छोटी कहानी इन हिंदी जगन्नाथ धाम पुरी की रसोई
संक्षिप्त अवलोकन
जगन्नाथ धाम पुरी की रसोई एक अद्वितीय और विशाल रसोई है, जहाँ भगवान जगन्नाथ को चढ़ाए जाने वाले महाप्रसाद का निर्माण होता है। इस रसोई में 752 चूल्हों पर लगभग 500 रसोइए और 300 सहयोगी मिलकर 56 प्रकार के भोग तैयार करते हैं। यहाँ के व्यंजनों में प्याज और लहसुन का प्रयोग निषिद्ध है और सब्जियों में आलू, टमाटर और फूलगोभी का उपयोग नहीं होता। रसोई के पास स्थित दो कुओं, ‘गंगा’ और ‘यमुना’, के जल का ही उपयोग किया जाता है। यह रसोई एक बार में 50 हजार लोगों के लिए महाप्रसाद बना सकती है और यहाँ की रसोई का नाम गिनीज बुक में दर्ज है। भगवान जगन्नाथ को दिन में छह बार महाप्रसाद चढ़ाया जाता है और रथ यात्रा के दौरान लाखों लोग इस रसोई कार्यक्रम में शामिल होते हैं। जात-पाँत के भेदभाव से मुक्त, यह रसोई अद्वितीय भोग और सेवा का प्रतीक है।
महंत जी: “आपको पता है, हमारे जगन्नाथ धाम पुरी की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है। यह रसोई 32 कमरों में फैली हुई है, जिसकी लंबाई 150 फीट, चौड़ाई 100 फीट और ऊंचाई 20 फीट है। यहाँ भगवान् को चढ़ाए जाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए 752 चूल्हे हैं और लगभग 500 रसोइए तथा उनके 300 सहयोगी काम करते हैं।”
यात्री: “वह! इतनी बड़ी रसोई और इतने सारे लोग! कैसे होता है सब काम?”
महंत जी: “सबसे पहले, मिट्टी की सात सौ हंडियों, जिन्हें ‘अटका’ कहते हैं, में प्रसाद पकाया जाता है। लगभग दो सौ सेवक सब्जियों, फलों, नारियल इत्यादि को काटते हैं और मसालों को पीसते हैं। कहते हैं कि इस रसोई में जो भी भोग बनाया जाता है, वह माता लक्ष्मी की देखरेख में ही होता है।”
यात्री: “यह जानकर अच्छा लगा। यहाँ के भोग में कौन-कौन से व्यंजन होते हैं?”
महंत जी: “यहाँ का भोग पूरी तरह शाकाहारी होता है। मीठे व्यंजन बनाने के लिए शक्कर के बजाय अच्छे किस्म का गुड़ इस्तेमाल होता है। आलू, टमाटर और फूलगोभी का उपयोग नहीं होता। यहाँ के व्यंजनों के खास नाम होते हैं, जैसे ‘जगन्नाथ वल्लभ लाडू’, ‘माथपुली’ आदि। प्याज और लहसुन का प्रयोग निषिद्ध है।”
यात्री: “और यह पानी कहाँ से लाते हैं?”
महंत जी: “रसोई के पास ही दो कुएं हैं, जिन्हें ‘गंगा’ और ‘यमुना’ कहा जाता है। केवल इन्हीं कुओं के पानी से भोग का निर्माण किया जाता है। इस रसोई में 56 प्रकार के भोग बनाए जाते हैं, जैसे दाल, चावल, सब्जी, मीठी पूरी, खाजा, लड्डू, पेड़े, बूंदी, चिवड़ा, नारियल, घी, माखन, मिसरी आदि।”
यात्री: “यह रसोई कितने लोगों का खाना बनाती है?”
महंत जी: “यह रसोई एक बार में 50 हजार लोगों के लिए महाप्रसाद बना सकती है। प्रतिदिन यहाँ 72 क्विंटल चावल पकाया जाता है। सात बर्तनों में एक के ऊपर एक रखकर चावल पकाया जाता है, सबसे ऊपर रखे बर्तन का चावल पहले पकता है और फिर नीचे के बर्तनों का। यहाँ प्रतिदिन नए बर्तन ही भोग बनाने के काम आते हैं।”
यात्री: “यह जानकर बहुत अच्छा लगा। प्रसाद का वितरण कैसे होता है?”
महंत जी: “सबसे पहले भगवान् को भोग लगाया जाता है और फिर भक्तों को प्रसाद दिया जाता है। भगवान् जगन्नाथ को महाप्रसाद, जिसे ‘अब्धा’ कहा जाता है, निवेदित करने के बाद माता बिमला को निवेदित किया जाता है, तब वह महाप्रसाद बनता है। भगवान् को दिन में छह बार महाप्रसाद चढ़ाया जाता है। रथ यात्रा के दिन एक लाख चौदह हज़ार लोग रसोई कार्यक्रम में और अन्य व्यवस्थाओं में लगे होते हैं, जबकि 6000 पुजारी पूजा विधि में कार्यरत होते हैं।”
यात्री: “यह बहुत ही अद्भुत और प्रेरणादायक है। यहाँ जात-पाँत का कोई भेदभाव नहीं होता, यह भी बहुत अच्छी बात है।”
महंत जी: “हाँ, यहाँ भिन्न-भिन्न जातियों के लोग एक साथ भोजन करते हैं। ओडिशा में दस दिनों तक चलने वाले इस राष्ट्रीय उत्सव में भाग लेने के लिए दुनिया भर से लोग उत्साहपूर्वक आते हैं।”
छोटी कहानी इन हिंदी जगन्नाथ धाम पुरी की रसोई
श्रीकृष्ण की माया: सुदामा की कहानी
एक दिन श्रीकृष्ण ने कहा, “सुदामा, आओ, हम गोमती में स्नान करने चलें।” दोनों गोमती के किनारे गए, अपने कपड़े उतारे और नदी में प्रवेश किया। श्रीकृष्ण स्नान करके किनारे लौट आए और अपने पीले वस्त्र पहनने लगे। सुदामा ने एक और डुबकी लगाई, तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें अपनी माया दिखाई।
सुदामा को लगा कि नदी में बाढ़ आ गई है। वह बहता जा रहा था, किसी तरह किनारे पर रुका। गंगा घाट पर चढ़कर वह चलने लगा। चलते-चलते वह एक गाँव के पास पहुँचा, जहाँ एक मादा हाथी ने उसे फूलों की माला पहनाई। बहुत से लोग इकट्ठा हो गए और बोले, “हमारे देश के राजा का निधन हो गया है। यहाँ की परंपरा है कि राजा की मृत्यु के बाद जिस किसी को मादा हाथी माला पहनाएगी, वही हमारा नया राजा बनेगा। मादा हाथी ने तुम्हें माला पहनाई है, इसलिए अब तुम हमारे राजा हो।”
सुदामा हैरान रह गया, लेकिन वह राजा बन गया और एक राजकुमारी से विवाह भी कर लिया। उनके दो बेटे भी हुए और उनका जीवन खुशी से बीतने लगा। एक दिन सुदामा की पत्नी बीमार हो गई और मर गई। पत्नी की मृत्यु के शोक में सुदामा रोने लगे। राज्य के लोग भी वहाँ पहुँचे और बोले, “राजा जी, मत रोइए। यह तो माया नगरी का नियम है। आपकी पत्नी की चिता में आपको भी प्रवेश करना होगा।”
यह कहानी महार्षि कंबन द्वारा तमिल भाषा में लिखित “इरामा-अवतारम” से ली गई है, जो वाल्मीकि रामायण और तुलसी रामायण में नहीं मिलती।
श्रीराम ने समुद्र पर पुल बनाने के बाद, महेश्वर-लिंग-विग्रह की स्थापना के लिए रावण को आचार्य के रूप में आमंत्रित करने के लिए जामवंत को भेजा। जामवंत ने रावण को यह संदेश दिया कि श्रीराम ने उन्हें आचार्य के रूप में नियुक्त करने का निर्णय लिया है। रावण ने इसे सम्मानपूर्वक स्वीकार किया।
रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बैठाकर श्रीराम के पास ले गया और खुद आचार्य के रूप में अनुष्ठान का संचालन किया। अनुष्ठान के दौरान, रावण ने श्रीराम से उनकी पत्नी के बिना अनुष्ठान पूरा नहीं होने की बात कही। तब श्रीराम ने सीता को अनुष्ठान में शामिल होने का आदेश दिया।
एक बार की बात है, एक गाँव था जहाँ भागवत कथा का आयोजन किया गया था। एक पंडित कथा सुनाने आया था जो पूरे एक सप्ताह तक चली। अंतिम अनुष्ठान के बाद, जब पंडित दान लेकर घोड़े पर सवार होकर जाने को तैयार हुआ, तो धन्ना जाट नामक एक सीधे-सादे और गरीब किसान ने उसे रोक लिया।
धन्ना ने कहा, “हे पंडित जी! आपने कहा था कि जो भगवान की सेवा करता है, उसका बेड़ा पार हो जाता है। लेकिन मेरे पास भगवान की मूर्ति नहीं है और न ही मैं ठीक से पूजा करना जानता हूँ। कृपया मुझे भगवान की एक मूर्ति दे दीजिए।”
पंडित ने उत्तर दिया, “आप स्वयं ही एक मूर्ति ले आइए।”
धन्ना ने कहा, “लेकिन मैंने तो भगवान को कभी देखा ही नहीं, मैं उन्हें कैसे लाऊँगा?”
उन्होंने पिण्ड छुडाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- “ये ठाकुरजी हैं ! इनकी सेवा पूजा करना।’
“सच्ची भक्ति: सेवा और करुणा का मार्ग”
एक समय की बात है, एक शहर में एक धनवान सेठ रहता था। उसके पास बहुत दौलत थी और वह कई फैक्ट्रियों का मालिक था।
एक शाम, अचानक उसे बेचैनी की अनुभूति होने लगी। डॉक्टरों ने उसकी जांच की, लेकिन कोई बीमारी नहीं मिली। फिर भी उसकी बेचैनी बढ़ती गई। रात को नींद की गोलियां लेने के बावजूद भी वह नींद नहीं पा रहा था।
आखिरकार, आधी रात को वह अपने बगीचे में घूमने निकल गया। बाहर आने पर उसे थोड़ा सुकून मिला, तो वह सड़क पर चलने लगा। चलते-चलते वह बहुत दूर निकल आया और थककर एक चबूतरे पर बैठ गया।
तभी वहां एक कुत्ता आया और उसकी एक चप्पल ले गया। सेठ ने दूसरी चप्पल उठाकर उसका पीछा किया। कुत्ता एक झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में घुस गया। जब सेठ नजदीक पहुंचा, तो कुत्ते ने चप्पल छोड़ दी और भाग गया।
इसी बीच, सेठ ने किसी के रोने की आवाज सुनी। वह आवाज एक झोपड़ी से आ रही थी। अंदर झांककर उसने देखा कि एक गरीब औरत अपनी बीमार बच्ची के लिए रो रही है और भगवान से मदद मांग रही है।
शुरू में सेठ वहां से चला जाना चाहता था, लेकिन फिर उसने औरत की मदद करने का फैसला किया। जब उसने दरवाजा खटखटाया तो औरत डर गई। सेठ ने उसे आश्वस्त किया और उसकी समस्या