jagat ke rang kya dekhu lyrics
जगत के रंग क्या देखूं,
तेरा दीदार काफी है ।
क्यों भटकूँ गैरों के दर पे,
तेरा दरबार काफी है ।।
नहीं चाहिए ये दुनियां के,
निराले रंग ढंग मुझको ।
चली जाऊँ मैं वृंदावन,
तेरा श्रृंगार काफी है ।।
।।जगत के रंग क्या देखूं…।।
जगत के साज बाजों से,
हुए हैं कान अब बहरे ।
कहाँ जाके सुनूँ बंशी,
मधुर वो तान काफी है ।।
।।जगत के रंग क्या देखूं…।।
जगत के रिश्तेदारों ने,
बिछाया जाल माया का ।
तेरे भक्तों से हो प्रीति,
श्याम परिवार काफी है ।।
।।जगत के रंग क्या देखूं…।।
जगत की झूटी रौनक से,
हैं आँखें भर गयी मेरी ।
चले आओ मेरे मोहन,
दरश की प्यास काफी है ।।
।।जगत के रंग क्या देखूं…।।
जगत के रंग क्या देखूं,
तेरा दीदार काफी है ।
क्यों भटकूँ गैरों के दर पे,
तेरा दरबार काफी है ।।