने पापी मन से इसे निभाया। इसलिए कार्तिक देवता बड़ी बहू से प्रसन्न हुए और यह फल दिया। हे कार्तिक देवता, जैसे आपने बड़ी बहू की सुनी, वैसे ही सभी की सुनना।
हमारे कर्म और नीयत का फल हमें अवश्य मिलता है। जो कार्य सच्चे मन और ईमानदारी से किए जाते हैं, वे हमेशा सकारात्मक परिणाम देते हैं।
परिवार की एकता और सहयोग ही सुख और समृद्धि का मार्ग है।