moral bachon ki kahani in hindi लोभ का परिणाम
किसी राज्य में एक नाई अपने परिवार के साथ रहता था। नाई अपने जीवन में सन्तुष्ट था। नाई की पत्नी भी अपनी पति की आय से बड़ी कुशलता से अपनी गृहस्थी चलाती थी। उनका जीवन आनंदपूर्वक व्यतीत हो रहा था।
नाई अपने काम में बहुत निपुण था।राजा ने उसे राजनाई बना दिया ।नाई को प्रतिदिन राजा से एक स्वर्ण मुद्रा मिलती
नाई की आय में कई गुनी वृद्धि हुई परिवार सुखी हो गया
एक दिन जब नाई महल से अपने घर जा रहा था, उसे एक स्वर सुनाई दिया ।स्वर एक यक्ष की थी।
यक्ष ने नाई से कहा–‘मैंने तुम्हारे बड़े चर्चे सुने हैं, मैं तुमसे प्रसन्न हूँ और तुम्हें स्वर्णमुद्राओं से भरे सात घड़े देना चाहता हूँ।
नाई पहले तो थोड़ा डरा, पर फिर हाँ कर दिया
यक्ष ने कहा–‘सातों घड़े तुम्हारे घर पहुँच जाएँगे।’नाई जब घर पहुँचा, सात घड़े रखे हुए थे। नाई ने अपनी पत्नी को सारी बातें बताईं और दोनों ने घड़े खोलकर देखा । छः घड़े तो पूरे भरे हुए थे, पर सातवाँ घड़ा आधा खाली था।
नाई ने पत्नी से कहा–‘हमारी बचत हम इस घड़े में डाल दिया करेंगे। यह घड़ा भी भर जायेगा।
नाई ने अपनी बचत उस सातवें घड़े में डालना आरंभ कर दिया। पर घड़ा भरने का नाम नहीं लेता था।
नाई कंजूस होता गया और घड़े में अधिक पैसे डालने लगा,
उसने घर में पैसे देने कम कर दिये । पत्नी ने नाई को समझाना चाहा , पर नाई को बस एक ही धुन सवार थी—सातवाँ घड़ा भरने की।
अब नाई के घर में पहले जैसा वातावरण नहीं था।
एक दिन राजा ने नाई से कारण पूछा। राजा ने नाई से पूछा कि कहीं उसे यक्ष ने सात घड़े तो नहीं दे दिये हैं ? नाई ने राजा को सच-सच बता दिया।
तब राजा ने नाई से कहा कि सातों घड़े यक्ष को वापस कर दो, क्योंकि सातवाँ घड़ा साक्षात लोभ है, उसकी भूख कभी नहीं मिटती।
नाई को सारी बात समझ में आ गयी। नाई ने उसी दिन घर लौटकर सातों घड़े यक्ष को वापस कर दिये। घड़ों के जाने के बाद नाई का जीवन फिर से सुख से भर गया था।
moral bachon ki kahani in hindi लोभ का परिणाम
- लोभ मनुष्य को अंधा बना देता है: लोभ में पड़कर व्यक्ति सही-गलत का भेद भूल जाता है, जैसे पण्डितजी ने अपने मूल्यों को त्याग दिया।
- धन का लालच व्यक्ति को भ्रष्ट कर सकता है: वेश्या द्वारा सौ रुपये का नोट दिखाने पर पण्डितजी का आचरण बदल गया, जो लोभ के विनाशकारी प्रभाव को दर्शाता है।
- धर्म और नैतिकता का पालन करें: वेश्या ने पण्डितजी को धर्मभ्रष्ट होने से बचाकर नैतिकता का उदाहरण प्रस्तुत किया।
- ज्ञान का सही उपयोग जरूरी है: पण्डितजी के पास विद्या थी, लेकिन उसका सही उपयोग नहीं किया, जिससे उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ी।
- सच्ची विद्या वही है जो सही दिशा दिखाए: केवल विद्या प्राप्त करना पर्याप्त नहीं है, उसे सही दिशा में उपयोग करना ही सच्ची विद्या है।
- लोभ का अंत विनाश है: लोभ का परिणाम हमेशा बुरा होता है, चाहे वह किसी भी रूप में हो।
- कामना का त्याग करना चाहिए: जो प्राप्त नहीं है, उसकी कामना नहीं करनी चाहिए; यह केवल पाप की ओर ले जाती है।
- धन की अंधी दौड़ विनाशकारी है: अधिक धन-संग्रह की इच्छा व्यक्ति को पाप के रास्ते पर ले जाती है।
- अंहकार का त्याग करें: ‘मैं ऐसा हूँ’ जैसी सोच से व्यक्ति अंहकार में पड़ जाता है, जो पाप का मार्ग है।
- धर्म का पालन सबसे महत्वपूर्ण है: चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति हो, धर्म का पालन करना चाहिए।
- लोभ मनुष्य को पथभ्रष्ट कर देता है: वेश्या के सौ रुपये देने से पण्डितजी पथभ्रष्ट हो गए, जो लोभ के दुष्परिणाम को दर्शाता है।
- धन का लोभ पाप का मूल है: धन का लालच व्यक्ति को पाप की ओर ले जाता है, जिससे वह अपने धर्म और नैतिकता से विचलित हो जाता है।
- सच्ची शांति पाप से दूर रहकर ही प्राप्त की जा सकती है: लोभ, तृष्णा, और अंहकार से मुक्त होकर ही सच्ची शांति मिलती है।
- लोभ और तृष्णा का कोई अंत नहीं है: लोभ और तृष्णा कभी समाप्त नहीं होती, बल्कि व्यक्ति को और अधिक पाप की ओर धकेलती हैं।
- सच्चे ज्ञान का आचरण करें: विद्या का सही आचरण ही व्यक्ति को सही राह पर चलने में मदद करता है।