ढोलक पर गाने वाले भजन लिरिक्स मत रोग बुढ़ापे
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शिव शंकर भोलेनाथ हो नाथ मत रोग बुढ़ापे में दीजो,
मत रोग बुढ़ापे में दीजो, मत रोग बुढ़ापे में दीजो,
शिव शंकर भोलेनाथ हो नाथ मत रोग बुढ़ापे में दीजो॥
जामें श्रवण जैसा ज्ञान मत रोग बुढ़ापे में दीजो,
शिव शंकर भोलेनाथ हो नाथ मत रोग बुढ़ापे में दीजो॥
बहू देना तो ऐसी देना,
जामें तुलसी जैसा ज्ञान मत रोक बुढ़ापे में दीजो,
शिव शंकर भोलेनाथ हो नाथ मत रोग बुढ़ापे में दीजो॥
बेटी देना तो ऐसी देना,
जामें मीरा जैसा ज्ञान मत रो बुढ़ापे में दीजो,
शिव शंकर भोलेनाथ हो नाथ मत रोग बुढ़ापे में दीजो॥
पोता देना तो ऐसा देना,
जामें कृष्ण जैसा ज्ञान मत रोग बुढ़ापे में दीजो,
शिव शंकर भोलेनाथ हो नाथ मत रोग बुढ़ापे में दीजो॥
पोती देना तो ऐसी देना,
जिसका देवी जैसा रूप मत रोग बुढ़ापे में दीजो,
शिव शंकर भोलेनाथ हो नाथ मत रोग बुढ़ापे में दीजो॥
बुढ़ापा देना तो ऐसा देना,
तेरा भजन करूं दिन रात मत रोग बुढ़ापे में दीजो,
शिव शंकर भोलेनाथ हो नाथ मत रोग बुढ़ापे में दीजो
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ढोलक पर गाने वाले भजन लिरिक्स मत रोग बुढ़ापे
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धन्ना जाट जी की कथा
एक बार की बात है, एक गाँव था जहाँ भागवत कथा का आयोजन किया गया था। एक पंडित कथा सुनाने आया था जो पूरे एक सप्ताह तक चली। अंतिम अनुष्ठान के बाद, जब पंडित दान लेकर घोड़े पर सवार होकर जाने को तैयार हुआ, तो धन्ना जाट नामक एक सीधे-सादे और गरीब किसान ने उसे रोक लिया।
धन्ना ने कहा, “हे पंडित जी! आपने कहा था कि जो भगवान की सेवा करता है, उसका बेड़ा पार हो जाता है। लेकिन मेरे पास भगवान की मूर्ति नहीं है और न ही मैं ठीक से पूजा करना जानता हूँ। कृपया मुझे भगवान की एक मूर्ति दे दीजिए।”
पंडित ने उत्तर दिया, “आप स्वयं ही एक मूर्ति ले आइए।”
धन्ना ने कहा, “लेकिन मैंने तो भगवान को कभी देखा ही नहीं, मैं उन्हें कैसे लाऊँगा?”
उन्होंने पिण्ड छुडाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- “ये ठाकुरजी हैं ! इनकी सेवा पूजा करना।’
“सच्ची भक्ति: सेवा और करुणा का मार्ग”
एक समय की बात है, एक शहर में एक धनवान सेठ रहता था। उसके पास बहुत दौलत थी और वह कई फैक्ट्रियों का मालिक था।
एक शाम, अचानक उसे बेचैनी की अनुभूति होने लगी। डॉक्टरों ने उसकी जांच की, लेकिन कोई बीमारी नहीं मिली। फिर भी उसकी बेचैनी बढ़ती गई। रात को नींद की गोलियां लेने के बावजूद भी वह नींद नहीं पा रहा था।
आखिरकार, आधी रात को वह अपने बगीचे में घूमने निकल गया। बाहर आने पर उसे थोड़ा सुकून मिला, तो वह सड़क पर चलने लगा। चलते-चलते वह बहुत दूर निकल आया और थककर एक चबूतरे पर बैठ गया।
तभी वहां एक कुत्ता आया और उसकी एक चप्पल ले गया। सेठ ने दूसरी चप्पल उठाकर उसका पीछा किया। कुत्ता एक झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में घुस गया। जब सेठ नजदीक पहुंचा, तो कुत्ते ने चप्पल छोड़ दी और भाग गया।
इसी बीच, सेठ ने किसी के रोने की आवाज सुनी। वह आवाज एक झोपड़ी से आ रही थी। अंदर झांककर उसने देखा कि एक गरीब औरत अपनी बीमार बच्ची के लिए रो रही है और भगवान से मदद मांग रही है।
शुरू में सेठ वहां से चला जाना चाहता था, लेकिन फिर उसने औरत की मदद करने का फैसला किया। जब उसने दरवाजा खटखटाया तो औरत डर गई। सेठ ने उसे आश्वस्त किया और उसकी समस्या