kanha bhajan lyrics in hindi जमुना किनारे
जमुना किनारे मेरो गांव सांवरे आ जइयो,
जमुना किनारे मेरो गाँव सावरे आ जइयो !!
जो कान्हा मेरो गाव ना जाने,
गाँव ना जाने मेरो गाव ना जाने,
बरसानो मेरो गाँव सावरे आ जइयो,
जमुना किनारे मेरो गांव सांवरे आ जइयो !!
जमुना किनारे मेरी उँची हवेली,
उँची हवेली मेरी उँची हवेली,
बैठक आलिशान सावरे आ जइयो,
जमुना किनारे मेरो…..
मैं महलन की राज कुमारी,
राज कुमारी मैं राज दुलारी,
पिता मेरे वृषभान सावरे आ जइयो,
जमुना किनारे मेरो….
जमुना किनारे मेरो गाँव साँवरे आ जइयो,
जमुना किनारे मेरो….
kanha bhajan lyrics in hindi जमुना किनारे
हनुमान जी को प्राप्त अष्ट सिद्धियाँ कौन सी है
१.
अणिमा : देह को अणु के समान सूक्ष्म करने की शक्ति ।
२. महिमा : अपने शरीर को असीमित विशालता करने में सक्षम होना होता हैं।
३. गरिमा : अपने शरीर के भार को असीमित तरीके से बढ़ा सकना। आकार तो सीमित ही रहता हैं, परन्तु उसके शरीर का भार इतना बढ़ जाता हैं कि उसे कोई शक्ति हिला नहीं सकती हैं।
४. लघिमा : साधक का शरीर इतना हल्का हो सकता है कि वह पवन से भी तेज गति से उड़ सकता हैं।
५. प्राप्ति : अपनी इच्छानुसार अन्य मनुष्यों के सनमुख अदृश्य होकर, साधक जहाँ जाना चाहें वही जा सकता हैं।
६. प्रकाम्य : कोई अभिव्यक्ति करें या नहीं उसकी बात को
समझ जाना।
७. ईशत्व : यह भगवान की उपाधि हैं, यह सिद्धि प्राप्त करने से पश्चात साधक स्वयं ईश्वर स्वरूप हो जाता हैं।
८. वशित्व : वह जिसे चाहें अपने वश में कर सकता हैं। किसी की भी विजय और पराजय का कारण बन सकता हैं।
सियावर रामचंद्र की जय। पवन सुत हनुमान की जय ।।
रामेश्वरम हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ है , यह तमिल नाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह तीर्थ हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। इसके अलावा यहाँ स्थापित शिवलिंग
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है भारत के उत्तर मे काशी की जो मान्यता है , वही दक्षिण में रामेश्वरम् की है। रामेश्वरम चेन्नई से लगभग 560 कि.मी. , मदुरै से 175 कि.मी. एवं तिरूवनन्तपुरम् से 375 कि.मी. है। यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुन्दर शंख आकार का द्वीप है। बहुत पहले यह द्वीप भारत की मुख्य भूमि के साथ जुड़ा हुआ था , परन्तु बाद में सागर की लहरों ने इस मिलाने वाली कड़ी को काट डाला , जिससे वह चारों ओर पानी से घिरकर टापू बन गया। यहाँ भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व एक पत्थरों के सेतु का निर्माण करवाया था , जिसपर चढ़कर वानर सेना लंका पहुँची व वहाँ विजय पाई। बाद में राम ने विभीषण के अनुरोध पर धनुषकोटि नामक स्थान पर यह सेतु तोड़ दिया था। आज भी इस 48 कि.मी लंबे आदि- सेतु के अवशेष सागर में दिखाई देते हैं । यहाँ के मन्दिर के तीसरे प्रकार का गलियारा विश्व का सबसे लम्बा और सुन्दर गलियारा है। रामेश्वरम् के विख्यात मन्दिर की स्थापना के बारें में यह रोचक कहानी कही जाती है — सीताजी को छुड़ाने के लिए श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई की थी। उन्होने लड़ाई के बिना सीताजी को छुड़वाने का बहुत प्रयत्न किया , पर जब राम को सफलता नहीं मिली तो विवश होकर उन्होने युद्ध किया। इस युद्ध में रावण और उसके सब साथी राक्षस मारे गये। रावण भी मारा गया और अन्ततः
सीताजी को मुक्त कराकर श्रीराम वापस अयोध्या लौटे। इस युद्ध हेतु राम को वानर सेना सहित सागर पार करना था , जो अत्यधिक कठिन कार्य था। रावण भी साधारण राक्षस नहीं था। वह पुलस्त्य महर्षि का नाती था। चारों वेदों का जाननेवाला था और शिवजी का बड़ा भक्त था , इस कारण रामजी को , उसे मारने के बाद , बड़ा खेद हुआ। ब्रह्मा-हत्या का पाप श्रीरामजी को लग गया। इस पाप को धोने के लिए उन्होने रामेश्वरम् में शिवलिंग की स्थापना करने का निश्चय किया। यह निश्चय करने के बाद श्रीराम ने हनुमानजी को आज्ञा दी कि काशी जाकर वहाँ से एक शिवलिंग ले आओ। हनुमानजी पवन-सुत थे। बड़े वेग से आकाश मार्ग से चल पड़े , लेकिन शिवलिंग की स्थापना की नियत घड़ी पास आ गई। हनुमान का कहीं पता न था। जब सीताजी ने देखा कि हनुमान के लौटने मे देर हो रही है , तो उन्होने समुद्र के किनारे के रेत को मुट्ठी में बाँधकर एक शिवलिंग बना दिया। यह देखकर राम बहुत प्रसन्न हुए और नियत समय पर , इसी शिवलिंग की स्थापना कर दी गई। छोटे आकार का यही शिवलिंग रामनाथ कहलाता है ; बाद में हनुमानजी के आने पर , पहले छोटे प्रतिष्ठित छोटे शिवलिंग के पास ही राम ने काले पत्थर के उस बड़े शिवलिंग को स्थापित कर दिया। ये दोनों शिवलिंग इस तीर्थ के मुख्य मन्दिर में आज भी पूजित हैं। यही मुख्य शिवलिंग ज्योतिर्लिंग है।
एक मान्यता यह भी है कि अयोध्या के राजा भगवान श्री राम ने लंकापति रावण से युद्ध करने से पहले विजय की कामना लिए हुए इसी स्थान पर रेत का शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की साधना की थी। जिसके बाद भगवान शिव यहाँ ज्योति रूप में प्रकट हुए।
सेतु का पौराणिक संदर्भ यह है —
पूरे भारत , दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व एशिया के कई देशों में हर साल दशहरे पर और राम के जीवन पर आधारित सभी तरह के नृत्य-नाटकों में सेतु बंधन का वर्णन किया जाता है। राम के बनाए इस पुल का वर्णन रामायण में तो है ही , महाभारत में भी , श्री राम के नल सेतु का जिक्र आया है। कालीदास की रघुवंश में सेतु का वर्णन है। अनेक पुराणों में भी श्रीरामसेतु का विवरण आता है। एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में इसे एडम्स ब्रिज के साथ-साथ राम सेतु कहा गया है। नासा और भारतीय सेटेलाइट से लिए गए चित्रों में धनुषकोडि से जाफना तक जो एक पतली सी द्वीपों की रेखा दिखती है , उसे ही आज रामसेतु के नाम से जाना जाता है। इसी पुल को बाद में एडम्स ब्रिज का नाम मिला। यह सेतु तब पाँच दिनों में ही बन गया था। इसकी लंबाई 100 योजन व चौड़ाई 10 योजन थी। इसे बनाने में उच्च तकनीक का प्रयोग किया गया था ।रामेश्वरम् शहर और रामनाथजी का प्रसिद्ध मन्दिर इस टापू के उत्तर के छोर पर है। टापू के दक्षिणी कोने में धनुषकोटि नामक तीर्थ है ,
जहाँ हिंद महासागर से बंगाल की खाड़ी मिलती है। इसी स्थान को
सेतुबंध कहते है। लोगों का विश्वास है कि श्रीराम ने लंका पर चढाई करने के लिए समुद्र पर जो सेतु बांधा था , वह इसी स्थान से आरंभ हुआ। इस कारण धनुष-कोटि का धार्मिक महत्व बहुत है। यही से कोलम्बो को जहाज जाते थे। अब यह स्थान चक्रवाती तूफान में बहकर समाप्त हो गया है।
गन्धमादन पर्वत — रामेश्वरम् शहर से करीब डेढ़ मील , उत्तर-पूर्व में , गंधमादन पर्वत नाम की एक छोटी-सी पहाड़ी है। हनुमानजी ने इसी पर्वत से समुद्र को लांघने के लिए छलांग मारी थी। बाद में राम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए यहीं पर विशाल सेना संगठित की थी। इस पर्वत पर एक सुन्दर मन्दिर बना हुआ है , जहाँ श्रीराम के चरण-चिन्हों की पूजा की जाती है। इसे पादुका मन्दिर कहते हैं।
रामेश्वरम् की यात्रा करनेवालों को हर जगह राम -कहानी की गूंज सुनाई देती है। रामेश्वरम् के विशाल टापू का चप्पा-चप्पा भूमि राम की कहानी से जुड़ी हुई है। किसी जगह पर राम ने सीताजी की प्यास बुझाने के लिए धनुष की नोंक से कुआँ खोदा था , तो कहीं पर उन्होनें सेनानायकों से सलाह की थी। कहीं पर सीताजी ने अग्नि-प्रवेश किया था तो किसी अन्य स्थान पर श्रीराम ने जटाओं से मुक्ति पायी थी। ऐसी सैकड़ों कहानियाँ प्रचलित है। यहाँ राम-सेतु के निर्माण में लगे ऐसे पत्थर भी मिलते हैं , जो पानी पर तैरते हैं। मान्यता अनुसार नल-नील नामक दो वानरों ने उनको मिले वरदान के कारण जिस पाषाण शिला को छूआ , वो पानी पर तैरने लगी और सेतु के काम आयी। एक अन्य मतानुसार ये दोनों सेतु-विद्या जानते थे।
आदि-सेतु — रामेश्वरम् से करीब 10 कि.मी.दक्षिण में एक स्थान है , जिसे ‘दर्भशयनम्’ कहते है ; यहीं पर राम ने पहले समुद्र में सेतु बांधना शुरू किया था। इस कारण यह स्थान आदि सेतु भी कहलाता है