भोले बाबा के भजन लिखित में
है धन्य तेरी माया जग में
ओ दुनिया के रखवाले
शिव शंकर डमरू वाले
नमामि शंकर………..
नमामि हर हर………..
नमामि देवी महेश्वरा……..
नमामि पार ब्रह्म परमेश्वरा………..
नमामि भोले दिगम्बरा ………..
है धन्य तेरी माया जग में
ओ दुनिया के रखवाले
शिव शंकर डमरू वाले
शिव शंकर भोले भाले
जो ध्यान तेरा धार ले मन में
वो जग से मुक्ति पाए
भव सागर से उसकी नैया
दो पल में पार लगाये
बाबा पल में पार लगाये
बाबा पल में पार लगाये
संकट में भक्तों को पड़ कर
तू भोले आप संभाले
शिव शंकर डमरू वाले
शिव शंकर भोले भाले
है कोई नहीं इस दुनिया में तेरे जैसा वरदानी
नित सुमिरन करते नाम तेरा
सब संत ऋषि और ज्ञानी
बाबा संत ऋषि और ज्ञानी
बाबा संत ऋषि और ज्ञानी
ना जाने किस पर खुश होकर
तू क्या से क्या दे डाले
शिव शंकर डमरू वाले
शिव शंकर भोले भाले
त्रिलोक के स्वामी होकर भी
कयाघड़ रूप बनाये
कर में डमरू त्रिशूल लिए
और नाग गले लपटाये
भोले नाग गले लपटाये
भोले नाग गले लपटाये
तुम त्याग के अमृत पीते हो
नित प्रेम से विश के प्यारे
शिव शंकर डमरू वाले
शिव शंकर भोले भाले
तप खंडित करने कामदेव जब
इंद्रलोक से आया
और साध के अपना काम बाण
तुझ पर वो मूर्ख चलाया
भोले पे मूर्ख चलाया
भोले पे मूर्ख चलाया
तब खोल तीसरा नैन भस्म
उसको पल में कर डाले
शिव शंकर डमरू वाले
शिव शंकर भोले भाले
जब चली कालिका क्रोधित हो
खप्पर और खडग उठाये
तब हाहाकार मचा जग में
सब सुर और नर घबराए
सब सुर और नर घबराए
तुम बीच डगर में सोकर
शक्ति देवी की हर डाले
शिव शंकर डमरू वाले
शिव शंकर भोले भाले
अब दृष्टि दया की भक्तों पर
हे डमरूधर कर देना
शर्मा और लक्खा की झोली
भोले शंकर भर देना
भोले शंकर भर देना
अपना ही बालक जान हमें भी
चरणों में अपना ले
शिव शंकर डमरू वाले
शिव शंकर भोले भाले
भोले बाबा के भजन लिखित में
एक बार की बात है, एक गाँव था जहाँ भागवत कथा का आयोजन किया गया था। एक पंडित कथा सुनाने आया था जो पूरे एक सप्ताह तक चली। अंतिम अनुष्ठान के बाद, जब पंडित दान लेकर घोड़े पर सवार होकर जाने को तैयार हुआ, तो धन्ना जाट नामक एक सीधे-सादे और गरीब किसान ने उसे रोक लिया।
धन्ना ने कहा, “हे पंडित जी! आपने कहा था कि जो भगवान की सेवा करता है, उसका बेड़ा पार हो जाता है। लेकिन मेरे पास भगवान की मूर्ति नहीं है और न ही मैं ठीक से पूजा करना जानता हूँ। कृपया मुझे भगवान की एक मूर्ति दे दीजिए।”
पंडित ने उत्तर दिया, “आप स्वयं ही एक मूर्ति ले आइए।”
धन्ना ने कहा, “लेकिन मैंने तो भगवान को कभी देखा ही नहीं, मैं उन्हें कैसे लाऊँगा?”
उन्होंने पिण्ड छुडाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- “ये ठाकुरजी हैं ! इनकी सेवा पूजा करना।’
“सच्ची भक्ति: सेवा और करुणा का मार्ग”
एक समय की बात है, एक शहर में एक धनवान सेठ रहता था। उसके पास बहुत दौलत थी और वह कई फैक्ट्रियों का मालिक था।
एक शाम, अचानक उसे बेचैनी की अनुभूति होने लगी। डॉक्टरों ने उसकी जांच की, लेकिन कोई बीमारी नहीं मिली। फिर भी उसकी बेचैनी बढ़ती गई। रात को नींद की गोलियां लेने के बावजूद भी वह नींद नहीं पा रहा था।
आखिरकार, आधी रात को वह अपने बगीचे में घूमने निकल गया। बाहर आने पर उसे थोड़ा सुकून मिला, तो वह सड़क पर चलने लगा। चलते-चलते वह बहुत दूर निकल आया और थककर एक चबूतरे पर बैठ गया।
तभी वहां एक कुत्ता आया और उसकी एक चप्पल ले गया। सेठ ने दूसरी चप्पल उठाकर उसका पीछा किया। कुत्ता एक झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में घुस गया। जब सेठ नजदीक पहुंचा, तो कुत्ते ने चप्पल छोड़ दी और भाग गया।
इसी बीच, सेठ ने किसी के रोने की आवाज सुनी। वह आवाज एक झोपड़ी से आ रही थी। अंदर झांककर उसने देखा कि एक गरीब औरत अपनी बीमार बच्ची के लिए रो रही है और भगवान से मदद मांग रही है।
शुरू में सेठ वहां से चला जाना चाहता था, लेकिन फिर उसने औरत की मदद करने का फैसला किया। जब उसने दरवाजा खटखटाया तो औरत डर गई। सेठ ने उसे आश्वस्त किया और उसकी समस्या