माता रानी के भजन ढोलक वाले आज मैया के है जगराता
आज मैया के है जगराता,
आ जाओ शीतला माता,
खूब सजा दरबार,
हो रही जय जयकार,
मैया आ जाओ,
सुन्दर सा दरबार सजाया,
सुन्दर सा दरबार सजाया,
तोड़ के फूल बाग़ ते ल्याया,
गेंदा चमेली कचनार,
मैया आ जाओ,
हो रही जय जयकार,
मैया आ जाओ,
धजा नारियल पान सुपारी,
लाल चुनरिया ल्याया प्यारी
और सोलह सिंगार,
मैया आ जाओ,
हो रही जय जयकार,
मैया आ जाओ,
सबकी पूरी आस माँ कर दे,
सबकी झोली खुशियों से भर दे,
खोल दे तेरा भण्डार,
मैया आ जाओ,
हो रही जय जयकार,
मैया आ जाओ,
हम को मैया भूल ना जाना,
सरगम तेरा दास पुराना,
रहे सेवा में त्यार,
मैया आ जाओ,
हो रही जय जयकार,
मैया आ जाओ,
मैया आ जाओ,
हो रही जय जयकार,
मैया आ जाओ,
माता रानी के भजन ढोलक वाले आज मैया के है जगराता
विष की अल्प मात्रा भी दवा का काम करती है, और दवा की अत्यधिक मात्रा भी विष बन जाती है,।
विवेक से, संयम से जगत का भोग किया जाये तो कहीं समस्या नहीं है,संसार को छोड़ना नहीं, बस समझना है,।
कुदरत ने पेड़-पौधे, फल-फूल, नदी-वन, पर्वत-झरने और न जाने क्या-क्या हमारे लिए बनाया है, अस्तित्व में निरर्थक कुछ भी नहीं है,।
प्रत्येक वस्तु अपने समय पर और अपनी स्थिति में श्रेष्ठ है,।
कब, कैसे, कहाँ, क्यों और किस निमित्त उसका उपयोग करना है,यह समझ में आ जाये तो जीवन को महोत्सव बनने में देर नहीं लगेगी..!
याद रहे- हमारे भीतर के क्रोध और अहंकारही हमे सही निर्णय नहीं लेने देते…!!!
श्री राम और राममन्त्र तात्पर्य,,,,,
वास्तव में राम अनादि ब्रह्म ही हैं। अनेका नेक संतों ने निर्गुण राम को अपने आराध्य रूप में प्रतिष्ठित किया है। राम नाम के इस अत्यंत प्रभावी एवं विलक्षण दिव्य बीज मंत्र को सगुणोपासक मनुष्यों में प्रतिष्ठित करने के लिए दशरथी राम का पृथ्वी पर अवतरण हुआ है।कबीरदास जी ने कहा है –आत्मा और राम एक है-‘ *आतम राम अवर नहिं दूजा।*’राम नाम कबीर का बीज मंत्र है। राम नाम को उन्होंने अजपा जाप कहा है।
राम शब्द का अर्थ है*
*रमंति इति रामः*’जो रोम-रोम में रहता है, जो समूचे ब्रह्मांड में रमण करता हैवही राम हैं।इसी तरह कहा गया है –
*’रमन्ते योगिनो यस्मिन स रामः’*अर्थात् योगीजन जिसमें रमण करते हैं वही राम हैं।इसी तरह ब्रह्मवैवर्त पुराणमें कहा गया है –’ राम शब्दो *विश्ववचनो, मश्वापीश्वर वाचकः*’अर्थात् ‘रा’ शब्द परिपूर्णता का बोधक है और ‘म’ परमेश्वर वाचक है। *चाहे निर्गुण ब्रह्म हो या दाशरथि राम हो,* विशिष्टतथ्य यह है कि राम शब्द एक महामंत्र है।
राम मन्त्र का अर्थ*
‘ राम ‘ स्वतः मूलतःअपने आप में पूर्ण मन्त्र है।’र’, ‘अ’ और ‘म’, इन तीनों अक्षरों के योग से ‘राम’ मंत्र बनता है।यही राम रसायन है।’र’ अग्निवाचक है।’अ’ बीज मंत्र है।’म’ का अर्थ है ज्ञान।यह मंत्र पापों को जलाता है,किंतु पुण्य को सुरक्षित रखता है और ज्ञान प्रदान करता है। हम चाहते हैं कि पुण्य सुरक्षित रहें, सिर्फ पापों का नाश हो।
‘अ’ मंत्र जोड़ देने से अग्नि केवल पाप कर्मो का दहन कर पाती है और हमारे शुभ और सात्विक कर्मो को सुरक्षित करती है। ‘म’ का उच्चारण करने से ज्ञान की उत्पत्ति होती है। हमें अपने स्वरूप का भान हो जाता है। इसलिए हम र, अ और म को जोड़कर एक मंत्र बना लेते हैं-राम। ‘म’ अभीष्ट होने पर भी यदि हम ‘र’ और ‘अ’ का उच्चारण नहीं करेंगे तो अभीष्ट की प्राप्ति नहीं होगी।
राम सिर्फ एक नाम नहीं अपितु एक मंत्र है, जिसका नित्य स्मरण करने से सभी दु:खों से मुक्ति मिल जाती है। राम शब्द का अर्थ है- मनोहर, विलक्षण, चमत्कारी, पापियों का नाश करने वाला व भवसागर से मुक्त करने वाला। रामचरित मानस के बालकांड में एक प्रसंग में लिखा है –
*नहिं कलि करम न भगति बिबेकू।*
*राम नाम अवलंबन एकू।।*
अर्थात कलयुग में न तो कर्म का भरोसा है, न भक्ति का और न ज्ञान का। सिर्फ राम नाम ही एकमात्र सहारा हैं।स्कंदपुराण में भी राम नाम की महिमा का गुणगान किया गया है –
*रामेति द्वयक्षरजप: सर्वपापापनोदक:।*
*गच्छन्तिष्ठन् शयनो वा मनुजो रामकीर्तनात्।।*
*इड निर्वर्तितो याति चान्ते हरिगणो भवेत्*
स्कंदपुराण/नागरखंडअर्थात यह दो अक्षरों का मंत्र(राम) जपे जाने पर समस्त पापों का नाश हो जाता है। चलते, बैठते, सोते या किसी भी अवस्था में जो मनुष्य राम नाम का कीर्तन करता है,और अंत में भगवान विष्णु का पार्षद बनता है।
“राम रामेति रामेति रमे रामेमनोरमे ।
सहस्र नाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने ।।”
आरोग्य ,धन , ज्ञान और मोक्ष इन चार चीजों को पाने के लिए चार प्रकार के प्रयत्न करने पड़ते हैं इनको देने वाले देवता अलग अलग हैं आरोग्य अर्थात् बीमारी रहित जीवन की आकांक्षा से भगवान सूर्य की आराधना करनी चाहिए।
धन की प्रचुरता के लिए अग्नि देवता की आराधना करनी चाहिए। ज्ञान प्राप्ति के लिए भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए शिवजी की आराधना से लौकिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की विद्या मिलती है मोक्ष प्राप्ति के लिए भगवान नारायण की आराधना करनी चाहिए इस संदर्भ में मत्स्य पुराण में महत्वपूर्ण निर्देश मिलता है
शरीर धारण करने के लिए आत्माओं का निर्गमन विष्णु से ही होता है अतः मोक्ष भी विष्णु की आराधना से मिलता है।
सूर्य देवता की नित्य आराधना से व्यक्ति कभी भी किसी बड़ी बीमारी का शिकार नहीं होता है भगवान सूर्य धन और यश भी देते है ।
लोग भूल गए अग्नि देवता की आराधना इसीलिए
पवित्र कर्म वालों को दरिद्रता घेरे रहती है यदि आप पवित्र ढंग से जीते हुए धनी भी रहना चाहते हैं तो प्रतिदिन अग्नि की पूजा कीजिये🙏
[भद्रायु और कीर्तिमालिनी की कथा]
दशार्ण-देश के राजा वज्रबाहु की सुमति नाम की एक रानी थी। उसकी गर्भावस्था में ही सौतों ने उसे विष दे दिया।
भगवत्-प्रेरणा से उसका गर्भपात तो नहीं हुआ, परन्तु उसके शरीर में व्रण हो गये। उसको जो बच्चा पैदा हुआ, उसका शरीर भी व्रण से भरा था। दोनों माँ-बेटे के शरीर घावों से भर गये।
राजा ने अनेकों प्रकार के उपचार किये, परन्तु कुछ भी लाभ होते न देख निराश हो अपनी अन्यान्य स्त्रियों की सलाह से, जो सुमति से द्वेष रखती थीं, रानी को उसके बच्चे के साथ वन में छुड़वा दिया।
सुमति वन में छोटी-सी कुटिया बनाकर रहने लगी। वन में सुमति को दुःसह कष्ट होने लगे, शरीर की पीड़ा से उसे बारम्बार मूर्च्छा आने लगी, उसका बच्चा तो पहले ही स्वर्ग सिधार गया।
उसे जब होश आया तो वह बहुत ही कातरभाव से भगवान् शंकर से प्रार्थना करने लगी–‘हे प्रभो! आप सर्वव्यापक हैं, सर्वज्ञ हैं, दीन-दुःखहारी हैं, मैं आपकी शरण आयी हूँ, अब मुझे केवल आपका ही भरोसा है।’
उसकी इस कातरवाणी को सुनते ही करुणामय आशुतोषका सिंहासन डोल उठा। शीघ्र ही शिवयोगी वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने सुमति को मृत्युंजय मन्त्र का जप करने को कहा और अभिमन्त्रित भस्म को उसकी तथा उसके बच्चे की देह में लगा दिया। भस्म के लगाते ही उसकी सारी व्यथा दूर हो गयी और बच्चा भी प्रसन्न-मुख हो जी उठा। सुमति ने शिवयोगी की शरण ली। शिवयोगी ने बच्चे का नाम भद्रायु रखा।
सुमति और भद्रायु दोनों मृत्युंजय मन्त्र का जप करने लगे और इधर राजा वज्रबाहु को अपनी निर्दोष पत्नी और अनाथ बच्चे को व्यर्थ में कष्ट पहुँचाने का फल मिला। उसके राज्य को शत्रुओं ने हड़प लिया और उसे बन्दीगृह में डाल दिया।
एक दिन भद्रायु के मन्त्र जप से प्रसन्न हो शिवयोगी प्रकट हुए। उन्होंने उसे एक खड्ग और एक शंख दिया और बारह हजार हाथियों का बल देकर वे अन्तर्धान हो गये।
भद्रायु ने चढ़ाई करके अपने पिता के शत्रुओं को मार भगाया और पैतृक राज्य को अधिकृतकर पिता को बन्दी गृह से छुड़ाया।
उसका यश चारों ओर फैल गया। तब राजा चित्रांगद और शिवाराधिका महारानी सीमन्तिनी ने अपनी कन्या कीर्तिमालिनी का ब्याह भद्रायु के साथ कर दिया।
भद्रायु ने शिवपूजा करते हुए सहस्त्रों वर्षों तक प्रजा को सुख-शान्ति पहुँचाते हुए कुशलता पूर्वक राज्य किया और अन्त में शिवसायुज्य को प्राप्त हुए। यह मृत्युंजय मन्त्र के जप की महान् महिमा है।