krishna bhajan book in hindi राधा का नाम
राधा का नाम अनमोल बोलो राधे राथे
श्यामा का नाम अनमोल बोलो राथे राधे ॥
ब्रह्मा भी बोले राथे, विष्णु भी बोले राधे
शंकर के डमरू से आवाज़ आए राधे राधे ॥
चंदा भी बोले राधे, सूरज भी बोले राधे ।
तारो के मंडल से आवाज़ आए राधे राधे ॥
गैया भी बोले राधे, बछड़ा भी बोले राधे।
दूध की धार से आवाज़ आए राधे राधे ॥
गंगा भी बोले राधे, सरयू भी बोले राधे।
यमुना की लहरों से आवाज़ आए राधे राधे ॥
गोपी भी बोले राथे, ग्वाले भी बोले राधे ।
कान्हा की बंसी से आवाज़ आए राथे राधे ॥
krishna bhajan book in hindi राधा का नाम
[दाशार्ह राजा की कथा]
मथुरा-नगर में दाशार्ह नामक एक यदुवंशी राजा राज करता था। वह बड़ा ही गुणवान्, उदार और शूर था। उसके राज्य में प्रजाजन बहुत ही सुख-शान्ति से रहते थे। पड़ोस के राजा उसका लोहा मानते थे।
राजा की स्त्री भी अत्यन्त रूपवती और परम पतिव्रता थी। उसका नाम कलावती था। एक दिन राजा सकाम भाव से अपनी रानी के पास रंगमहल में गया।
रानी उस दिन व्रत करके शिव की उपासना में रत थी। उसने राजा को अपने पास आने से मना किया; क्योंकि शास्त्र का आदेश है कि व्रतस्थ स्त्री का संग नहीं करना चाहिये।
परन्तु राजा ने न माना, वह रानी का आलिंगन करने के लिये आगे बढ़ा, किन्तु जैसे ही रानी के समीप पहुँचा, उसके (रानी के) शरीर के ताप से वह जलने लगा। तब उसने चकित होकर इस ताप का कारण पूछा !
रानी ने उत्तर दिया–‘महाराज! मैंने शिव-मन्त्र की दीक्षा ली है, उसी के जप की यह महिमा है कि कोई भी मनुष्य मुझे व्रत से च्युत नहीं कर सकता। आप भी चाहें तो गर्ग-मुनि से इस मन्त्र की दीक्षा ले अपने को निष्पाप और सुरक्षित बना सकते हैं।’
कलावती के मुख से इस बात को सुनते ही राजा बहुत प्रसन्न हुआ और गर्ग-मुनि के आश्रम में पहुँचा।
मुनि को साष्टांग प्रणामकर राजा ने शिव-षडक्षरी मन्त्र के उपदेश के लिये उनसे प्रार्थना की। मुनि ने राजा को यमुना में स्नान करवाकर शिव की षोडशोपचार पूजा करवायी।
तत्पश्चात् राजा ने मुनि का दिव्य रत्नों से अभिषेक किया। तदुपरान्त मुनि ने अपना वरद हस्त राजा के मस्तक पर रखा और उसे षडक्षरी मन्त्र का उपदेश दिया।
मन्त्र के कान में पड़ते ही राजा के हृदयाकाश में ज्ञान-सूर्य का उदय हुआ और उनका अज्ञानान्धकार नष्ट हो गया।
उस मन्त्र का ऐसा विलक्षण प्रभाव दिखलायी दिया कि क्षण भर में राजा के सारे पाप उसके शरीर से कौओं के रूप में बाहर निकल पड़े।
उनमें से कितनों के पंख जले हुए थे और कितने तड़फड़ाकर जमीन पर गिरते जाते थे।
जिस प्रकार दावाग्नि से कण्टक-वन दग्ध हो जाता है, वैसे ही पापरूप कौओं के भस्मीभूत होने से राजा को महान् आश्चर्य हुआ। उसने गर्ग-मुनि से पूछा कि ‘एकाएक मेरा शरीर ऐसा दिव्य कैसे हो गया ?’
मुनि बोले–‘वे जो कौए तुम्हारे देह से निकले हैं, वे जन्म-जन्मान्तर के पाप हैं।’
राजा ने शिव-मन्त्र के उपदेश के द्वारा निष्पाप बनाने वाले उन परमगुरु गर्ग मुनि को बारम्बार प्रणामकर उनसे विदा माँग अपने घर को प्रस्थान किया।
“नन्दोत्सव” (दधिकांदों)
अर्धरात्रि में श्रीकृष्ण का जन्म कंस के कारागार में होने के बाद उनके पिता वसुदेव कंस के भय से बालक को रात्रि में ही यमुना नदी पार कर नन्द बाबा के यहाँ गोकुल में छोड़ आये थे। इसीलिए कृष्ण जन्म के दूसरे दिन गोकुल में ‘नन्दोत्सव’ मनाया जाता है।
भाद्रपद नवमी के दिन समस्त ब्रजमंडल में नन्दोत्सव की धूम रहती है। यह उत्सव ‘दधिकांदों’ के रूप मनाया जाता है। ‘दधिकांदो’ का अर्थ है दही की कीच। हल्दी मिश्रित दही फेंकने की परम्परा आज भी निभाई जाती है। मंदिर के पुजारी नन्द बाबा और यशोदा के वेष में भगवान कृष्ण को पालने में झुलाते हैं। मिठाई, फल, मेवा व मिश्री लुटायी जाती है। श्रद्धालु इस प्रसाद को पाकर अपने आपको धन्य मानते हैं।
लठ्ठे का मेला
वृंदावन में विशाल उत्तर भारत के श्री रंगनाथ मंदिर में ब्रज के नायक भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के दूसरे दिन नन्दोत्सव की धूम रहती है। नन्दोत्सव में सुप्रसिद्ध ‘लठ्ठे के मेले’ का आयोजन किया जाता है। धार्मिक नगरी वृंदावन में श्री कृष्ण जन्माष्टमी जगह-जगह मनाई जाती है। उत्तर भारत के सबसे विशाल मंदिर में नन्दोत्सव की निराली छटा देखने को मिलती है।
दक्षिण भारतीय शैली में बना प्रसिद्ध श्री रंगनाथ मंदिर में नन्दोत्सव के दिन श्रद्धालु लठ्ठा के मेला की एक झलक पाने को खड़े होकर देखते रहते हैं। जब भगवान ‘रंगनाथ’ रथ पर विराजमान होकर मंदिर के पश्चिमी द्वार पर आते हैं तो लठ्ठे पर चढ़ने वाले पहलवान भगवान रंगनाथ को दण्डवत कर विजयश्री का आर्शीवाद लेते हैं और लठ्ठे पर चढ़ना प्रारम्भ करते हैं।
35 फुट ऊंचे लठ्ठे पर जब पहलवान चढ़ना शुरू करते हैं उसी समय मचान के ऊपर से कई मन तेल और पानी की धार अन्य ग्वाल-वाल लठ्ठे पर गिराते हैं, जिससे पहलवान फिसलकर नीचे जमीन पर आ गिरते हैं। इसको देखकर श्रद्धालुओं में रोमांच की अनुभूति होती है।
भगवान का आर्शीवाद लेकर ग्वाल-वाल पहलवान पुन: एक दूसरे को सहारा देकर लठ्ठे पर चढ़ने का प्रयास करते हैं और तेज़ पानी की धार और तेल की धार के बीच पूरे यत्न के साथ ऊपर की ओर चढ़ने लगते हैं। कई घंटे की मेहनत के बाद आख़िर ग्वाल-वालों को भगवान के आर्शीवाद से लठ्ठे पर चढ़कर जीत प्राप्त करने का अवसर मिलता है।
इस रोमांचक मेले को देखकर देश-विदेश के श्रद्धालु श्रृद्धा से अभिभूत हो जाते हैं। ग्वाल-वाल खम्भे पर चढ़कर नारियल, लोटा, अमरुद, केला, फल मेवा व पैसे लूटने लगते हैं। इसी प्रकार वृंदावन में ही नहीं भारत के अन्य भागों में भी भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर नन्दोत्सव मनाया जाता है।
शिवमहापुराण के अनुसार एकमात्र भगवान शिव ही ऐसे देवता हैं, जो निष्कल व सकल दोनों हैं, यही कारण है कि एकमात्र शिवजी का पूजन लिंग व मूर्ति दोनों रूपों में किया जाता है, भारत में बारह प्रमुख ज्योतिर्लिंग हैं, बारह ज्योतिर्लिङ्गों का अपना महत्व व महिमा है।
ऐसी मान्यता भी है कि सोमवार के दिन यदि भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों के दर्शन किए जायें तो जन्म-जन्म के कष्ट दूर हो जाते हैं, यही कारण है कि सोमवार को प्रमुख बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने के लिये श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है, सज्जनों! आज हम आपको संक्षेप में बता रहे हैं इन बारह ज्योतिर्लिंगों का महत्व व महिमा।
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्।।
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने।।
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये।।
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।।
एतेशां दर्शनादेव पातकं नैव तिष्ठति।
कर्मक्षयो भवेत्तस्य यस्य तुष्टो महेश्वराः।।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत का ही नहीं अपितु इस पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है, यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है, इस मंदिर के बारे में मान्यता है, कि जब चंद्रमा को दक्ष प्रजापति ने श्राप दिया था, तब चंद्रमा ने इसी स्थान पर तप कर इस श्राप से मुक्ति पाई थी।
ऐसा भी कहा जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं चन्द्र देव ने की थी, विदेशी आक्रमणों के कारण यह सत्रह बार नष्ट हो चुका है, हर बार यह बिगड़ता और बनता रहा है, आज यानी सोमवार के दिन सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन व पूजा करने से मनुष्य के सभी पापों और तीनों तापों का नाश हो जाता है, और भोलेनाथ शीवजी में भक्ति बढ़ती है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्रप्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है, इस मंदिर का महत्व भगवान शिव के कैलाश पर्वत के समान कहा गया है, अनेक धार्मिक शास्त्र इसके धार्मिक और पौराणिक महत्व की व्याख्या करते हैं, कहते हैं कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार जहां पर यह ज्योतिर्लिंग है, उस पर्वत पर आकर शिव का पूजन करने से व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होते हैं, सोमवार एवम् श्रावण महिने में शिवजी के इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजन से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, जीवन में मनुष्य को कम से कम एक बार तो यहाँ आकर दर्शन का लाभ जरूर उठाना चाहिये।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश की धार्मिक राजधानी कही जाने वाली उज्जैन नगरी में स्थित है, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषता है कि ये सृष्टि के एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है, यहाँ प्रतिदिन सुबह की जाने वाली भस्मारती विश्व भर में प्रसिद्ध है, महाकालेश्वर की पूजा विशेष रूप से आयु वृद्धि और जीवन पर आए हुये संकट को टालने के लिये की जाती है, उज्जैनवासी मानते हैं कि भगवान महाकालेश्वर ही उनके राजा हैं, और वे ही उज्जैन की रक्षा कर रहे हैं।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध शहर इंदौर के समीप स्थित है, जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है उस स्थान पर नर्मदा नदी बहती है, और पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ऊँ का आकार बनता है, ऊँ शब्द की उत्पति ब्रह्मा के मुख से हुई है, इसलिये किसी भी धार्मिक शास्त्र या वेदों का पाठ ऊँ के उच्चारण के साथ ही किया जाता है, यह ज्योतिर्लिंग ॐकार अर्थात ऊँ का आकार लिए हुए है, इस कारण इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है।
केदारनाथ स्थित ज्योतिर्लिंग भी भगवान शिव के बारह प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में आता है, यह उत्तराखंड में स्थित है, बाबा केदारनाथ का मंदिर बद्रीनाथ के मार्ग में स्थित है, केदारनाथ का वर्णन स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में भी मिलता है, यह तीर्थ भगवान् शिवजी को अत्यंत प्रिय है, जिस प्रकार कैलाश का महत्व है उसी प्रकार का महत्व शिवजी ने केदार क्षेत्र को भी दिया है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे जिले में सह्याद्रि नामक पर्वत पर स्थित है, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है, इस मंदिर के विषय में मान्यता है कि जो भक्त श्रद्धा से इस मंदिर का दर्शन प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं, तथा उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुल जाते हैं।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों मे प्रमुख है, यह उत्तर प्रदेश के काशी नामक स्थान पर स्थित है, काशी सभी धर्म स्थलों में सबसे अधिक महत्व रखती है, इसलिये सभी धर्म स्थलों में काशी का अत्यधिक महत्व कहा गया है, काशी की मान्यता है कि प्रलय आने पर भी यह स्थान बना रहेगा, इसकी रक्षा के लिए भगवान् शिवजी काशी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे, और प्रलय के टल जाने पर काशी को उसके स्थान पर पुन: रख देंगे।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के करीब महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में स्थित है, इस ज्योतिर्लिंग के सबसे अधिक निकट ब्रह्मागिरि नाम का पर्वत है, इसी पर्वत से गोदावरी नदी शुरू होती है, भगवान् शिवजी का एक नाम त्र्यंबकेश्वर भी है, कहा जाता है कि भगवान् शिवजी को गौतम ऋषि और गोदावरी नदी के आग्रह पर यहां ज्योतिर्लिंग रूप में रहना पड़ा।
श्री वैद्यनाथ शिवलिंग का समस्त ज्योतिर्लिंगों की गणना में नौवाँ स्थान बताया गया है, भगवान् श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर जिस स्थान पर अवस्थित है, उसे वैद्यनाथ धाम कहा जाता है, यह स्थान झारखंड राज्य (पूर्व में बिहार ) के देवघर जिला में पड़ता है, मान्यता है कि बैजनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र सभी व्याधियाँ समाप्त हो जाती है, तथा शिवलोक की प्राप्ति होती है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के बाहरी क्षेत्र में द्वारिका स्थान में स्थित है, धर्म शास्त्रों में भगवान् शिवजी नागों के देवता है, और नागेश्वर का पूर्ण अर्थ नागों का ईश्वर है, भगवान् शिवजी का एक अन्य नाम नागेश्वर भी है, द्वारका पुरी से भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी ज्यादा नहीं है, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा में कहा गया है, कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यहाँ दर्शन के लिए आता है उसकी सभी मनोकामनायें पूरी हो जाती है।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरं नामक स्थान में स्थित है, भगवान् शिवजी के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ-साथ यह स्थान हिंदुओं के चार धामों में से एक भी है, इस ज्योतिर्लिंग के विषय में यह मान्यता है कि इसकी स्थापना स्वयं भगवान् श्रीरामजी ने की थी, भगवान् रामजी के द्वारा स्थापित होने के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग को भगवान् रामजी का नाम रामेश्वरम दिया गया है।
घृष्णेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के समीप दौलताबाद के पास स्थित है, इस ज्योतिर्लिंग को घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है, दूर-दूर से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं और आत्मिक शांति प्राप्त करते हैं, भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है।
सज्जनों! अगर सुबह-शाम इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों के नाम का उच्चारण भी करते हैं, तो हमारे पूर्वजन्मों के सभी पाप कट जाते हैं, एवम् शिवलोक की प्राप्ति होती है, आज श्रावनी दुसरे सोमवार के पावन दिवस की पावन शुभ अपराह्न आप सभी भाई-बहनों के लिये सौभाग्यशाली व मंगलमय् हो।