kanha ji ke bhajan lyrics मन चल वृंदावन धाम,
मन चल वृंदावन धाम, रटेंगे राधे राधे नाम
मिलेंगे कुंज बिहारी, ओढ़ के कांबल काली ।
मन चल वृंदावन धाम, रटेंगे राधे राधे नाम
मिलेंगे कुंज बिहारी, ओढ़ के कांबल काली ।
प्रात होत हम श्री यमूनाजी जाएँगे,
करके पान हम जीवन सफल बनाएँगे ।
होवे सब तो पूरण काम, रटेंगे राधे राधे नाम ॥१॥
श्री गोवर्धन रूप के दर्शन पाएँगे,
परिक्रमा के जीवन सफल बनाएँगे ।
करे मानसी गंगा स्नान, रटेंगे राधे राधे नाम ॥२॥
श्री बरसाने धाम की महिमा न्यारी है,
महलोकी की सरकार श्री राधा रानी है ।
डफ़ ढोल की दे दे ताल, रटेंगे राधे राधे नाम ॥३॥
दूर दूर से नर और नारी यहा आते है,
दर्शन करके जीवन सफल बनाते है ।
मिले जीवन मे विश्राम, रटेंगे राधे राधे नाम ॥४॥
kanha ji ke bhajan lyrics मन चल वृंदावन धाम
वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय
आजकल ‘टॉयलेट’ संस्कृति का प्रचलन बढ़ गया है। प्रत्येक व्यक्ति अपने घर के शौचालय (Toilet) पर ज्यादा से ज्यादा रुपया खर्च कर रहा है। किसी भी आधुनिक इमारत को देखें, तो उसमें सबसे सुंदर उस घर का शौचालय ही होगा।
इतना ही नहीं, आजकल घरों में शयन कक्ष से लगे शौचालय की पद्धति चल पड़ी है। जहां देखो शौचालय बनने लगे हैं। पर जहां तक हो सके शौचालय और स्नान घर एक साथ नहीं होने चाहिएं। यह पद्धति भारतीय संस्कृति के अनुकूल नहीं है। शौचालय संबंधी कुछ नियम इस प्रकार हैं:
- रसोई ओर शौचालय कभी भी आमनेसामने नहीं होने चाहिएं।
- शौचालय पश्चिम या दक्षिण में होना चाहिए।
- शौचालय और स्नानागार यदि, जगह की कमी के कारण, एक साथ हों, तो भूल कर भी इसे ईशान या पूर्व दिशा में न बनाएं।
- स्नानागार में खिड़की पूर्व की तरफ रखनी चाहिए।
- स्नान करते समय व्यक्ति का मुंह पूर्व की तरफ हो, तो बहुत उत्तम।
- शौचालय में बैठते समय मुंह पूर्व की ओर होना चाहिए, ताकि गैस, कब्ज तथा मस्से की शिकायत न हो।
- दक्षिण और पश्चिम की तरह मुंह कर के बैठने से व्यक्ति अनेक प्रकार की बीमारियों से पीड़ित हो सकता है।
जहां तक हो सके, संयुक्त स्नान घर न बनाएं। बीच में दीवार खींच लें। शौचालय के दरवाजे पूर्व की ओर खुले हों।
- शौचालय में कमोड सदैव नैऋत्य में होना बाहिए, अथवा दक्षिण में हो, तो उत्तम है। कमोड़ पर बैठते समय मुंह उत्तर पूर्व, ईशान दिशाओं में हो, तो व्यक्ति को कब्ज, मस्सा और गैस की बीमारी नहीं रहेगी।
अशुभ योग जिनकी वजह से पति-पत्नी के बीच होते हैं झगड़े पति-पत्नी के बीच छोटे-छोटे झगड़े होना बहुत ही आम बात है, लेकिन जब ये झगड़े बार-बार और होने लगे तो स्थिति ज्यादा बिगड़ जाती है।
वैवाहिक जीवन में प्रेम बना रहे इसके लिए पति-पत्नी के बीच तालमेल होना बहुत जरूरी है। ज्योतिष के अनुसार कुंडली मे ग्रह दोषों की वजह से भी वैवाहिक जीवन में अशांति बढ़ सकती है। कुंडली के कुछ ऐसे योग जिनकी वजह से दाम्पत्य जीवन में विपरीत स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है…
1विवाह से पहले कन्या और वर के नामों से गुण मिलान किया जाता हैं। इस गुण मिलान में दोष हो तो बेडरूम में झगड़े होते हैं। जैसे गण दोष, भकुट दोष, नाड़ी दोष, द्विद्वादश दोष होने पर शादी के बाद अशांति के योग बनते हैं।
- अगर किसी एक व्यक्ति की कुंडली में मंगल दोष है और उसका मंगल दोष निवारण नहीं करवाया गया तो वैवाहिक जीवन में अशांति रहती है। मंगल व्यक्ति को अभिमानी और अड़ियल बनाता है, जिससे वाद-विवाद ज्यादा होते हैं।
- अगर पति या पत्नी में से किसी एक कुंडली में शुक्र नीच का हो या षष्ठम या अष्ठम भाव में हो तो झगड़े होने की संभावनाएं रहती हैं।
- कुंडली के सप्तम स्थान पर सूर्य, शनि, राहु, केतु और मंगल में से किसी एक या दो ग्रहों का प्रभाव हो तो ये योग पति-पत्नी के लिए अशुभ रहता है।
- कुंडली में गुरु अशुभ होकर सप्तमेश या सप्तम पर प्रभाव डालता है तो झगड़ों की संभावनाएं बनती हैं।
- कुंडली में सप्तमेश यानी सप्तम भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो झगड़े ज्यादा होते हैं।
- अगर पति या पत्नी की कुंडली में सप्तम भाव अशुभ ग्रहों से घिरा हो या सप्तम भाव का स्वामी अशुभ ग्रहों से घिरा हो तो वैवाहिक जीवन में शांति नहीं रहती है।
कर सकते हैं ये उपाय
- कुंडली के अशुभ ग्रहों के लिए उचित उपाय करते रहना चाहिए।
- शिवजी के साथ ही माता पार्वती की पूजा अवश्य करें और वैवाहिक जीवन में शांति बनाए रखने की प्रार्थना भी करें।
- हर गुरुवार ग्रह के लिए उपाय करना चाहिए। गुरु ग्रह के निमित्त चने की दाल का दान करें। केले के पौधे की पूजा करें।
- मंगल के लिए मंगलवार को भात पुजा करनी चाहिए।
- राहु-केतु के लिए पीपल की सात परिक्रमा करना चाहिए।
जन्म कुंडली अनुसार दाम्पत्य जीवन में खुशहाली एवं दोष निवारण के लिये सम्पर्क करे।
मासिक शिवरात्रि 01 सितम्बर विशेष
शिवरात्रि शिव और शक्ति के अभिसरण का विशेष पर्व है। हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। उनके क्रोध की ज्वाला से समस्त संसार जलकर भस्म होने वाला था किन्तु माता पार्वती ने महादेव का क्रोध शांत कर उन्हें प्रसन्न किया इसलिए हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भोलेनाथ ही उपासना की जाती है और इस दिन को मासिक शिवरात्रि कहा जाता है।
माना जाता है कि महाशिवरात्रि के बाद अगर प्रत्येक माह शिवरात्रि पर भी मोक्ष प्राप्ति के चार संकल्पों भगवान शिव की पूजा, रुद्रमंत्र का जप, शिवमंदिर में उपवास तथा काशी में देहत्याग का नियम से पालन किया जाए तो मोक्ष अवश्य ही प्राप्त होता है। इस पावन अवसर पर शिवलिंग की विधि पूर्वक पूजा और अभिषेक करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है।
अन्य भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि में भगवान शिव लिङ्ग के रूप में प्रकट हुए थे। पहली बार शिव लिङ्ग की पूजा भगवान विष्णु और ब्रह्माजी द्वारा की गयी थी। इसीलिए महा शिवरात्रि को भगवान शिव के जन्मदिन के रूप में जाना जाता है और श्रद्धालु लोग शिवरात्रि के दिन शिव लिङ्ग की पूजा करते हैं। शिवरात्रि व्रत प्राचीन काल से प्रचलित है। हिन्दु पुराणों में हमें शिवरात्रि व्रत का उल्लेख मिलता हैं। शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इन्द्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती और रति ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था। जो श्रद्धालु मासिक शिवरात्रि का व्रत करना चाहते है, वह इसे महा शिवरात्रि से आरम्भ कर सकते हैं और एक साल तक कायम रख सकते हैं। यह माना जाता है कि मासिक शिवरात्रि के व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा द्वारा कोई भी मुश्किल और असम्भव कार्य पूरे किये जा सकते हैं। श्रद्धालुओं को शिवरात्रि के दौरान जागी रहना चाहिए और रात्रि के दौरान भगवान शिव की पूजा करना चाहिए। अविवाहित महिलाएँ इस व्रत को विवाहित होने हेतु एवं विवाहित महिलाएँ अपने विवाहित जीवन में सुख और शान्ति बनाये रखने के लिए इस व्रत को करती है।
मासिक शिवरात्रि अगर मंगलवार के दिन पड़ती है तो वह बहुत ही शुभ होती है। शिवरात्रि पूजन मध्य रात्रि के दौरान किया जाता है। मध्य रात्रि को निशिता काल के नाम से जाना जाता है और यह दो घटी के लिए प्रबल होती है।
मासिक शिवरात्रि पूजा विधि
इस दिन सुबह सूर्योंदय से पहले उठकर स्नान आदि कार्यों से निवृत हो जाएं। अपने पास के मंदिर में जाकर भगवान शिव परिवार की धूप, दीप, नेवैद्य, फल और फूलों आदि से पूजा करनी चाहिए। सच्चे भाव से पूरा दिन उपवास करना चाहिए। इस दिन शिवलिंग पर बेलपत्र जरूर चढ़ाने चाहिए और रुद्राभिषेक करना चाहिए। इस दिन शिव जी रुद्राभिषेक से बहुत ही जयादा खुश हो जाते हैं. शिवलिंग के अभिषेक में जल, दूध, दही, शुद्ध घी, शहद, शक्कर या चीनी इत्यादि का उपयोग किया जाता है। शाम के समय आप मीठा भोजन कर सकते हैं, वहीं अगले दिन भगवान शिव के पूजा के बाद दान आदि कर के ही अपने व्रत का पारण करें। अपने किए गए संकल्प के अनुसार व्रत करके ही उसका विधिवत तरीके से उद्यापन करना चाहिए। शिवरात्रि पूजन मध्य रात्रि के दौरान किया जाता है। रात को 12 बजें के बाद थोड़ी देर जाग कर भगवान शिव की आराधना करें और श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें, इससे आर्थिक परेशानी दूर होती हैं। इस दिन सफेद वस्तुओं के दान की अधिक महिमा होती है, इससे कभी भी आपके घर में धन की कमी नहीं होगी। अगर आप सच्चे मन से मासिक शिवरात्रि का व्रत रखते हैं तो आपका कोई भी मुश्किल कार्य आसानी से हो जायेगा. इस दिन शिव पार्वती की पूजा करने से सभी कर्जों से मुक्ति मिलने की भी मान्यता हैं।
शिवरात्रि पर रात्रि जागरण और पूजन का महत्त्व
माना जाता है कि आध्यात्मिक साधना के लिए उपवास करना अति आवश्यक है। इस दिन रात्रि को जागरण कर शिवपुराण का पाठ सुनना हर एक उपवास रखने वाले का धर्म माना गया है। इस अवसर पर रात्रि जागरण करने वाले भक्तों को शिव नाम, पंचाक्षर मंत्र अथवा शिव स्रोत का आश्रय लेकर अपने जागरण को सफल करना चाहिए।
उपवास के साथ रात्रि जागरण के महत्व पर संतों का कहना है कि पांचों इंद्रियों द्वारा आत्मा पर जो विकार छा गया है उसके प्रति जाग्रत हो जाना ही जागरण है। यही नहीं रात्रि प्रिय महादेव से भेंट करने का सबसे उपयुक्त समय भी यही होता है। इसी कारण भक्त उपवास के साथ रात्रि में जागकर भोलेनाथ की पूजा करते है।
शास्त्रों में शिवरात्रि के पूजन को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है। कहते हैं महाशिवरात्रि के बाद शिव जी को प्रसन्न करने के लिए हर मासिक शिवरात्रि पर विधिपूर्वक व्रत और पूजा करनी चाहिए। माना जाता है कि इस दिन महादेव की आराधना करने से मनुष्य के जीवन से सभी कष्ट दूर होते हैं। साथ ही उसे आर्थिक परेशनियों से भी छुटकारा मिलता है। अगर आप पुराने कर्ज़ों से परेशान हैं तो इस दिन भोलेनाथ की उपासना कर आप अपनी समस्या से निजात पा सकते हैं। इसके अलावा भोलेनाथ की कृपा से कोई भी कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाता है।
शिवपुराण कथा में छः वस्तुओं का महत्व
बेलपत्र से शिवलिंग पर पानी छिड़कने का अर्थ है कि महादेव की क्रोध की ज्वाला को शान्त करने के लिए उन्हें ठंडे जल से स्नान कराया जाता है।
शिवलिंग पर चन्दन का टीका लगाना शुभ जाग्रत करने का प्रतीक है। फल, फूल चढ़ाना इसका अर्थ है भगवान का धन्यवाद करना।
धूप जलाना, इसका अर्थ है सारे कष्ट और दुःख दूर रहे।
दिया जलाना इसका अर्थ है कि भगवान अज्ञानता के अंधेरे को मिटा कर हमें शिक्षा की रौशनी प्रदान करें जिससे हम अपने जीवन में उन्नति कर सकें।
पान का पत्ता, इसका अर्थ है कि आपने हमें जो दिया जितना दिया हम उसमें संतुष्ट है और आपके आभारी हैं।